नई दिल्ली । देश में एक जुलाई से सिंगल यूज प्लास्टिक पर पाबंदी लगने वाली है। कई देसी-विदेशी बेवेरज कंपनियों ने प्लास्टिक स्ट्रॉ को इसमें छूट देने की मांग की थी लेकिन मोदी सरकार ने इस मांग को ठुकरा दिया है। इससे पेप्सी और कोका कोला सहित कई कंपनियों की बिक्री प्रभावित होने की आशंका है। सिंगल यूज प्लास्टिक को पर्यावरण के लिए बेहद हानिकारक माना जाता है।

ये प्लास्टिक उत्पाद लंबे समय तक पर्यावरण को नुकसान पहुंचाते हैं। सरकार ने सिंगल यूज प्लास्टिक पर प्रतिबंध लगाने के लिए पिछले साल अगस्त में एक अधिसूचना जारी की थी। इसमें एक जुलाई से इस तरह के तमाम आइटमों पर पाबंदी लगाने को कहा गया था। इसके बाद केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) ने सभी संबंधित पक्षों को नोटिस जारी करते हुए उन्हें 30 जून तक सिंगल यूज प्लास्टिक पर पाबंदी के लिए सारी तैयारी पूरी करने को कहा था। बेवरेज में इस्तेमाल होने वाला स्ट्रॉ भी इसी कैटगरी में आता है।

इसकारण बेवरेज बनाने वाली कंपनियों ने सरकार से इसमें छूट देने का अनुरोध किया था। रिपोर्ट के मुताबिक सरकार ने उनके अनुरोध को खारिज कर दिया है। इससे अरबों डॉलर की इस इंडस्ट्री के प्रभावित होने का खतरा पैदा हो गया है। देश में जूस और डेयरी प्रॉडक्ट्स के छोटे पैक्स के साथ स्ट्रॉ होता है। देश में इनकी सालाना बिक्री 79 करोड़ डॉलर की है। इस इंडस्ट्री की संस्था के प्रमुख ने कहा कि हम इस लेकर चिंतित हैं क्योंकि यह उस समय लागू हो रहा है, जब देश में डिमांड चरम पर होगी। इससे उपभोक्ता और ब्रांड मालिकों को परेशानी होगी।

संस्था में पेप्सिको, कोकाकोला, पार्ले एग्रो और डाबर जैसी कंपनियों का प्रतिनिधित्व है। इसके साथ ही डेयरी कंपनियां भी स्ट्रॉ को बैन से अलग रखने की मांग कर रही हैं। उनका कहना है कि इसका कोई विकल्प नहीं है। पर्यावरण मंत्रालय ने उनकी मांग को खारिज करते हुए छह अप्रैल के मेमो में कहा है कि इंडस्ट्री को इसके विकल्प की तरफ जाना चाहिए। उन्हें इसके लिए एक साल का समय दिया गया था। इस बारे में पर्यावरण मंत्रालय ने तत्काल कोई टिप्पणी नहीं की। पेप्सी ने टिप्पणी करने से इंकार कर दिया जबकि कोकाकोला और दूसरी कंपनियों ने सवालों का जवाब नहीं दिया। बता दें कि देश में पांच से 30 रुपये तक की कीमत वाले जूस और डेयरी प्रॉडक्ट्स बेहद लोकप्रिय हैं। पेप्सी का ट्रॉपिकाना, डाबर का रियल जूस, कोकाकोला का माजा और पार्ले एग्रो का फ्रूटी छोटे पैक में आता है और इनके साथ स्ट्रॉ भी होता है।

संस्था की दलील है कि ऑस्ट्रेलिया, चीन और मलेशिया जैसे देशों में स्ट्रॉ के इस्तेमाल की अनुमति है। इंडस्ट्री के जानकारों का कहना है कि स्ट्रॉ पर बैन से उनकी सप्लाई पर असर पड़ेगा। स्ट्रॉ का विकल्प अपनाने से कीमत बढ़ेगी और उनका बिजनस प्रभावित होगा। वहीं दूसरे तरह के स्ट्रॉ की सप्लाई चेन बनाने के लिए इंडस्ट्री को कम से कम 15 से 18 महीने चाहिए। उन्होंने कहा कि वह फिर से सरकार को मनाने की कोशिश करने वाले हैं।