पीथमपुर की रामकी फैक्ट्री से जुड़े मामले में उच्च न्यायालय में सरकार का यह बयान कि “गुमराह करने से हालात बिगड़े,” न केवल गंभीर है, बल्कि यह एक बड़ी समस्या की ओर इशारा करता है। खतरनाक कचरे के प्रबंधन में लापरवाही और गलतफहमियां पर्यावरण और सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिए बड़ा खतरा पैदा कर सकती हैं।

रामकी फैक्ट्री में कंटेनरों को खाली करने की अनुमति मिलने के बाद यह उम्मीद की जा सकती है कि अब इस कचरे का सुरक्षित निपटान होगा। लेकिन इस मुद्दे पर उठे विवाद और भ्रामक जानकारी ने एक बार फिर से यह स्पष्ट कर दिया है कि पर्यावरणीय मामलों में पारदर्शिता और जवाबदेही कितनी आवश्यक है।

सरकार और प्रशासन की जिम्मेदारी है कि वे नागरिकों को सही जानकारी दें और इस तरह की समस्याओं से बचने के लिए जागरूकता अभियान चलाएं। साथ ही, यह भी सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि खतरनाक कचरे के प्रबंधन में वैज्ञानिक प्रक्रियाओं का पालन हो और कोई भी फैक्ट्री अपने कर्तव्यों से पीछे न हटे।

यह मामला उन संगठनों के लिए एक सबक है जो पर्यावरण सुरक्षा को लेकर लापरवाह हैं। उच्च न्यायालय ने 18 फरवरी की सुनवाई में जो भी निर्णय लिया, उससे पहले सरकार को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि भविष्य में ऐसी स्थिति दोबारा न पैदा हो।

आज जब पर्यावरणीय मुद्दे वैश्विक चिंता का विषय बने हुए हैं, तब इस तरह की घटनाएं न केवल हमारे सिस्टम की खामियों को उजागर करती हैं, बल्कि यह भी दिखाती हैं कि हमारी प्राथमिकताएं क्या होनी चाहिए। पर्यावरण संरक्षण के प्रति लापरवाही किसी भी सूरत में स्वीकार्य नहीं हो सकती।

सिर्फ दोषारोपण से समस्याओं का समाधान नहीं होगा। अब समय आ गया है कि सरकार, फैक्ट्रियां और नागरिक मिलकर ऐसी योजनाओं पर काम करें, जो पर्यावरण और लोगों के स्वास्थ्य को प्राथमिकता दें। पारदर्शिता, जागरूकता, और जिम्मेदारी ही ऐसे मामलों में स्थायी समाधान ला सकती है।

#गुमराहकरनेवालाअपराध #सख्तकार्रवाई #राजनीतिकसमाचार