सीएनएन सेंट्रल न्यूज़ एंड नेटवर्क–आईटीडीसी इंडिया ई प्रेस /आईटीडीसी न्यूज़ भोपाल : मध्य प्रदेश भोज मुक्त विश्वविद्यालय में आज संविधान दिवस की पूर्व संध्या पर एक कार्यक्रम का आयोजन किया गया। कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में निदेशक अनिल पारे, सेवानिवृत, जिला एवं सत्र न्यायाधीश उपस्थित रहे। इस अवसर पर कार्यक्रम की अध्यक्षता संजय तिवारी, कुलगुरु, मध्य प्रदेश भोज मुक्त विश्वविद्यालय ने की। साथ ही कार्यक्रम संयोजक एवं विश्वविद्यालय के कुलसचिव सुशील कुमार मंडेरिया भी कार्यक्रम में शामिल रहे।

इस मौके पर विषय प्रवर्तन विश्वविद्यालय के निदेशक एवं नोडल अधिकारी डॉ.रतन सूर्यवंशी द्वारा किया गया। संविधान दिवस के अवसर पर सदन में उपस्थित सभी ने संविधान की रक्षा करने एवं संविधान को सर्वोपरि रखने हेतु शपथ भी ली।
कार्यक्रम में विषय प्रवर्तन करते हुए निदेशक रतन सूर्यवंशी ने कहा कि, भारतीय संविधान हमारा गौरव है, हमारा स्वाभिमान है। संविधान दिवस हर वर्ष मनाया जाता है और इसी उपलक्ष्य में आज हमने बहुत ही हर्ष के साथ संविधान दिवस का कार्यक्रम आयोजित किया है।
इस अवसर पर मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित पूर्व न्यायाधीश अनिल पारे ने अपने उद्बोधन में संविधान निर्माण की पृष्ठभूमि को रेखांकित किया। उन्होंने कहा कि, संविधान की मूल आत्मा उसकी प्रस्तावना है। भारतीय संविधान भारतीय जीवन मूल्यों से अनुप्राणित है। डॉ. पारे ने अपने शब्दों को गायत्री मंत्र के साथ सम्मिलित किया। उन्होंने कहा जिस प्रकार हम अपने कष्टों को दूर करने, दुःखों को त्यागने और सुखों की प्राप्ति के लिए ईश्वर के दरवाज़े पर घंटी बजाते हैं ठीक उसी प्रकार संविधान से भी नाता हर एक भारतीय का है। उन्होंने विभिन्न प्रसंगों के माध्यम से विद्वत्तापूर्ण व्याख्या की । निदेशक पारे में 15 अगस्त 1947 के तुरंत बाद स्वतंत्रता सेनानियों के मध्य उत्पन्न चिंता और उसपे चिंतन को विस्तार से सरल वाक्यों में सभा के समझाया और बताया कि, किस प्रकार आजादी के बाद विचार विमर्श करके विभिन्न देशों के संविधानों का अध्ययन कर भारत के लिए उत्कृष्ट संविधान बनाया। जिसमें 2 साल 11 महीने और 18 दिन का वक्त लगा। इसके बाद देश के संविधान की रचना पूर्ण हुई और 26 नवंबर 1949 को देश का संविधान तैयार हुआ।
कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए भोज मुक्त विश्वविद्यालय के कुलगुरु संजय तिवारी ने कहा कि, अंबेडकर जी ने कहा था कि, संविधान हमें अपनी सीमाओं के बारे में बताता है। हमें अपने अधिकारों के साथ कर्तव्यों को भी समझना चाहिए। 1940 से 1949 तक का समय बहुत ही मनमानियों से भरा था उस दौरान सभी अपने अपने हिसाब से चल रहे थे।

कोई नियम कायदा बताने वाला नहीं था। उन्हें नंदलाल बोस जो कि एक महान चित्रकार थे उनका एक किस्सा उदाहरण के साथ बताया। नंदलाल बोस ने संविधान को भी अपनी चित्रकारी में उकेरा था।प्रो. तिवारी ने कहा कि, संविधान सबको स्वतंत्रता देता है कि सबके साथ सबका विकास हो। अंत में उन्होंने कहा कि, बच्चे देश का भविष्य हैं, और उनकी रुचि जानके उन्हें उसी राह पर उभरने के लिए प्रोत्साहित करें।
संविधान दिवस के इस आयोजन पर विश्वविद्यालय के कुलसचिव सुशील कुमार मंडेरिया ने भी आभार प्रदर्शन के पूर्व अपने विचार सदन में साझा किए। उन्होंने कहा कि, भारत एक राष्ट्रपुरुष है। हम बहुत भाग्यशाली हैं कि हमारे भारत का संविधान तैयार करने के लिए इतनी कड़ी मेहनत की गई और आज हमारे भारत का संविधान हमारा गौरव है।
इस अवसर पर प्रोफेस्सर ऑफ़ प्रेक्टिस पूर्व आईपीएस अधिकाररी बी. बी. शर्मा द्वारा भी विचार व्यक्त किये गए।
कार्यक्रम के मुख्य अतिथि न्यायाधीश अनिल पारे ने सभा में उपस्थित सभी सदस्यों को संविधान के प्रस्तावना की शपथ दिलाई।
कार्यक्रम का संचालन विश्वविद्यालय के निदेशक रतन सूर्यवंशी द्वारा किया गया। अंत में राष्ट्रगान के साथ कार्यक्रम का समापन हुआ। इस अवसर पर विश्वविद्यालय के समस्त अधिकारी शिक्षक व कर्मचारी गण उपस्थित रहे।

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