सीएनएन सेंट्रल न्यूज़ एंड नेटवर्क–आईटीडीसी इंडिया ईप्रेस /आईटीडीसी न्यूज़ भोपाल : संत हिरदाराम गर्ल्स कॉलेज, भोपाल द्वारा प्राचीन भारतीय ज्ञान प्रणाली को पुन: स्‍‍थापित करने में एनईपी की भूमिका विषय पर एक अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन का आयोजन किया गया। इस शैक्षणिक सम्मेलन का मुख्य उद्देश्य था कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 भारत की समृद्ध प्राचीन ज्ञान प्रणालियों को आधुनिक उच्च शिक्षा में एकीकृत करने में किस प्रकार सहायक हो सकती है।
सम्मेलन के उद्घाटन सत्र में मुख्य अतिथि के रूप में निदेशक अमिताभ सक्सेना, कार्यकारी निदेशक, प्रशिक्षण और विकास अनुसंधान नीति संस्थान, ए.जी.यू. उपस्थित थे एवं विशिष्ट अतिथि के रूप में निदेशक संस्‍मृति मिश्रा, विभागाध्यक्ष एवं वरिष्ठ प्रबंधक, उद्यमिता, व्यवहारिक विज्ञान एवं प्रबंधन विभाग, को आमंत्रित किया गया। इस अवसर पर सम्मानित शिक्षाविदों का एक विशिष्ट पैनल उपस्थित  रहा, जिसमें अध्यक्ष लावण्या भगवतुला, निदेशक दीपक मोटवानी, निदेशक पवित्र श्रीवास्तव और निदेशक आयुष्मान गोस्वामी शामिल थे। इस सम्मेलन के मुख्य वक्ताओं में सुश्री क्षमा पुंताम्बेकर, मयंक जैन, जया शर्मा, सौरभ कुमार, सुयश विजय प्रधान, और अनीता यादव उपस्थित रहे।
कार्यक्रम में शहीद हेमू कालानी एजुकेशनल सोसाइटी के उपाध्यक्ष, हीरो ज्ञानचंदानी, सचिव, घनश्याम बुलचंदानी, सहसचिव के. एल. रामनानी, कमल प्रेमचंदानी, महाविद्यालय की प्राचार्य डालिमा पारवानी, विषय विशेषज्ञ, शिक्षाविद, शोधकर्ता एवं बड़ी संख्या में छात्र-छात्राओं की गरिमामयी उपस्थिति रही।


निदेशक डालिमा पारवानी, ने अपने उद्घाटन संबोधन में सम्मेलन के उद्देश्य पर प्रकाश डालते हुए कहा कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति भारतीय शिक्षा प्रणाली में एक क्रांतिकारी परिवर्तन लाने की क्षमता रखती है। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि प्राचीन भारतीय ज्ञान परंपराएँ आधुनिक शिक्षा के साथ समन्वय स्थापित कर एक समृद्ध शैक्षिक भविष्य का मार्ग प्रशस्त कर सकती हैं। उन्‍होने कहा कि ऐसे सम्‍मेलन भिन्‍न भिन्‍न दृष्टिकोणों को जाननें में मदद करते है जो हमारे ज्ञान को व्‍यापक बनाते है। मुख्य अतिथि अमिताभ सक्सेना ने कहा कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति का उद्देश्य पारंपरिक और आधुनिक शिक्षा के बीच एक समन्वय स्थापित करना है, जिससे युवा पीढ़ी अपने सांस्कृतिक मूल्यों को बनाकर रखते हुए वैश्विक प्रतिस्पर्धा में आगे बढ़ सके। भारतीय ज्ञान परंपरा और हिंदी भाषा के उपयोग के महत्व पर जोर देते हुए उन्होंने कहा कि इस नीति का यह मूल सिद्धांत है कि शिक्षा छात्रों को उनकी अपनी भाषा में दी जानी चाहिए। उन्होंने यह जानकारी भी साझा की कि विश्व की शीर्ष 10 मुख्‍य जीडीपी वाले देशों में से केवल भारत ने अपनी मातृभाषा को शिक्षा के लिए प्राथमिकता नहीं दी है। उन्होंने छात्रों से यह पूछकर, कि नववर्ष कब प्रारंभ होता है |
