प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का तीसरी बार चुनाव जीतना भारत की राजनीति और वैश्विक पहचान के लिए एक महत्वपूर्ण क्षण है। एक दशक की सत्ता के बाद, मोदी से उम्मीदें बढ़ गई हैं कि वह भारत को एक प्रमुख वैश्विक शक्ति के रूप में स्थापित करेंगे। लेकिन अवसरों के साथ चुनौतियां भी उतनी ही बड़ी हैं।
देश के भीतर, तीसरे कार्यकाल से उम्मीद है कि वह बढ़ती आर्थिक असमानताओं को दूर करेंगे और रोजगार के नए अवसर प्रदान करेंगे। हालांकि, आलोचकों का मानना है कि अब तक की नीतियां बड़े उद्योगों को बढ़ावा देती दिखी हैं, जबकि छोटे व्यवसायों और कृषि क्षेत्र को नज़रअंदाज़ किया गया है। यदि मोदी अपनी आलोचनाओं को दूर करना चाहते हैं, तो उन्हें समावेशी आर्थिक नीतियों को प्राथमिकता देनी होगी।
वैश्विक स्तर पर, भारत एक प्रमुख शक्ति के रूप में अपनी पहचान बनाना चाहता है, जिसका प्रतीक है संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में स्थायी सीट की महत्वाकांक्षा। मोदी की विदेश नीति ने रणनीतिक साझेदारियां मजबूत की हैं और जलवायु परिवर्तन व वैश्विक व्यापार सुधार जैसे मुद्दों पर नेतृत्व दिखाया है। लेकिन रूस और चीन जैसे अधिनायकवादी शासन और पश्चिमी लोकतंत्रों के बीच संतुलन बनाए रखना एक चुनौती बनी रहेगी।
भारत के लोकतांत्रिक मूल्यों को मजबूत करने की भी मोदी से उम्मीद है। प्रेस की स्वतंत्रता, न्यायपालिका की स्वायत्तता और अल्पसंख्यकों के अधिकारों को लेकर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर आलोचनाएं बढ़ी हैं। इन मुद्दों पर पारदर्शिता से काम करना न केवल भारत की आंतरिक स्थिरता के लिए आवश्यक है, बल्कि इसकी वैश्विक साख के लिए भी अनिवार्य है।
अंततः, मोदी का तीसरा कार्यकाल उनके लिए एक अवसर है कि वह अपनी विरासत को ऐसे नेता के रूप में स्थापित करें, जिसने भारत को एक समृद्ध और समावेशी वैश्विक महाशक्ति में परिवर्तित किया। वह इन चुनौतियों का सामना कर पाते हैं या आत्मसंतोष का शिकार हो जाते हैं, यह उनके राजनीतिक करियर के साथ-साथ भारत के भविष्य को भी परिभाषित करेगा।
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