सीएनएन सेंट्रल न्यूज़ एंड नेटवर्कआईटीडीसी इंडिया ईप्रेस / आईटीडीसी न्यूज़ भोपाल : इन दिनों, अभिनेता अनुपम खेर अपने दिवंगत दोस्त सतीश कौशिक की फिल्म कागज 2 को प्रमोट कर रहे हैं। फिल्म में वे बतौर लीड नजर आएंगे। हाल ही में दैनिक भास्कर को दिए इंटरव्यू में अनुपम खेर ने बताया कि उन्हें 30 साल के बाद पिछले साल अपने कश्मीरी होने का सबूत मिला है।

दरअसल, फिल्म की कहानी बतौर नागरिक, आधिकारिक कागज पर लिखी गई बातों का पालन करने के इर्द-गिर्द है। बातचीत के दौरान, उन्होंने सतीश कौशिक से जुड़ी कुछ यादें भी शेयर की। बातचीत के कुछ प्रमुख अंश:

दोस्त सतीश को कितना मिस करते हैं?

याद उनकी आती है जिन्हें आप भूल जाते हैं। सतीश को मैं कभी भूला ही नहीं। आज भी लगता है कि वो मेरे आस-पास ही हैं। यकीन मानिए, हम दोनों के बीच आज भी मेंटल कन्वर्सेशन होता रहता है। सतीश का यूं अचानक से चला जाना, मेरे लिए बहुत शॉकिंग था। उसके जाने दो दिन पहले हमने एक साथ डिनर किया था। फिर वो हमेशा के लिए चला गया। सतीश मेरी आदत बन चुके थे। मुझे इससे उबरने के लिए काफी समय लगेगा या शायद मैं कभी उबर भी ना पाऊं।

आज जब उनकी फिल्म प्रमोट कर रहा हूं तो लगता है कि कहीं वो मुझे डांटना शुरू ना कर दें। सतीश मुझे बहुत डांटते थे। खासकर शूटिंग के दौरान, जब वे मुझे डायरेक्ट करते थे। उसको लगता था कि मेरे ऊपर उसका कंट्रोल तभी होगा जब वो मुझे डायरेक्ट कर रहा होगा। आम जिंदगी में उसकी मुझ पर बिल्कुल चलती नहीं थी।

उसके बिना, जिंदगी अब पहले जैसी नहीं रही। अब जीना है उसकी यादों के साथ। कागज उसकी सबसे बेहतरीन फिल्मों में से एक फिल्म थी। इस सब्जेक्ट में सतीश को बहुत विश्वास था। कागज 2 को प्रमोट हम जितनी शिद्दत से हम कर सकते है, करेंगे।

क्या आपको कभी अपने हक के लिए लड़ाई लड़नी पड़ी?

मैं कश्मीरी हूं। हालांकि, इसका सबूत मुझे एक साल पहले मिला। मेरे कजिन ने डॉक्यूमेंट भेजा जो कि मेरे कश्मीरी होने का प्रमाणपत्र था। हमें 30 साल तक वो प्रमाणपत्र नहीं मिला था। मेरी मां को भी अब जाकर वो डॉक्यूमेंट मिला है। उस कागज के लिए हमने बहुत इंतजार किया। सालों बाद ही सही, लेकिन इस बात की खुशी है कि आखिरकार हमारे पास भी कश्मीरी होने का पुख्ता कागज है। कागज या डॉक्यूमेंट काफी मायने रखता है।

कागज केवल डॉक्यूमेंट ही नहीं, बल्कि मेरे लिए इमोशंस भी हैं। साल 2006 में मुंबई में आई बाढ़ में मेरे कई सर्टिफिकेट बह गए। मुझे दादा जी खत लिखते थे, वो भी चले गए। मुझे उस बात का हमेशा दुख रहता है। मेरी कई सारी किताबें, चिट्ठियां बह गई। कागज की अपनी अहमियत होती है। जरूरी नहीं की कागज से स्ट्रेस ही जुड़ा हो। कागज इस बात का एहसास है कि – ‘यार ये कागज मेरा है।’