भारतीय ज्ञान परंपरा में उनकी रुचि जागृत की। इस तरह के कई सवालों और शब्दार्थों के माध्यम से, उन्होंने इस विचार को और पुख्ता किया कि एक भारतीय का वास्तविक हित अपनी भाषा में ज्ञान अर्जित करने में है। एक अद्वितीय उदाहरण देते हुए कहा कि यदि एक ईंट सबसे श्रेष्ठ भी हो, तो भी वह एक अच्छा भवन नहीं बना सकती अगर उसमें दूसरों से जुड़ने की प्रवृत्ति न हो। इसी तरह, इस गुण को विकसित करने के लिए छात्रों को भी अपनी भाषा में ज्ञान अर्जित करना चाहिए, और राष्‍ट्र निर्माण में जुट जाना चाहिए, यही राष्ट्रीय शिक्षा नीति का मुख्य उद्देश्य है। अपने वक्‍तव्‍य के समापन में डॉ. अमिताभ ने कहा कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति संत हिरदाराम कन्या महाविद्यालय, भोपाल में हिंदी का प्रयोग सर्वांगीण व्यक्तित्व विकास, सामाजिक जागरूकता, राष्ट्र निर्माण का भाव और प्रकृति की चिंता करने वाला विश्व मानव बनने पर जोर देता है।
निदेशक संस्‍मृति मिश्रा ने ऋग्वेद से अपनी बात शुरू करते हुए कहा कि ज्ञान शाश्वत है। महर्षि अगस्त्य की एक कहानी का उल्लेख करते हुए उन्होंने बताया कि संभावनाएँ तो सभी के अंदर होती हैं, पर अवसर आने पर ही उसका पता चलता है। मस्तिष्क के दो भागों के बीच त्रिनेत्र को जागृत करने के लिए उन्होंने प्रतिभागियों को एक अभ्यास कराया। उन्होंने कहा कि स्वामी विवेकानंद का कथन उठो, जागो और तब तक मत रुको जब तक लक्ष्य की प्राप्ति न हो जाए" यह हर भारतीय की मूल भावना होनी चाहिए। समापन सत्र में बरकतुल्लाह विश्वविद्यालय, भोपाल के कुलगुरू एस. के. जैन मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित रहे। उन्होंने अपने संबोधन में विद्यार्थियों को भारतीय ज्ञान, पुरातत्व, प्राचीन परंपराओं और उनके आज के वैज्ञानिक वातावरण में महत्व के बारे में बताया। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि इन परंपराओं को आधुनिक वैज्ञानिक सोच के साथ कैसे समायोजित किया जा सकता है।
आगे उन्होंने कहा कि हमें अपने भारतीय होने पर गर्व करना चाहिए क्योंकि हमारी अपनी एक विशिष्ट सांस्कृतिक पहचान है। उन्होंने अपनी मातृभाषा पर गर्व करने के महत्व को भी रेखांकित किया। वर्ष 2020 के बाद समाज और परिवार की दिशाएं कहीं न कहीं धुंधली होती जा रही हैं। भारतीय ज्ञान का मुख्य उद्देश्य सर्वे भवन्तु सुखिन अर्थात सभी सुखी रहें यही हमारी परंपरा का मूल भाव है। सच्ची भारतीय संस्कृति हमें दूसरों की खुशी में खुशी और उनके दुख में दुख अनुभव करने की शिक्षा देती है। मर्यादित जीवन जीना ही भारतीय ज्ञान और परंपरा का सार है।
आज के बदलते समय में, यह आवश्यक है कि हम वैज्ञानिक दृष्टिकोण को अपनाएं, लेकिन अपनी जड़ों को कभी न छोड़ें। अतिथि देवो भव हमारी परंपरा का अभिन्न अंग है। सम्मेलन में चार तकनीकी सत्रों पर चर्चा हुई, जिनमें प्राचीन भारतीय विज्ञान और तकनीकी नवाचार, वाणिज्य, प्रबंधन एवं प्राचीन भारतीय आर्थिक विचारधारा, शिक्षा, नीति एवं पाठ्यक्रम सुधार और कला, संस्कृति, मानविकी एवं भाषाई विरासत से संबंधित विषयों पर गहन विमर्श किया गया। समारोह के अंत में मुख्‍य अतिथि द्वारा सम्‍मेलन की स्‍मारिका का विमोचन किया गया एवं सर्वश्रेष्‍ठ पेपर प्रेजेंटर अवार्ड की घोषणा भी की गई, जिसमें शिक्षा तिवारी, दीपशिखा लालवानी, तसनीम सैफ, हिमांशी लालवानी को यह सम्मान प्रदान किया गया।
यह सम्मेलन शैक्षिक नीति और प्राचीन भारतीय ज्ञान परंपराओं के समन्‍वय के लिए एक प्रभावी मंच साबित हुआ।

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