प्रयागराज में महाकुंभ के दौरान मौनी अमावस्या के स्नान पर्व पर जो त्रासदी घटी, उसने एक बार फिर यह सोचने पर मजबूर कर दिया कि क्या हमारे धार्मिक आयोजनों में सुरक्षा प्रबंधन अब भी पर्याप्त नहीं है। भारी भीड़ के बीच मची भगदड़ में 30 से अधिक श्रद्धालुओं की जान चली गई, जबकि 60 से अधिक लोग घायल हो गए। यह घटना न केवल प्रशासनिक लापरवाही की ओर इशारा करती है, बल्कि भीड़ नियंत्रण के पुराने और असफल हो चुके तरीकों पर भी गंभीर सवाल खड़े करती है।
महाकुंभ जैसे विराट आयोजन की तैयारियां वर्षों पहले शुरू हो जाती हैं। राज्य सरकार और स्थानीय प्रशासन की ओर से बड़े-बड़े दावे किए जाते हैं कि श्रद्धालुओं की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए हर संभव उपाय किए गए हैं। लेकिन जब भी ऐसी अप्रत्याशित घटनाएं होती हैं, वे इन दावों की पोल खोल देती हैं। रिपोर्ट्स बताती हैं कि संगम तट पर अत्यधिक भीड़ बढ़ जाने से बैरिकेड्स टूट गए, जिससे भगदड़ मच गई। यह बताने के लिए काफी है कि भीड़ नियंत्रण के लिए की गई व्यवस्थाएं नाकाफी थीं और प्रशासन तैयार नहीं था।
सरकार ने मृतकों के परिजनों को 25-25 लाख रुपये की आर्थिक सहायता देने की घोषणा की है और घटना की न्यायिक जांच के आदेश भी दिए हैं। लेकिन सवाल यह है कि क्या यह मुआवजा उन परिवारों का दर्द कम कर सकता है, जिन्होंने अपनों को खो दिया? क्या जांच आयोग की रिपोर्ट आने के बाद इस तरह की घटनाओं पर रोक लग सकेगी? हर बार ऐसे हादसों के बाद मुआवजे की घोषणा कर देना और जांच के आदेश देना हमारी आदत बन चुका है। असली सुधार तब होगा जब प्रशासन वास्तविक रूप से यह सुनिश्चित करे कि भविष्य में ऐसी घटनाएं न हों।
आस्था और भक्ति के प्रति श्रद्धालुओं का उत्साह असीम होता है। महाकुंभ केवल एक धार्मिक आयोजन नहीं, बल्कि भारत की सांस्कृतिक विरासत का अभिन्न हिस्सा है। यह आयोजन पूरी दुनिया के लिए आस्था और अध्यात्म का प्रतीक है। लेकिन इसी आस्था को संरक्षित और सुरक्षित रखना प्रशासन की जिम्मेदारी बनती है। इसके लिए भीड़ प्रबंधन में आधुनिक तकनीकों का अधिकतम उपयोग होना चाहिए। CCTV निगरानी, डिजिटल मार्गदर्शन प्रणाली, सुरक्षा बलों की पर्याप्त तैनाती और भीड़ नियंत्रण के प्रभावी तरीके ही ऐसे हादसों को रोक सकते हैं।
इस घटना ने हमें एक बार फिर यह चेतावनी दी है कि धार्मिक आयोजनों में भीड़ नियंत्रण और सुरक्षा को लेकर केवल कागजी योजनाओं से काम नहीं चलेगा। वास्तविकता में ठोस उपायों की जरूरत है। जब तक सरकार, प्रशासन और जनता—तीनों अपनी जिम्मेदारी को गंभीरता से नहीं लेंगे, तब तक इस तरह की त्रासदियां होती रहेंगी। महाकुंभ जैसे पवित्र आयोजन में श्रद्धालु आस्था के साथ आएं और सुरक्षित वापस लौटें, यह सुनिश्चित करना हम सभी की सामूहिक जिम्मेदारी है।
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