मोदी सरकार संसद में नए इनकम टैक्स बिल को पेश करने की तैयारी कर रही है, जिसे कर प्रणाली को सरल बनाने और करदाताओं को राहत देने की दिशा में एक बड़ा कदम बताया जा रहा है। लेकिन इस बिल के कुछ महत्वपूर्ण प्रावधान ऐसे हैं, जो करदाताओं, निवेशकों और विशेष रूप से डिजिटल संपत्ति रखने वालों के लिए चिंता का विषय बन सकते हैं।
इस नए बिल के तहत आयकर अधिनियम को सरल बनाने की कोशिश की गई है। सरकार ने इसके पन्नों की संख्या 823 से घटाकर 622 कर दी है, जिससे यह अपेक्षाकृत छोटा और समझने में आसान लगे। लेकिन असल सवाल यह है कि क्या इससे वास्तव में कर प्रक्रिया सरल होगी या फिर करदाताओं के लिए नई उलझनें खड़ी होंगी?
सबसे बड़ा बदलाव क्रिप्टोकरेंसी और अन्य डिजिटल संपत्तियों को लेकर किया गया है। नए बिल में इन्हें “अनडिस्क्लोज्ड इनकम” यानी अघोषित आय की श्रेणी में रखा गया है। इसका मतलब यह है कि यदि कोई व्यक्ति अपनी डिजिटल संपत्तियों की जानकारी सरकार को नहीं देता है, तो उस पर सख्त कर और दंडात्मक कार्रवाई हो सकती है। पहले ही 2022 के बजट में क्रिप्टोकरेंसी पर 30 प्रतिशत कर और 1 प्रतिशत टीडीएस लगाया गया था, जिससे इस क्षेत्र में निवेश बुरी तरह प्रभावित हुआ। अब इस नए कानून से यह स्पष्ट हो रहा है कि सरकार डिजिटल संपत्तियों को मुख्यधारा का वित्तीय साधन मानने के बजाय उसे संदिग्ध और कर चोरी से जुड़ा माध्यम मान रही है।
यह सख्त रवैया सिर्फ क्रिप्टोकरेंसी तक सीमित नहीं है, बल्कि इसका असर स्टार्टअप्स और नए तकनीकी इनोवेशन पर भी पड़ सकता है। भारत तेजी से ब्लॉकचेन और वेब 3.0 जैसी तकनीकों को अपनाने की ओर बढ़ रहा था, लेकिन इस तरह की नीतियां निवेशकों और उद्यमियों को विदेशों में अपने व्यवसाय स्थापित करने के लिए मजबूर कर सकती हैं। यह चिंता का विषय इसलिए भी है क्योंकि दुनिया के कई विकसित देश क्रिप्टो और डिजिटल एसेट्स को कानूनी मान्यता देकर इस क्षेत्र में अपनी पकड़ मजबूत कर रहे हैं, जबकि भारत में इसे कर और दंड के दायरे में लाकर हतोत्साहित किया जा रहा है।
इसके अलावा, मध्यम वर्ग और छोटे व्यापारियों के लिए भी यह बिल कुछ जटिलताएं खड़ी कर सकता है। यदि इसमें कुछ कर छूटों को समाप्त कर दिया गया या कर प्रक्रिया को और पेचीदा बना दिया गया, तो इसका सीधा असर आम वेतनभोगी नागरिकों और लघु उद्योगों पर पड़ेगा। पहले से ही कर प्रणाली को लेकर लोगों में कई शंकाएं रहती हैं, और यदि कर भुगतान की प्रक्रिया और अधिक जटिल हुई, तो लोगों को चार्टर्ड अकाउंटेंट और कर सलाहकारों पर अधिक निर्भर रहना पड़ेगा, जिससे उनकी वित्तीय परेशानी बढ़ सकती है।
सरकार का दावा है कि यह विधेयक कर प्रणाली को सरल, पारदर्शी और अधिक समावेशी बनाने की दिशा में उठाया गया कदम है। लेकिन इसका असल प्रभाव तभी समझ में आएगा जब इसके प्रावधान लागू होंगे और लोग इसका अनुभव करेंगे। कोई भी कर सुधार तभी सफल माना जा सकता है जब वह करदाताओं के लिए सरल, सुविधाजनक और व्यवहारिक हो। केवल कागजी सुधारों और संख्या घटाने से समस्या हल नहीं होती, बल्कि जरूरी यह है कि नियम व्यावहारिक रूप से भी करदाताओं के लिए फायदेमंद साबित हों।
सरकार को चाहिए कि वह इस बिल को पारित करने से पहले करदाताओं, विशेषज्ञों और डिजिटल निवेशकों की चिंताओं को गंभीरता से सुने। क्रिप्टोकरेंसी को लेकर एक स्पष्ट और संतुलित नीति बनानी होगी, जिससे न सिर्फ कर चोरी पर रोक लगे बल्कि इस क्षेत्र में निवेश करने वालों को भी भरोसेमंद माहौल मिले। साथ ही, मध्यम वर्ग और छोटे व्यवसायों को किसी भी नई कर नीति के तहत राहत दी जानी चाहिए, ताकि वे इस बदलाव से परेशान न हों।
निष्कर्ष यह है कि कर सुधारों की जरूरत तो है, लेकिन यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि वे आम करदाताओं के लिए परेशानी का कारण न बनें। इनकम टैक्स बिल को यदि वास्तव में सरल और प्रभावी बनाना है, तो सरकार को करदाताओं के हितों को प्राथमिकता देनी होगी, न कि केवल कानूनों को कड़ा करने पर जोर देना चाहिए।
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