आपको बताते हैं अनुनय की छोटी उम्र की बड़ी उपलब्धियों की कहानी

अनुनय के पिता अनिमेष गढ़पाले बालाघाट में जिला परिवहन अधिकारी हैं। उनकी शादी 2017 में विद्या से हुई। 2021 में बेटे अनुनय का जन्म हुआ। पिता अनुनय बताते हैं कि बेटा सामान्य बच्चों से थोड़ा अलग बर्ताव कर रहा था। उसे मोबाइल गेम, कार्टून में इंटरेस्ट नहीं था। रंगीन चित्र उसे आकर्षित करते थे। साल भर बाद उसकी दिलचस्पी अल्फाबेट, नंबर्स और बड़ी हस्तियों की तस्वीरों में बढ़ी। चित्र वाली किताबें उसे बेहद पसंद आने लगीं। तब हमने तय किया कि उसे इसी दिशा में बेसिक लर्निंग देना शुरू करें। काफी कम समय में उसे इतना कुछ याद हो गया कि हम भी दंग रह गए।

रिकॉर्ड बनाने लगा अनुनय

इंटरनेशनल बुक ऑफ रिकॉर्ड में अब अनुनय का नाम दर्ज हो गया है। अवॉर्ड सर्टिफिकेट में अनुनय की अलग-अलग कैटेगरी में कई उपलब्धि दर्ज है। जिसमें फ्रीडम फाइटर, स्मारक, आकार, रंग, फल-फूल, 20 से ज्यादा ट्रांसपोर्ट व्हीकल के नाम, शरीर के अंग, पक्षी, विभिन्न मुद्रा आदि को पहचानने और इनके नाम याद रखने की उपलब्धि है। अनुनय 40 देशों का झंडा बनाकर उनके देश की पहचान कर लेता है। इंडिया बुक ऑफ रिकॉर्ड में भी अनुनय की इसी स्मृति के कारण रिकॉर्ड दर्ज किया गया है।

मां निखारती हैं बेटे का हुनर

अनुनय की मां विद्या बताती हैं वे हाउस वाइफ हैं। घर के कामकाज से समय मिलते ही ज्यादातर समय बेटे के हुनर को निखारने में लगाती हैं। पहले साल से ही समझ आने लगा था कि अनुनय बाकी बच्चों से थोड़ा अलग है। उसे मोबाइल गेम और कार्टून पसंद नहीं थे तो हमने भी उसे मोबाइल से दूर ही रखा। वो जिस तस्वीर और उसकी डिटेल को एकबार जान लेता है उसे याद रख लेता है। बस कुछ दिनों बाद वापस उसे दिखाकर उसका टेस्ट लेते रहते हैं। हम हैरान हो जाते हैं कि भले ही आप दस दिन बाद दोबारा कोई तस्वीर दिखाओ उसके बारे में जो जानकारी आपने बताई वो उसे वैसे ही याद रहती है।

एक महीने की प्रोसेस के बाद मिला अवॉर्ड

अनुनय के पिता अनिमेष ने बताया कि बेटे के टैलेंट को देखकर लगा कि उसमें असाधारण प्रतिभा है और इसे एक मंच देना चाहिए। नाम पहचानने, बोलने का वीडियो बनाकर हमने इंटरनेशनल बुक ऑफ रिकॉर्ड संस्थान को भेजा, जहां एक महीने चली सिलेक्शन प्रोसेस के बाद अनुनय का अवॉर्ड के लिए चयन हुआ है। हम पूछते हैं कि बड़े होकर क्या बनोगे तो कहता है- साइंटिस्ट बनना है।

प्ले स्कूल के शिक्षक भी हैरान

अनिमेष बताते हैं कि जब अनुनय का दाखिला प्ले स्कूल में कराने गए तो टीचर ने जो भी सवाल पूछे सबका जवाब उसने दिया। पेन पकड़कर बुक पर लिखने लगा। टीचर भी हैरान हुए। क्योंकि अकसर एक साल की उम्र के बाद बच्चों को प्ले स्कूल में सिर्फ खेलकूद और रहना सिखाया जाता है। ज्यादातर बच्चे दाखिले के समय कुछ खास नहीं जानते।

विरासत में मिले हैं शिक्षा के संस्कार

अनिमेष गढ़पाले सिवनी जिले के रहने वाले हैं। अपनी प्रारंभिक शिक्षा सिवनी में ही की और बीई की पढ़ाई इंदौर से की। एमटेक भोपाल से करने के बाद 2016 में सहायक भू अभिलेख के पद पर पदस्थ हुए। इसके बाद 2018 में परिवहन अधिकारी की ट्रेनिंग के लिए जबलपुर में पदस्थ रहे।

2019 में उनका स्थानांतरण बालाघाट हो गया और उनके पास उमरिया का भी प्रभार रहा। 2020 में वह बालाघाट जिले के परिवहन अधिकारी के पद पर नियुक्त हो गए। पत्नी विद्या ने एमएससी की पढ़ाई की है। चार साल एक बैंक में कार्यरत रहीं। बाद में बच्चे की परवरिश के लिए ब्रेक लिया और फिलहाल हाउस वाइफ हैं।