भोपाल । प्रदेश की राजधानी भोपाल में ई-कचरा तेजी से बढता जा रहा है, वहीं नगर निगम इस कचरे के निस्तारण को लेकर लापरवाह बना हुआ है। जनजागरुकता के अभाव में शहर के लोग भी इसके जोखिम से बेपरवाह बने हुए हैं। इलेक्ट्रानिक कचरे की वजह से शहर की लाखों महिलाओं व बच्चों के स्वास्थ्य पर खतरा मंडरा रहा है।
विशेषज्ञों का कहना है कि शहर में हजारों महिलाएं व बच्चे प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रुप से कचरा कलेक्शन से जुड़े हुए हैं। कई बार ये लोग ई कचरे के संपर्क में भी आते है। यह कचरा न केवल उन महिलाओं व बच्चों के स्वास्थ्य पर असर डालता है, बल्कि यह कचरा उनके अजन्मे बच्चे को भी खतरे में डाल रहा है।
प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के वैज्ञानिक हर्षवर्द्धन ठक्कर ने बताया कि ई कचरे के संपर्क में आने वाले बच्चे अपने छोटे आकार, कम विकसित अंग व विकास की तीव्रता की वजह से अपने आकार की तुलना में अधिक प्रदूषकों को अवशोषित करते हैं। उनका शरीर विषाक्त पदार्थों को झेलने और शरीर से बाहर निकालने में वयस्कों की तुलना में कम है।
वहीं एक गर्भवती महिला के इस कचरे के संपर्क में आने से उसके साथ अजन्मे बच्चे के स्वास्थ्य व विकास पर भी खतरा है। इसके कारण बच्च्ो का समय से पहले जन्म, मृत्यु व उसके विकास पर असर पड़ता है। साथ ही यह उसके मानसिक विकास, बौद्धिक क्षमता व बोलने की शक्ति को भी प्रभावित करता है। ठक्कर ने बताया कि ई-कचरा बच्चों के सांस लेने की क्षमता और फेफड़ों के कार्य प्रणाली पर भी असर डालता है।
यह बच्चों के डीएनए को भी नुकसान पहुंचा सकता है। इससे थायरायड संबंधी विकार और बाद में उनमें कैंसर और हृदय रोग के खतरे को बढ़ा देता है। ईवेस्ट संग्रहण को लेकर प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड 2010 से अभियान चला रहा है। लेकिन बोर्ड को भी जानकारी नहीं है कि प्रदेश का ईवेस्ट कहां जा रहा है, उस कचरे का रिसाइकिल कहां हो रहा है। वैसे बीते सालों में प्रशासन ने बढ़ते ईवेस्ट के खतरे को कम करने के लिए प्रदेश भर में 270 कलेक्शन सेंटर प्रस्तावित हैं, लेकिन भोपाल व इंदौर में दो कलेक्शन सेंटर के अलावा अभी शुरू नही हो सके।
अधिकारियों का कहना है कि केन्द्र सरकार से ईवेस्ट को लेकर बीते दो सालों से एक सेंट्रलाइज प्लेटफार्म तैयार करने के लिए पत्राचार कर रहे हैं। जाकि बोर्ड को पता चल सके कि राजधानी में कितना ई-कचरा कलेक्ट हो रहा है और कितना रिसाइकिल होकर यूज हो रहा है। पर्यावरण एक्सपर्ट आलोक जैन ने बताया कि ई-वेस्ट को खुले में फेंकने या कबाड़ी को बेचने वालों पर 3 लाख तक की पेनाल्टी या एक साल की सजा प्रावधान है।
लेकिन ई-वेस्ट मैनेजमेंट रैगपिकर्स अपलिफ्टमेंट प्रोजेक्ट द्वारा कराए गए सर्वे में सामने आया है कि शहर की 86 फीसदी आबादी को ई-वेस्ट के नियमों की जानकारी नहीं है। जबकि यह ई-कचरा पानी, जमीन के साथ हवा को भी प्रदूषित कर रहा है। इस बारे में प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अधीक्षण यंत्री एचएस मालवीय का कहना है कि नगर निगम द्वारा कचरा गाड़ियों में ईवेस्ट के लिए अलग से बाक्स बनाए गए हैं, लेकिन लोगों जागरूकता की भारी कमी है। लोग अभी भी इन गाड़ियों के बाक्स में ई-कचरा नहीं डाला जा रहा है। जबकि लोग टीवी, सेलफोन व अन्य इलेक्ट्रानिक उत्पाद खुले में फेंक रहे हैं या कबाड़ियों को बेच देते हैं।
राजधानी में ईवेस्ट को लेकर प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड 2010 से काम कर रहा है। लेकिन भोपाल में ईवेस्ट रिसाइकलिंग के लिए कोई प्लांट नही है।
जहां इसकी डिस्मेटलिंग या रिपेयरिंग कर फिर से उपयोग में लिया जा सके। जो रिसाइकलिंग प्लांट है, उन्हें भोपाल से कचरा ले जाने में अधिक लागत आती है। वहीं नगर निगम के अपर आयुक्त एमपी सिंह का कहना है कि शहर में ई-कचरे को एकत्रित करने के लिए निगम के कचरा वाहनों में अलग से बाक्स लगाए गए हैं। इसे प्लांट में ले जाकर अलग किया जाएगा और रिसाइकिल प्लांट भेजा जाएगा। ई वेस्ट को लेकर निगम सख्ती से काम कर रहा है।