भोपाल ।  बिजली दर निर्धारण को लेकर को आनलाइन हुई बैठक में सलाहकार सदस्यों ने कहा कि बिजली कंपनी जब दाम पूरे वसूल रही है तो फिर बिना व्यवधान वाली बिजली की सप्लाई क्यों नहीं दी जा रही है। उपभोक्ता बिल देने के बाद भी गुणवत्ता वाली बिजली नहीं ले पा रहा है। बिजली की दर निर्धारण को लेकर को हुई बैठक में मप्र विद्युत नियामक आयोग ने सलाहकार सदस्यों के सुझाव लिए।

ऑनलाइन बैठक में प्रदेश से करीब 30 से ज्यादा सदस्यों ने इसमें सहभागिता की। ढाई घंटे तक चली बैठक में ढेरों सुझाव सदस्यों की ओर से रखे गए। मप्र विद्युत नियामक आयोग के सचिव बैठक में मौजूद रहे।जबलपुर चेम्बर आफ कामर्स के अध्यक्ष रवि गुप्ता ने बताया कि आयाेग से मांग की गई कि बिजली बिना ट्रिपिंग के उपलब्ध हो ताकि उपभोक्ताओं को नुकसान न हो। दरअसल उद्योग में हर ट्रिपिंग भारी नुकसानदायक होती है क्योंकि एक बार ट्रिप होने से मशीन का संचालन रुकता है जिस वजह से उत्पादन प्रभावित होता है। कई औद्योगिक इकाइयों में मशीन को चालू करने में भी काफी बिजली की खपत करनी पड़ती है।

रवि गुप्ता ने कहा कि इसके अलावा आयोग के समक्ष बिजली दर निर्धारण को लेकर आपत्ति और जनसुनवाई के बीच का वक्त बढ़ाने की मांग की गई। उन्होंने कहा कि अभी 4 मार्च तक आयोग ने आपत्ति दर्ज कराने का समय तय किया है इसके बाद 8 मार्च को जनसुनवाई होगी। इस बीच में वितरण कंपनी आपत्ति का जवाब आपत्तिकर्ता को भेजेगी जिसका अध्ययन कर उसका दोबारा जवाब तैयार करना होता है इसमें समय अधिक लगता है इसलिए जरूरी है कि आयोग जनसुनवाई के लिए समय बढ़ाए।

सलाहकार समिति के सदस्य किसान संघ के प्रांत महामंत्री प्रहलाद पटेल ने बैठक में आयोग को बताया कि मप्र के पड़ोसी राज्यों की तुलना में किसानों को महंगी बिजली बेची जा रही है। इसलिए जरूरी है कि कंपनी दाम बढ़ाने की बजाए कार्य क्षमता में इजाफा करे। आदिवासी इलाकों में बिजली लाइन खुद उपभोक्ता कई किलोमीटर तक खींच कर ले जाता है। इसके अलावा बिजली कंपनी स्वयं के ताप गृह से ज्यादा बिजली लेकर निजी ताप गृह से महंगी बिजली खरीदना बंद करे ताकि आम जनता को इसका लाभ मिल पाए।

बैठक में सदस्य रवि गुप्ता ने कहा कि मप्र विद्युत नियामक आयोग के सामने निजी ट्रांसफार्मर का मुद्दा भी रखा गया। बिजली कनेक्शन लेने के लिए उपभोक्ता ट्रांसफार्मर लगाते हैं जिसका पूरा भुगतान उपभोक्ता के द्वारा किया जाता है इसके बावजूद ट्रांसफार्मर बिजली कंपनी की संपत्ति बन जाता है जिससे बाद में अन्य उपभोक्ताओं को भी कनेक्शन दिया जाता है। सलाहकार सदस्य ने ऐसे मामले में ट्रांसफार्मर लगवाने पर खर्च होने वाली राशि को बिल में मासिक किस्त में वापस लौटाने का सुझाव भी दिया।