मध्य प्रदेश के एक गांव में झोपड़ी में आग लगने से एक बुजुर्ग और उनकी दो नाबालिग पोतियों की मौत ने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया है। यह घटना न केवल दिल दहला देने वाली है, बल्कि ग्रामीण भारत में अग्नि सुरक्षा के प्रति हमारी लापरवाही को भी उजागर करती है।
ग्रामीण क्षेत्रों में ज्यादातर घर सस्ते लेकिन ज्वलनशील सामग्री जैसे घास, बांस और तिरपाल से बने होते हैं। ये निर्माण सामग्री आग लगने की स्थिति में बेहद खतरनाक साबित होती है। छोटे से कारण, जैसे चूल्हे से निकली चिंगारी या दीपक का गिरना, बड़ी आपदा का रूप ले सकते हैं। इन इलाकों में अग्नि सुरक्षा के उपाय लगभग ना के बराबर हैं। न तो आग बुझाने के उपकरण मौजूद हैं और न ही लोगों को इसके लिए कोई विशेष प्रशिक्षण दिया जाता है।
सरकार की योजनाएं, जैसे प्रधानमंत्री आवास योजना, ग्रामीण इलाकों में सुरक्षित घर बनाने का दावा तो करती हैं, लेकिन इनका क्रियान्वयन आज भी अधूरा है। सैकड़ों परिवार आज भी असुरक्षित झोपड़ियों में रहने को मजबूर हैं। यह घटना हमें याद दिलाती है कि केवल योजनाएं बनाने से कुछ नहीं होगा, उनके प्रभावी क्रियान्वयन पर ध्यान देना जरूरी है।
मध्य प्रदेश की इस घटना ने हमें यह सोचने पर मजबूर कर दिया है कि आखिर कब तक हमारे ग्रामीण भाई-बहन ऐसी त्रासदियों का शिकार होते रहेंगे। यह सिर्फ सरकार की जिम्मेदारी नहीं है, बल्कि समाज के हर वर्ग को इस दिशा में मिलकर काम करना होगा। आग से बचाव के बुनियादी उपाय, जैसे सस्ते फायर एक्सटिंग्विशर या आग लगने पर बचने के तरीकों का प्रशिक्षण, हर ग्रामीण क्षेत्र में उपलब्ध कराना जरूरी है।
इस घटना से हुई जान-माल की क्षति अपूरणीय है, लेकिन यह हमें एक बड़ा सबक सिखा सकती है। हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि भविष्य में कोई भी परिवार ऐसी त्रासदी का सामना न करे। यह सिर्फ उनकी सुरक्षा का सवाल नहीं, बल्कि उनके सम्मान और हक का भी मामला है।
आईटीडीसी न्यूज़ आप सभी से अपील करता है कि अग्नि सुरक्षा के प्रति जागरूकता फैलाने में मदद करें। यह एक छोटी सी कोशिश हो सकती है, लेकिन इसका असर बड़ा होगा। जागरूक बनें और दूसरों को भी इस दिशा में कदम उठाने के लिए प्रेरित करें।
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