सीएनएन सेंट्रल न्यूज़ एंड नेटवर्क–आईटीडीसी इंडिया ईप्रेस /आईटीडीसी न्यूज़ भोपाल : मध्यप्रदेश सरकार एक बार फिर वैश्विक निवेशक शिखर सम्मेलन (GIS) के जरिए बड़े-बड़े दावे करने को तैयार है। मुख्यमंत्री मोहन यादव की सरकार उद्योगपतियों और निवेशकों के स्वागत में करोड़ों रुपये खर्च कर रही है, लेकिन पिछले छह समिट की हकीकत देखें तो निवेश के नाम पर सिर्फ खोखले दावे ही सामने आए हैं।
छह इन्वेस्टर्स समिट, लेकिन निवेश सिर्फ 10%
2003 से 2023 तक हुए छह ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिट में कुल 32 लाख 45 हजार करोड़ रुपये के निवेश प्रस्ताव आए। लेकिन जमीन पर उतरा निवेश महज 3.47 लाख करोड़ रुपये, जो कुल दावे का सिर्फ 10% था। रिपोर्ट्स बताती हैं कि वास्तविकता में यह आंकड़ा सिर्फ 3% है।
इन्वेस्टर्स समिट की हकीकत
2007 में 1.2 लाख करोड़ रुपये के निवेश का दावा किया गया, लेकिन जमीन पर केवल 17,311 करोड़ ही आया। 2010, 2012, 2014 और 2016 में भी बड़े दावे किए गए, लेकिन हकीकत में निवेश के नाम पर राज्य को ठगी ही मिली। 2023 में शिवराज सरकार ने 15.42 लाख करोड़ के निवेश और 29 लाख रोजगार सृजन का दावा किया, लेकिन हकीकत में सिर्फ 1.95 लाख करोड़ का निवेश आया और 38,000 नौकरियां ही बनीं।
विदेशी निवेश में एमपी की दयनीय स्थिति
2019-2022 के बीच मध्यप्रदेश को सिर्फ 38,000 करोड़ रुपये का विदेशी निवेश मिला, जो देश में कुल विदेशी निवेश का मात्र 0.33% है। महाराष्ट्र, कर्नाटक, गुजरात और दिल्ली इस मामले में कहीं आगे हैं।
कमलनाथ सरकार ज्यादा सफल
2019 में कांग्रेस सरकार के मैग्निफिसेंट एमपी समिट में 74,000 करोड़ रुपये के निवेश प्रस्ताव आए और 30,000 करोड़ रुपये का निवेश जमीन पर उतरा। इसकी सफलता दर 66% रही, जो भाजपा सरकार से कहीं बेहतर थी।
निष्कर्ष
मध्यप्रदेश की भाजपा सरकार सिर्फ MOU साइन करके दिखावटी निवेश के दावे कर रही है। निवेश के नाम पर राज्य की जनता को ठगा जा रहा है, और वास्तविकता में रोजगार और उद्योग अब भी दूर की बात हैं।
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