सीएनएन सेंट्रल न्यूज़ एंड नेटवर्कइंटीग्रेटेड ट्रेडन्यूज़ भोपाल: जबलपुर: मासूम बच्चों के सुसाइड के मामले मध्य प्रदेश में लगातार बढ़ रहे हैं। छोटी-छोटी बातों पर बच्चे आत्महत्या जैसे कठोर कदम उठा रहे हैं। हाल ही में इंदौर में एक नाबालिग लड़की ने ऐसा ही कदम उठाया था और अब जबलपुर में भी एक और दर्दनाक घटना सामने आई है। जबलपुर जिले के गढ़ा थाना क्षेत्र के गुप्ता नगर में गुरुवार को एक 14 वर्षीय छात्रा ने फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली।

पुलिस जांच के मुताबिक, बच्ची को उसकी मां ने मोबाइल पर गेम खेलने से मना किया था और डांट लगाई थी। बताया जा रहा है कि बच्ची की मां सुनंदा सिंह जबलपुर मेडिकल कॉलेज में स्टाफ नर्स हैं। पिता का निधन कोरोना काल में हो गया था, और आरुषि उनकी इकलौती बेटी थी।

घटना बुधवार रात की है जब सुनंदा सिंह नाइट ड्यूटी पर जाने के लिए तैयार हो रही थीं। उन्होंने देखा कि आरुषि मोबाइल पर गेम खेल रही थी। मां ने नाराजगी जताई और उसे पढ़ाई पर ध्यान देने को कहा। मोबाइल छीनने के बाद सुनंदा ने घर को लॉक किया और ड्यूटी पर चली गईं।

गुरुवार सुबह जब सुनंदा घर लौटीं और ताला खोला, तो उन्होंने देखा कि आरुषि फंदे पर लटकी हुई थी। शोर सुनकर आसपास के लोग भी वहां आ गए और पुलिस को सूचना दी। पुलिस ने मौके पर पहुंचकर बच्ची के शव को फंदे से उतारा और पोस्टमार्टम के लिए जिला अस्पताल भेजा।

*सोशल मीडिया और पारिवारिक दबाव बने आत्महत्या के कारण*

उज्जैन के मनोचिकित्सक डॉक्टर नीत राज गौर बताते हैं कि आजकल बच्चों पर सोशल मीडिया का गहरा असर पड़ रहा है। वे अपने जीवन की तुलना सोशल मीडिया पर देखे गए जीवन से करने लगते हैं। ऐसी घटनाओं के पीछे पारिवारिक वजह भी एक बड़ी भूमिका निभाती है।

परिवार में माता-पिता के बीच की खटपट और बच्चों पर बढ़ते शैक्षणिक दबाव के कारण बच्चे अवसाद में चले जाते हैं और डिप्रेशन का शिकार हो जाते हैं। यह भी देखा गया है कि अन्य बच्चों से तुलना करने पर बच्चे मानसिक दबाव में आ जाते हैं। प्रतिस्पर्धा का बढ़ता स्तर भी बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य पर बुरा असर डालता है।

विशेषज्ञों का कहना है कि बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य को बेहतर बनाने के लिए पारिवारिक माहौल को सकारात्मक और सहयोगात्मक रखना बेहद जरूरी है।

*जागरूकता और समर्थन जरूरी*

मनोचिकित्सकों का मानना है कि इस प्रकार की घटनाओं से बचने के लिए परिवारों में जागरूकता बढ़ाना और बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य का ख्याल रखना बेहद जरूरी है। परिवार और समाज को मिलकर ऐसे मामलों में संवेदनशीलता और समझदारी दिखानी होगी ताकि मासूम जिंदगियां बचाई जा सकें।