सीएनएन सेंट्रल न्यूज़ एंड नेटवर्क–आईटीडीसी इंडिया ई प्रेस /आईटीडीसी न्यूज़ भोपाल : मध्य प्रदेश भोज मुक्त विश्वविद्यालय में चल रही दो दिवसीय राष्ट्रीय कार्यशाला का सफल समापन। नई शिक्षा नीति- 2020 के अंतर्गत समाजशास्त्र विषय में भारतीय ज्ञान परंपरा को समाहित करने के संदर्भ में विश्वविद्यालय में आयोजित कार्यशाला का विषय था – “भारत के लिए भारत का सामाजिक विज्ञान”। कार्यशाला में देश भर से आए महान समाजशास्त्री शिक्षाविदों ने गहन विचार विमर्श के बाद कुछ महत्वपूर्ण निष्कर्ष निकले जिसका परिणाम जल्दी ही हमें पाठ्यक्रम में परिवर्तन के रूप में देखने को मिल सकेगा।


कार्यशाला में मुख्य रूप से उपस्थित रहे समाजशास्त्रियों में निदेशक पी. वी. कृष्ण भट्ट, संरक्षक, राष्ट्रीय समाज विज्ञान परिषद, नई दिल्ली, प्विघ्नेश भट्ट, उपाध्यक्ष, राष्ट्रीय समाज विज्ञान परिषद, नई दिल्ली, निदेशक दीप्ति शंकर, उड़ीसा केंद्रीय विश्वविद्यालय, उड़ीसा, तान्या मोहंती, कटक, उड़ीसा, आर. राजेश, बंगलौर विश्वविद्यालय, बंगलुरू, प्रो. जी. शिवरामकृष्णन (सेवा निवृत्त), बंगलौर विश्वविद्यालय, बंगलुरू बी. बी. मोहंती, केंद्रीय विश्वविद्यालय, पुडुचेरी उपस्थित रहे एवं दोनों दिवसों के तकनीकी सत्रों।
दो दिवसीय कार्यशाला की अध्यक्षता कर रहे निदेशक संजय तिवारी, कुलगुरु, मध्य प्रदेश भोज मुक्त विश्वविद्यालय इस अवसर पर उपस्थित रहे। साथ ही विश्वविद्यालय के सहा – कुलसचिव नितिन सांगले ने भी अपनी उपस्थिति दर्ज कराई। कार्यशाला के अंत में सभी शोधार्थी प्रतिभागियों को प्रमाण पत्र वितरित किए गए।
समापन समारोह में निदेशक पी. वी. कृष्ण भट्ट, संरक्षक, राष्ट्रीय समाज विज्ञान परिषद, नई दिल्ली ने विचार व्यक्त करते हुए दो दिवसीय कार्यशाला का निष्कर्ष सदन के समक्ष रखा और आश्वस्त किया कि, जल्द ही हम नई शिक्षा नीति- 2020 के तहत समाजशास्त्र में भारतीय ज्ञान परंपरा को समाहित करने और भारत में भारतीय समाज विज्ञान का दायरा बढ़ाने में खरे उतरेंगे। हमने पश्चिमी पद्धितियों का अनुभव बहुत लिया, अब समय है भारतीय सभ्यता और अपने विचारों को पाठ्यक्रम में समाहित करने का समय आ गया है। जितना जल्दी संभव हो हमें पश्चिम का चश्मा उतारकर आध्यात्म को अपनाना होगा। जो धर्म के विरुद्ध हो, वह अर्थ और काम को हमे त्याग देना होगा।

सभी तकनीकी सत्रों में उपस्थित शिक्षाविदों ने अपने अपने प्रश्न पत्रों एवं उसकी इकाई वार परिवर्तन पर चर्चा करते हुए अपने अनुभव साझा किए साथ ही कुछ निष्कर्ष भी निकले। इसके अतिरिक्त कार्यशाला में उपस्थित प्रतिभागियों ने अपने विचार एवं सुझाव प्रकट किए। एक प्रतिभागी निदेशक संतोष भदौरिया ने दो दिवसीय कार्यशाला का सार प्रस्तुत किया।
उन्होंने कहा कि, हमें सबसे पहले यह अध्ययन करना होगा कि भारतीय ज्ञान परंपरा का उद्देश्य है क्या.? इसे पूरी तरह लागू करने से पहले हमें इसे अच्छे से समझना होगा। हमें भारतीयता को बढ़ाने के लिए सबसे पहले 3 भाषाओं को जानना और समझना जरूरी है। इसे अपनी परंपरा में शामिल करना जरूरी है। आज की कार्यशाला के उद्देश्य को अगर हम पूरा करना चाहते हैं तो हम इसे बचपन से ही बच्चों में रोपित करना होगा। हमें अपने आसपास के वातावरण में, बचपन से ही भारतीय ग्रंथों के बारे में बताना और समझना होगा और उन्हें इस बात के लिए भी प्रोत्साहित करना होगा कि, वे पश्चिमी तथ्यों को छोड़ भारतीय विषयों में अपनी रुचि दिखाएं एवं इनमें ही अपने शोध कार्य पूरे करें। हमें पश्चिम की आदतों को छोड़ना होगा तभी हम देश के आध्यात्म को अपना पाएंगे। पर्यावरण बचाना है तो इसके लिए सबसे पहले प्रकृति को बचाना आवश्यक होगा।
कार्यशाला के अंत में आभार प्रदर्शन विश्वविद्यालय के सहा- कुलसचिव नितिन सांगले द्वारा किया गया। कार्यक्रम का संचालन विश्वविद्यालय की निदेशक अनिता कौशल द्वारा किया गया। इस अवसर पर बड़ी संख्या में प्रतिभागी एवं समस्त भोज परिवार उपस्थित रहा।

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