भारत के 13वें प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह का जीवन एक अद्वितीय प्रेरणा है। एक साधारण परिवार में जन्मे, शिक्षा के प्रति उनका समर्पण और निष्ठा ने उन्हें विश्व के महान अर्थशास्त्रियों में शामिल कर दिया। लेकिन उनके राजनीतिक जीवन की यात्रा भी उतनी ही दिलचस्प और संघर्षों से भरी रही है।

शुरुआती जीवन और शिक्षा

मनमोहन सिंह का जन्म 1932 में पंजाब (अब पाकिस्तान में) के एक साधारण सिख परिवार में हुआ। विभाजन के दौरान उनका परिवार भारत आ गया। शिक्षा के प्रति उनका लगाव बचपन से ही स्पष्ट था। उन्होंने पंजाब विश्वविद्यालय, कैम्ब्रिज और ऑक्सफोर्ड जैसे प्रतिष्ठित संस्थानों से शिक्षा ग्रहण की। उनकी विद्वता इतनी गहरी थी कि उन्हें कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय ने ‘बेस्त आल राउंडर’ छात्र के रूप में सम्मानित किया।

अकादमिक करियर से ब्यूरोक्रेसी तक का सफर

अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद, उन्होंने पंजाब विश्वविद्यालय और दिल्ली स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स में प्रोफेसर के रूप में पढ़ाया। लेकिन उनकी असाधारण प्रतिभा ने उन्हें भारतीय प्रशासनिक सेवा (IAS) की ओर खींचा। उन्होंने आर्थिक सलाहकार और वित्त मंत्रालय के सचिव के रूप में कार्य किया। अंतरराष्ट्रीय मंच पर भी उन्होंने भारत का प्रतिनिधित्व किया, जिसमें विश्व बैंक और IMF जैसी संस्थाएं शामिल हैं।

1991: भारतीय अर्थव्यवस्था में बदलाव का सूत्रधार

1991 में भारत अभूतपूर्व आर्थिक संकट से गुजर रहा था। विदेशी मुद्रा भंडार खत्म होने की कगार पर था। उस समय प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव ने उन्हें वित्त मंत्री के रूप में जिम्मेदारी सौंपी।

मनमोहन सिंह ने आर्थिक उदारीकरण, निजीकरण और वैश्वीकरण की नीतियां लागू कीं, जिसने भारत की जर्जर अर्थव्यवस्था को पुनर्जीवित कर दिया। उन्होंने विदेशी निवेश के रास्ते खोले, लाइसेंस राज समाप्त किया और अर्थव्यवस्था को वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्धी बनाया।

उनकी ये नीतियां भारत की दिशा बदलने वाली साबित हुईं। हालांकि इस दौरान उन्हें विरोध और आलोचना भी झेलनी पड़ी, लेकिन वे अपने फैसलों पर अडिग रहे।

राजनीति में संघर्ष और उतार-चढ़ाव

राजनीति में मनमोहन सिंह का सफर कभी आसान नहीं रहा। उनके कार्यकाल के दौरान आलोचनाएं और विवाद भी उनके साथ जुड़े रहे। दिलचस्प बात यह है कि राजीव गांधी ने कभी उन्हें ‘जोकर’ कहकर उपहास उड़ाया था। लेकिन समय ने यह साबित कर दिया कि उनकी विद्वता और कार्यशैली उन्हें उन आलोचनाओं से ऊपर ले गई।

2004: प्रधानमंत्री बनने की कहानी

2004 के आम चुनाव में कांग्रेस पार्टी ने अप्रत्याशित जीत दर्ज की। सोनिया गांधी प्रधानमंत्री पद की पहली दावेदार थीं, लेकिन उन्होंने यह जिम्मेदारी लेने से इनकार कर दिया। इसके बाद मनमोहन सिंह को प्रधानमंत्री चुना गया।

उनका चयन कई मायनों में ऐतिहासिक था:

वे भारत के पहले सिख प्रधानमंत्री बने।

उन्होंने एक ‘विद्वान राजनेता’ के रूप में भारतीय राजनीति को नई परिभाषा दी।

उनके नेतृत्व में भारत ने आर्थिक विकास की नई ऊंचाइयों को छुआ।नेतृत्व शैली और उपलब्धियां

मनमोहन सिंह के प्रधानमंत्री रहते हुए भारत ने कई महत्वपूर्ण कदम उठाए:

1. परमाणु समझौता: अमेरिका के साथ असैनिक परमाणु समझौता, जिसने भारत को वैश्विक परमाणु मंच पर मजबूत स्थान दिलाया।

2. ग्रामीण विकास: ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (MGNREGA) जैसी योजनाओं ने गांवों में रोजगार और विकास को बढ़ावा दिया।3. आर्थिक विकास: उनके कार्यकाल में भारत की GDP वृद्धि दर 8-9% रही।

आलोचना और विवाद

मनमोहन सिंह की सादगी और ईमानदारी की प्रशंसा हमेशा हुई, लेकिन उनके कार्यकाल में घोटाले और भ्रष्टाचार के आरोपों ने उनकी छवि को प्रभावित किया। 2G स्पेक्ट्रम, कॉमनवेल्थ गेम्स जैसे विवादों ने उनके नेतृत्व पर सवाल उठाए। हालांकि, व्यक्तिगत रूप से उनकी ईमानदारी पर कभी कोई दाग नहीं लगा।

मनमोहन सिंह जी को आईटीसी न्यूज़ परिवार की श्रद्धांजलि

आईटीसी न्यूज़ परिवार उनकी प्रेरणादायक यात्रा को सलाम करता है। उनका जीवन संघर्ष और सफलता का प्रतीक है। एक साधारण परिवार में जन्म लेकर, अपनी शिक्षा और ज्ञान के बल पर उन्होंने वैश्विक स्तर पर भारत का मान बढ़ाया। उनके नेतृत्व में भारत ने आर्थिक संकट से उबरते हुए नई ऊंचाइयों को छुआ।

आज, उनकी विरासत हमें यह सिखाती है कि सच्ची सफलता सादगी, ईमानदारी और कर्मठता से ही प्राप्त होती है।
आईटीसी न्यूज़ परिवार की ओर से इस महान नेता और प्रेरणास्त्रोत को विनम्र श्रद्धांजलि।

“सादगी और विद्वता का यह युगपुरुष हमारी यादों में हमेशा जीवित रहेगा।”

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