सीएनएन सेंट्रल न्यूज़ एंड नेटवर्कआईटीडीसी इंडिया ईप्रेस /आईटीडीसी न्यूज़ भोपाल: ‘मेरा टारगेट अभी पूरा नहीं हुआ, अभी गोल्ड जीतना बाकी है।’

यह कहना है पेरिस ओलिंपिक में भारत को ब्रॉन्ज मेडल दिलाने वाले राइफल शूटर स्वप्निल कुसाले का। 29 साल के स्वप्निल 50 मीटर राइफल थ्री पोजिशन इवेंट में ओलिंपिक मेडल जीतने वाले पहले भारतीय निशानेबाज हैं। इस पर वे कहते हैं, ‘अच्छा लगता है जब आप ऐसे पहले खिलाड़ी बनते हो। मेडल जीतकर खुश हूं।’

स्वप्निल महाराष्ट्र के पुणे में जन्मे। स्वप्निल का परिवार राधानगरी के कंबलवाड़ी गांव का रहने वाला है। स्वप्निल के पिता पेशे से टीचर हैं और उनकी मां अनीता कंबलवाड़ी गांव की सरपंच हैं। उनका भाई भी टीचर है।

स्वप्निल ने दैनिक भास्कर से अपनी जीत और ओलिंपिक तक के सफर पर बातचीत की।

भास्कर के सवालों पर स्वप्निल कुसाले के जवाब…

सवाल- इस मेडल को कैसे देखते हैं?

जवाब- मेडल जीतकर खुश हूं, लेकिन मेरा टारगेट अभी पूरा नहीं हुआ है। अभी ओलिंपिक गोल्ड जीतना बाकी है।

सवाल- यह मेडल जीतने के बाद लाइफ कितनी बदल गई?

जवाब- कुछ खास बदलाव नहीं आया, सब पहले जैसा ही है। अभी शेड्यूल थोड़ा व्यस्त है। फैमिली के साथ टाइम स्पेंड कर रहा हूं। कुछ दिनों में रेंज में वापसी करके ट्रेनिंग में जुटूंगा।

सवाल- फाइनल मुकाबला काफी टफ था। तब दिमाग में क्या चल रहा था, क्या कोई प्रेशर था?

जवाब- नहीं, प्रेशर नहीं ले रहा था। दिमाग में कोई प्रेशर न आए, इसलिए मैंने स्कोरबोर्ड पर नजर नहीं डाली। मेरा पूरा ध्यान टारेगट पर था। फाइनल में शूटिंग के दौरान भारतीय फैंस के उत्साह से समझ आ रहा था कि अच्छा शूट कर रहा हूं।

सवाल: मां सरपंच और पिता टीचर हैं। ऐसे में शूटिंग में कैसे आए?

जवाब: महाराष्ट्र में क्रीड़ा प्रबोधनी अकादमी चलती है। उसी के माध्यम से खेल में आया। बात 2008 की है, जब मेरा ट्रायल लिया गया था। मैंने एथलेटिक्स और शूटिंग के ट्रायल दिए थे, लेकिन मुझे शूटिंग में चुना गया। इसी के साथ मेरा करियर स्टार्ट हुआ। 2012 तक क्रीड़ा प्रबोधनी में ट्रेनिंग की, फिर नेशनल टीम में आ गया था।

सवाल: 2008 में करियर शुरू हुआ, फिर 2012 में नेशनल खेलने लगे, लेकिन ओलिंपिक डेब्यू काफी बाद में हुआ?

जवाब: क्रीड़ा प्रबोधनी से बाहर आने के बाद समय पर सुविधाएं नहीं मिलीं। इस कारण ओलिंपिक तक पहुंचने में देरी हुई क्योंकि ओलिंपिक लेवल तक पहुंचने में बहुत सारी चीजों का योगदान होता है।

सवाल- किन सुविधाओं की बात कर रहे हैं?

जवाब: बहुत सारी चीजें होती हैं, इक्विपमेंट, ट्रेनिंग, कोचिंग आदि। मुझे आज भी याद है कि पिताजी ने मुझे पहली राइफल दिलाई थी। बाद में पता चला कि उन्होंने उसके लिए लोन लिया था, हालांकि उन्होंने किसी भी चीज की कमी का एहसास नहीं होने दिया, लेकिन शूटिंग महंगा खेल है।

सवाल- धोनी के फैन हैं। उनसे क्या सीखा। कभी मुलाकात या बात हुई है?

जवाब- हंसते हुए…नहीं। मुझे उनका नेचर अच्छा लगता है। वे हमेशा कूल एंड कॉम रहते हैं, मैं भी खुद को उन्हीं के जैसे कूल रखने की कोशिश करता हूं। एक और समानता और जैसे फिल्म में दिखाया गया कि उन्होंने अपना पैशन फॉलो किया, मैंने भी किया। धोनी से सीखता हूं।

सवाल- एक समानता और है, आप भारत के लिए ओलिंपिक मेडल जीतने वाले 7वें शूटर बने हैं?

जवाब- ये तो और भी अच्छी बात है। उनसे एक और कनेक्शन जुड़ गया। धोनी की जर्सी का नंबर 7 है।