राजस्थान की लोक संस्कृति, उसकी मिट्टी की खुशबू और वहां की परंपराओं को अपने सुरों में पिरोकर जन-जन तक पहुंचाने वाली बतूल बेगम को पद्मश्री 2025 से सम्मानित किया जाना, न केवल उनके लिए बल्कि पूरे राजस्थान और भारत के लोक संगीत प्रेमियों के लिए गर्व का क्षण है।
बतूल बेगम, जिनकी गायकी में भक्ति, श्रद्धा और संगीत की अद्भुत सामंजस्य है, अपने राम और गणपति भजनों से लोक संगीत को एक नई ऊंचाई पर ले गई हैं। एक ऐसे समय में, जब आधुनिकता और पाश्चात्य प्रभाव के कारण लोक संगीत के प्रति रुचि कम हो रही है, बतूल बेगम ने अपनी साधना और समर्पण से इस विधा को जीवित रखा है।
उनकी गायकी केवल संगीत नहीं है, बल्कि यह हमारी सांस्कृतिक जड़ों का एक सजीव प्रमाण है। उनकी आवाज में राजस्थान की मिट्टी की सुगंध, वहां की परंपराओं की गूंज और भक्ति की मधुरता झलकती है। यह न केवल एक कलाकार की सफलता की कहानी है, बल्कि यह दर्शाती है कि कैसे लोक कलाएं आज भी हमारे सामाजिक और सांस्कृतिक ताने-बाने को जोड़ने का काम कर रही हैं।
पद्मश्री सम्मान का चयन यह प्रमाणित करता है कि भारत में कला और संस्कृति के प्रति प्रतिबद्धता और उत्कृष्टता को पहचानने की परंपरा जीवंत है। यह सम्मान उन सभी कलाकारों के लिए प्रेरणा है, जो अपनी विरासत को संजोने और उसे अगली पीढ़ी तक पहुंचाने का कार्य कर रहे हैं।
बतूल बेगम का यह सम्मान यह संदेश देता है कि लोक संगीत केवल मनोरंजन नहीं, बल्कि हमारी सांस्कृतिक आत्मा का प्रतिबिंब है। ऐसे समय में, जब तेजी से बदलती दुनिया में हमारी पारंपरिक कलाओं को संरक्षित करने की आवश्यकता है, बतूल बेगम जैसी कलाकार हमें यह याद दिलाती हैं कि हमारी जड़ें कितनी समृद्ध और गहरी हैं।
निष्कर्ष:
बतूल बेगम का पद्मश्री से सम्मानित होना हमें लोक कलाओं के प्रति गर्व और जिम्मेदारी दोनों का एहसास कराता है। यह समय है कि हम भी अपनी सांस्कृतिक धरोहर को संरक्षित करने और लोक कलाकारों को प्रोत्साहित करने की दिशा में प्रयास करें। भारत की विविधता और सांस्कृतिक संपदा को बनाए रखना ही हमारी सच्ची पहचान है।
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