नई दिल्ली । साल 2020 में सीमा पर जानलेवा हिंसा से उपजे तनाव के बाद भारत ने चीनी कंपनियों पर तमाम पाबंदियां लाद दी थीं। हालांकि, मुताबिक अब मोदी सरकार नरमी बरतने पर विचार कर रही है। भारत ने चीन के जिन निवेशों पर प्रतिबंध लगाए थे, अब वह उनमें कुछ ढील देने पर विचार कर रहा है। मीडिया संस्थान ब्लूमबर्ग ने यह जानकारी इस मामले से जुड़े कुछ लोगों से बातचीत के आधार पर दी है।
मौजूदा नियम यह कहते हैं कि भारत जिन देशों के साथ सीमा साझा करता है, अगर उन देशों की कोई इकाई भारत में निवेश करती है, तो इसके लिए उसे भारत सरकार से अलग से इजाजत लेनी होगी। यानी कोई भी इकाई तथाकथित स्वचालित तरीके से निवेश नहीं कर सकती है। ब्लूमबर्ग की रिपोर्ट के मुताबिक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार अब उन कंपनियों के प्रस्तावों को छूट देने पर विचार कर रही है, जिनमें विदेशी मालिकाना हक 10 फीसदी से कम है।
रिपोर्ट के मुताबिक आज की तारीख में करीब 6 अरब डॉलर के प्रस्ताव लालफीताशाही की वजह से अटके हुए हैं। इन्हीं हालात में सरकार ने चीनी निवेश के प्रस्तावों पर दोबारा विचार करना शुरू किया है। अगले महीने तक इस पर किसी तरह का फैसला लिया जा सकता है साल 2020 में भारत और चीन के बीच सीमा पर विवाद इतना बढ़ गया था कि झड़प में कई सैनिकों की जान चली गई थी। इससे बढ़े राजनीतिक तनाव का असर व्यापारिक रिश्तों पर भी पड़ा था। इसके बाद भारत ने अपने यहां कारोबार करने वाली चीनी कंपनियों पर कड़े प्रतिबंध लगा दिए थे। इस सिलसिले में चीनी मोबाइल फोन, स्मार्टफोन एप्लिकेशन और चीन से आने वाले सामानों पर निगरानी तेज कर दी गई थी।
हालांकि, चीनी मीडिया में इसे मजबूरी में उठाया कदम बताया जा रहा है। भारत ने पूर्व में अपने जो नियम कड़े किए थे, उसे चीनी मीडिया में सिर्फ चीन को निशाना बनाने वाले नियम बताया जाता है। चीनी मीडिया संस्थान के मुताबिक भारत विदेशी निवेश कम होने की सूरत में ऐसे कदम पर विचार कर रहा है, लेकिन बीते वक्त में चीनी व्यापारों पर जिस तरह की जांच और पाबंदियां लगाई गईं, उससे व्यापारियों का भारत में भरोसा डिगा है। ऐसे में भारत का यह कदम उत्साहजनक तो हो सकता है, लेकिन कंपनियां फूंक-फूंककर ही कदम रखेंगी