भारतीय कॉरपोरेट जगत के दिग्गज और इन्फोसिस के सह-संस्थापक नारायण मूर्ति ने एक बार फिर कॉर्पोरेट प्रशासन और कर्मचारियों की भलाई पर महत्वपूर्ण बयान दिया है। उनका मानना है कि कंपनियों को न्यूनतम और अधिकतम वेतन के बीच की खाई को कम करने की दिशा में काम करना चाहिए।

क्या कहा नारायण मूर्ति ने?

नारायण मूर्ति ने कंपनियों से अपील की कि वे अपने कर्मचारियों के साथ बेहतर और इंसानी व्यवहार करें। उनका कहना था कि अगर कॉर्पोरेट जगत में वेतन की असमानता कम होगी, तो कर्मचारियों में न केवल संतोष बढ़ेगा बल्कि कंपनी के प्रति उनकी निष्ठा और उत्पादकता में भी इज़ाफा होगा।

कॉरपोरेट कल्चर में बदलाव की ज़रूरत

आज के दौर में बड़ी कंपनियों में सीईओ और टॉप मैनेजमेंट की सैलरी आम कर्मचारियों की तुलना में कई गुना अधिक होती है। यह खाई जितनी बढ़ती है, कार्यस्थल का माहौल उतना ही असंतुलित होता जाता है। नारायण मूर्ति की इस बात में गहराई है कि अगर कंपनियां सामान्य कर्मचारियों के आर्थिक स्तर को ऊपर उठाने पर ध्यान देंगी, तो इससे पूरे संगठन का विकास होगा।

सवाल उठता है – क्या कंपनियां ऐसा करेंगी?

कॉरपोरेट जगत में एक असमान वेतन संरचना सालों से बनी हुई है। उच्च पदों पर बैठे अधिकारी तगड़ी सैलरी और बोनस पाते हैं, जबकि ज़मीनी स्तर पर काम करने वाले कर्मचारी अपनी मूलभूत आवश्यकताओं के लिए संघर्ष करते हैं।

क्या इससे कर्मचारियों का मनोबल बढ़ेगा?

बिल्कुल! जब कर्मचारियों को लगेगा कि उनकी मेहनत की सही कीमत मिल रही है, तो वे और ज्यादा मन लगाकर काम करेंगे। इससे न केवल कंपनियों का प्रदर्शन सुधरेगा बल्कि कर्मचारियों की वर्क-लाइफ बैलेंस भी बेहतर होगी।

क्या कंपनियों को मूर्ति की सलाह माननी चाहिए?

बिल्कुल! अगर कंपनियां अपने कर्मचारियों के प्रति ज़िम्मेदारी समझें और वेतन असमानता को कम करने की दिशा में कदम बढ़ाएं, तो यह कदम पूरे कॉरपोरेट सेक्टर के लिए एक नई दिशा तय कर सकता है।

नारायण मूर्ति जैसे अनुभवी उद्योगपति के इस सुझाव पर गंभीरता से विचार किया जाना चाहिए। सफल कंपनियां वे होती हैं जो अपने कर्मचारियों की भलाई को प्राथमिकता देती हैं। अब देखना होगा कि भारतीय कॉरपोरेट सेक्टर इस सुझाव को कितनी गंभीरता से लेता है!

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