प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का यह बयान कि “मुझसे भी गलतियां होती हैं, मैं मनुष्य हूं, देवता नहीं,” न केवल विनम्रता का परिचय देता है, बल्कि यह सभी के लिए एक प्रेरक संदेश भी है। यह स्वीकारोक्ति हमें याद दिलाती है कि गलती करना मानव स्वभाव का हिस्सा है और असफलता से डरने के बजाय उससे सीखकर आगे बढ़ना ही सच्ची सफलता है।
यह बयान ऐसे समय में आया है, जब समाज में हर व्यक्ति पर पूर्णता का दबाव बढ़ता जा रहा है। नेताओं, छात्रों, पेशेवरों, और यहां तक कि आम नागरिकों से यह अपेक्षा की जाती है कि वे त्रुटिहीन रहें। लेकिन प्रधानमंत्री ने इस मानसिकता को चुनौती देते हुए बताया कि गलतियां केवल सीखने के अवसर हैं।
उनकी यह बात कि “मैं वो नहीं, जो फेल होने पर रोता रहे; हर पल जोखिम उठाना पड़ता है,” हमें यह समझने का अवसर देती है कि जीवन में जोखिम लेना और असफलताओं का सामना करना ही हमें मजबूत बनाता है। आज के युवाओं को विशेष रूप से इस बात से प्रेरणा लेनी चाहिए। असफलता जीवन का अंत नहीं, बल्कि एक नई शुरुआत का द्वार है।
नेताओं के जीवन में पारदर्शिता और ईमानदारी का महत्व है। प्रधानमंत्री का यह बयान इस बात को भी दर्शाता है कि आत्ममूल्यांकन और गलतियों को स्वीकारने से जनता का विश्वास और बढ़ता है। यह नेतृत्व का वह गुण है, जो केवल आत्ममुग्धता से मुक्त होकर ही हासिल किया जा सकता है।
आज के संदर्भ में, जब राजनेताओं से लेकर आम नागरिक तक, हर कोई केवल अपनी उपलब्धियों को ही प्रचारित करने में लगा है, प्रधानमंत्री का यह विनम्र बयान समाज के लिए एक दिशा देने का काम कर सकता है। यह हमें सिखाता है कि गलती करना कोई अपराध नहीं है, बल्कि उसे स्वीकार करके सुधार करना ही असली उपलब्धि है।
इस संदेश को अपनाने का समय आ गया है। समाज, खासकर युवाओं को यह समझना चाहिए कि असफलताएं हमें रुकने के लिए नहीं, बल्कि आगे बढ़ने की ताकत देती हैं। जब एक देश का प्रधानमंत्री अपनी गलतियों को स्वीकार सकता है, तो यह हर व्यक्ति के लिए एक प्रेरणा होनी चाहिए।
निष्कर्ष:
प्रधानमंत्री मोदी के इस बयान ने एक बार फिर साबित किया है कि सच्चा नेतृत्व केवल उपलब्धियों से नहीं, बल्कि आत्ममूल्यांकन और सुधार की क्षमता से परिभाषित होता है। अगर हम अपनी गलतियों से सीखकर आगे बढ़ने का साहस रखें, तो न केवल व्यक्तिगत जीवन में, बल्कि समाज और राष्ट्र के विकास में भी महत्वपूर्ण योगदान दे सकते हैं।
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