सीएनएन सेंट्रल न्यूज़ एंड नेटवर्कआईटीडीसी इंडिया ईप्रेस /आईटीडीसी न्यूज़ भोपाल:  मोदी सरकार द्वारा ‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ का प्रस्ताव मंजूरी पाना भारतीय लोकतंत्र के लिए एक बड़ा और ऐतिहासिक कदम है। इस योजना के तहत, लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के चुनावों को एक साथ कराने की योजना बनाई गई है, जिससे बार-बार चुनाव होने की प्रक्रिया को सीमित किया जा सकेगा। इससे चुनावी खर्चों में कटौती होने के साथ ही प्रशासनिक ढांचे को भी स्थायित्व मिलेगा। हालांकि, इस पहल को लागू करने में कई महत्वपूर्ण चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा, जिनमें राज्यों के चुनावी कार्यकाल का समन्वय प्रमुख है।

इस कदम का महत्व:

लोकसभा और विधानसभाओं के चुनाव एक साथ कराने से, देश में लगातार होने वाले चुनावी आचार संहिता और चुनावी प्रक्रियाओं से उत्पन्न रुकावटों से निजात मिलेगी। यह सरकार के लिए नीति निर्माण और उनके कार्यान्वयन में निरंतरता बनाए रखने में सहायक होगा। वर्तमान व्यवस्था में, विभिन्न राज्यों में अलग-अलग समय पर चुनाव होते हैं, जिससे सरकार की निर्णय लेने की क्षमता पर असर पड़ता है, क्योंकि चुनावी आचार संहिता लागू होते ही विकास कार्य थम जाते हैं।

लाभ:

  1. चुनावी खर्चों में कमी: चुनावी खर्च हर साल बढ़ता जा रहा है। एक साथ चुनाव कराने से यह खर्च बड़े पैमाने पर कम हो सकता है।
  2. समय और संसाधनों की बचत: चुनावी प्रक्रियाओं में शामिल सुरक्षा बल, प्रशासन और राजनीतिक दलों का समय और संसाधन बार-बार चुनाव कराने के बजाय एक बार में प्रयोग होगा।
  3. राजनीतिक स्थिरता: चुनावी चक्रों से बार-बार सरकारें चुनाव की तैयारी में उलझी रहती हैं, जिससे शासन में अवरोध उत्पन्न होते हैं। ‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ इस समस्या का समाधान प्रस्तुत करता है।

चुनौतियाँ:

  1. संवैधानिक बदलाव की आवश्यकता: इस प्रस्ताव को लागू करने के लिए कई संवैधानिक संशोधनों की आवश्यकता होगी। भारत का संविधान राज्यों को उनके कार्यकाल की स्वतंत्रता देता है, जिसे बदलने के लिए व्यापक राजनीतिक सहमति की जरूरत होगी।
  2. राज्यों की सहमति: भारत संघीय ढांचे पर आधारित है, और राज्यों के अधिकारों का सम्मान करना संवैधानिक प्राथमिकता है। हर राज्य का चुनावी चक्र अलग होता है, और इन चक्रों को समन्वयित करना आसान नहीं होगा।
  3. संविधानिक विवाद: कई विपक्षी दल इसे राज्यों के अधिकारों में हस्तक्षेप के रूप में देखते हैं और इसे संघीय ढांचे के खिलाफ मानते हैं। संवैधानिक विशेषज्ञों का मानना है कि इसे लागू करने के लिए एक लंबी कानूनी प्रक्रिया और व्यापक राजनीतिक चर्चा की आवश्यकता होगी।

विपक्ष की राय:

विपक्षी दलों का मानना है कि यह कदम केंद्र सरकार के अधिकारों का विस्तार है और इससे राज्यों की स्वायत्तता पर असर पड़ेगा। कुछ विशेषज्ञ इसे संघीय ढांचे के विपरीत मानते हैं और इसे लोकतांत्रिक मूल्यों पर खतरा मानते हैं। विपक्षी दलों का यह भी कहना है कि अलग-अलग समय पर चुनाव होने से मतदाताओं को बेहतर विकल्प मिलते हैं और वह अपने निर्णय को अधिक स्वतंत्रता के साथ ले सकते हैं।

निष्कर्ष:

‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ का प्रस्ताव भारतीय लोकतंत्र में सुधार की दिशा में एक बड़ा कदम है, परंतु इसे लागू करने से पहले व्यापक राजनीतिक और सामाजिक सहमति की आवश्यकता है। यह पहल चुनावी प्रक्रियाओं को सुचारू बनाने और देश की प्रगति में तेजी लाने की दिशा में सहायक हो सकती है, लेकिन इसकी चुनौतियों को ध्यान में रखते हुए एक गहन और संवैधानिक समीक्षा जरूरी है।

यह देखना दिलचस्प होगा कि आने वाले समय में इस प्रस्ताव को लेकर क्या राजनीतिक और संवैधानिक समीकरण बनते हैं और किस प्रकार इसका क्रियान्वयन हो सकेगा।