बीते कुछ वर्षों में यह स्पष्ट होता गया है कि वैश्विक मंचों पर पाकिस्तान की कहानी अब प्रभाव नहीं छोड़ पा रही है। चाहे वह आत्म-पीड़ित देश बनने का प्रयास हो या भारत को लगातार कठघरे में खड़ा करने की कोशिश—इन सबके पीछे का नैरेटिव अब थक चुका है।
आइए समझते हैं कि आखिर क्यों पाकिस्तान की कहानी अब बिक नहीं रही है।
- भरोसे की बुनियाद दरक गई है
पाकिस्तान लंबे समय से खुद को आतंकवाद का शिकार बताकर अंतरराष्ट्रीय समुदाय से सहानुभूति बटोरता रहा है। लेकिन जब एबटाबाद में ओसामा बिन लादेन मारा गया या मुंबई हमलों के दोषी खुलेआम नजर आए, तो उसकी विश्वसनीयता पर गंभीर सवाल उठे।
भारत अब जब सैटेलाइट फुटेज, दस्तावेज़ और अंतरराष्ट्रीय मंचों पर प्रमाण प्रस्तुत करता है, तो पाकिस्तान की केवल “इनकार की नीति” खोखली प्रतीत होती है।
- भारत की रणनीतिक संचार में बढ़त
भारत ने अपनी सैन्य और कूटनीतिक कार्रवाई के साथ-साथ रणनीतिक संचार को भी हथियार बनाया है।
बालाकोट स्ट्राइक
अनुच्छेद 370 का निरस्तीकरण
ऑपरेशन सिंदूर
हर मोर्चे पर भारत ने तेज़, स्पष्ट और तथ्यपूर्ण जानकारी साझा की। इसके विपरीत, पाकिस्तान की प्रतिक्रिया अक्सर ISPR की वीडियो क्लिप्स और बिना पुष्टि के दावों पर आधारित रही, जो वैश्विक मीडिया में गंभीरता से नहीं ली जातीं।
- FATF की मार और अंतरराष्ट्रीय थकान
FATF की ग्रे लिस्ट में वर्षों तक रहना न सिर्फ पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था, बल्कि उसके नैरेटिव के लिए भी घातक रहा। दुनिया को अब पाकिस्तान के “हम सुधार करेंगे” वाले बयानों पर भरोसा नहीं रहा।
भारत ने इस अंतरराष्ट्रीय थकान का फायदा उठाकर पश्चिमी देशों, अरब राष्ट्रों, और एशियाई सहयोगियों तक से अपने पक्ष में समर्थन जुटाया।
- घरेलू भ्रम बनाम वैश्विक सच्चाई
पाकिस्तान का सरकारी मीडिया और सेंसरशिप आधारित रिपोर्टिंग घरेलू दर्शकों को भले प्रभावित करे, लेकिन आज की खुली डिजिटल दुनिया में अंतरराष्ट्रीय दर्शक हर दावे को क्रॉस-वेरिफाई कर सकते हैं।
भारत में मीडिया भले ही बहस का विषय हो, लेकिन आलोचना और विविधता की मौजूदगी उसकी खबरों को ज़्यादा प्रामाणिकता देती है।
- ऑपरेशन सिंदूर: निर्णायक मोड़
ऑपरेशन सिंदूर भारत की नई रणनीति का प्रतिनिधि उदाहरण है। सीमित, सटीक और संतुलित कार्रवाई के बाद भारत का शांत और आत्मविश्वासी बयान वैश्विक समुदाय के लिए संतुलन और ज़िम्मेदारी का प्रतीक बना।
वहीं पाकिस्तान की प्रतिक्रिया उलझी हुई, देर से आई और उसमें आत्मविश्वास की कमी स्पष्ट दिखी।
निष्कर्ष
आज की वैश्विक राजनीति में केवल बंदूक नहीं, बयान भी युद्ध का हथियार बन चुका है। भारत ने “फैक्ट्स + फोकस्ड नैरेटिव” की शक्ति को पहचाना है, जबकि पाकिस्तान अब भी पुराने स्क्रिप्ट पर टिके रहकर विश्व समुदाय की विश्वसनीयता खो चुका है।
“जब सच के साथ रणनीति जुड़ जाती है, तो शोर नहीं, सटीकता जीतती है।”
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