भारत, तेजी से आर्थिक विकास करने वाला देश, गहरी आर्थिक असमानता की समस्या से जूझ रहा है। ऐसे में फ्रांसीसी अर्थशास्त्री थॉमस पिकेटी का यह सुझाव कि भारत के सबसे अमीर लोगों पर अधिक कर लगाया जाए, देश में इस समस्या को हल करने की दिशा में एक जरूरी बहस को जन्म देता है। पिकेटी ने 2% संपत्ति कर और 33% उत्तराधिकार कर लगाने की बात कही है। यह प्रस्ताव, एक ओर, आर्थिक असमानता को कम करने की दिशा में एक साहसिक कदम हो सकता है, वहीं दूसरी ओर, इसके दीर्घकालिक प्रभावों पर विचार करना भी उतना ही आवश्यक है।
भारत में संपत्ति का वितरण बेहद असमान है। देश की संपत्ति का एक बड़ा हिस्सा मुट्ठीभर लोगों के पास है, जबकि करोड़ों लोग अपनी बुनियादी जरूरतों को पूरा करने के लिए संघर्ष कर रहे हैं। ऐसे में पिकेटी का सुझाव एक सामाजिक और आर्थिक संतुलन बनाने का अवसर देता है। अगर अमीरों पर थोड़ा अधिक कर लगाया जाए, तो उससे अर्जित राजस्व का उपयोग शिक्षा, स्वास्थ्य, और बुनियादी ढांचे में किया जा सकता है, जो देश के विकास को नई दिशा देगा। इसके अलावा, उत्तराधिकार कर लागू करना यह सुनिश्चित कर सकता है कि संपत्ति केवल कुछ परिवारों तक सीमित न रहे और अधिक समतामूलक समाज का निर्माण हो।
हालांकि, इस तरह की कर नीति लागू करने के अपने खतरे भी हैं। आलोचकों का मानना है कि अधिक कराधान से पूंजी पलायन हो सकता है, जहां अमीर लोग अपने व्यवसाय और संपत्ति को विदेशी बाजारों में ले जा सकते हैं। इससे न केवल निवेश पर असर पड़ेगा, बल्कि रोजगार के अवसरों में भी कमी आएगी। इसके अलावा, भारत में पहले से ही कर अनुपालन की स्थिति मजबूत नहीं है। जो लोग पहले ही ईमानदारी से कर देते हैं, उन पर अधिक कर का बोझ डालना, समस्या का स्थायी समाधान नहीं हो सकता।
भारत को इस मुद्दे पर संतुलित दृष्टिकोण अपनाने की आवश्यकता है। सीधे पिकेटी के सुझावों को लागू करने के बजाय, कर सुधारों को धीरे-धीरे लागू किया जा सकता है। कर प्रणाली को अधिक पारदर्शी और न्यायसंगत बनाना, और कर चोरों पर सख्त कार्रवाई करना इस दिशा में प्रभावी कदम हो सकते हैं।
पिकेटी का सुझाव हमें इस बात की याद दिलाता है कि आर्थिक विकास तब तक अधूरा है, जब तक वह समाज के सभी वर्गों को समान रूप से लाभ न पहुंचाए। यह समय है कि भारत अपने आर्थिक ढांचे को इस प्रकार तैयार करे, जो न केवल अमीरों के विकास को प्रोत्साहित करे, बल्कि वंचित वर्गों को भी मुख्यधारा में लाए। आर्थिक समानता की यह यात्रा कठिन जरूर है, लेकिन देश के समग्र विकास के लिए यह अनिवार्य भी है।
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