रीवा के तेज गेंदबाज कुलदीप सेन ने रविवार को इंटरनेशनल क्रिकेट में डेब्यू किया। बांग्लादेश के खिलाफ वो पहले वनडे की प्लेइंग-11 में शामिल थे। सेन रीवा संभाग के इकलौते इंटरनेशनल क्रिकेटर हैं।

26 साल के इस गेंदबाज ने अपने डेब्यू मैच में 2 विकेट झटके। हालांकि, कुलदीप के पिता रामपाल सेन बेटे का डेब्यू नहीं देख सके। दरअसल, जब मैच चल रहा था तब रामपाल अपने हेयर कटिंग सैलून पर ग्राहकों के बाल काट रहे थे। रविवार होने की वजह से ग्राहक भी ज्यादा थे। रामपाल रीवा के सिरमौर चौराहे पर सैलून चलाते हैं।

मैच के बाद जब कुलदीप के पिता रामपाल सेन से बेटे के प्रदर्शन पर प्रतिक्रिया जाननी चाही तो उन्होंने कहा- मैं तो उसका मैच ही नहीं देख पाया। दुकान में मेरे पास TV और मोबाइल नहीं है। इसलिए मैच नहीं देख पाता हूं। वैसे भी जब मैच आ रहा था, तब मैं दुकान में था। अब घर जाकर बच्चों से उसका प्रदर्शन जानूंगा।

घर से लाइव… भाई की खास तैयारी
कुलदीप के डेब्यू मैच के लिए भाई ने खास तैयारी की थी। उसने मैच देखने के लिए दोस्तों को घर बुलाया था। मैच शुरू होने के बाद छोटी बहन भी मैच देखने आ गई। सभी मैच तो देख रहे थे। लेकिन, उनके चेहरों पर वह उत्साह नजर नहीं आ रहा था, क्योंकि पहले स्पेल में कुलदीप खाली हाथ रहे। हालांकि, सुकून इस बात का था कि कम से कम डेब्यू तो मिला। सभी बॉल टु बॉल मैच देखते रहे। जैसे ही कुलदीप को एक ओवर में दो विकेट मिले तो भाई की खुशी का ठिकाना नहीं रहा।

रीवा के पहले इंटरनेशनल क्रिकेटर हैं सेन
कुलदीप रीवा के पहले इंटरनेशनल क्रिकेटर हैं। उनसे पहले 2014 में ईश्वर पांडेय टीम इंडिया में चुने गए थे, लेकिन उन्हें डेब्यू करने का मौका नहीं मिला था। तब महेंद्र सिंह धोनी की कप्तानी वाली टीम इंडिया न्यूजीलैंड दौरे पर गई थी और पांडेय बिना डेब्यू कैप के लौटे थे।

कुलदीप भी कुछ दिन पहले समाप्त हुए न्यूजीलैंड दौरे पर टीम इंडिया का हिस्सा थे। शिखर धवन की कप्तानी वाली टीम में उन्हें डेब्यू करने का मौका नहीं मिला। ऐसे में कुलदीप ने ईश्वर पांडेय की याद दिला दी।

लॉकडाउन में क्रिकेट छोड़ने के बारे में सोचने लगे थे: कोच
कुलदीप के कोच एरियल एंट्रोनी ने बताया- ‘उसने बहुत मेहनत की है और सब्र भी किया है। एक बार उसके सब्र का बांध टूट गया था और वह क्रिकेट छोड़ने के बारे में सोचने लगा था। तब मैंने उसे मेहनत जारी रखने के लिए कहा था।
कोरोना महामारी के कारण लगे लॉकडाउन में क्रिकेट बंद था और BCCI ने फंडिंग भी बंद कर दी थी। ऐसे में उसकी फैमली आर्थिक तंगी से जूझ रही थी। प्रैक्टिस भी बंद थी। ऐसे में कुलदीप ने क्रिकेट छोड़कर काम-धंधा तलाश करने की बात कही। उसने मुझसे कहा कि सर कोई काम दिलवा दीजिए। ऐसे में मैंने उसे समझाया।’

वे बताते हैं- ‘उसके पास प्रैक्टिस के लिए जूते तक नहीं होते थे। मुझे अच्छे से याद है कि 2014 के न्यूजीलैंड दौरे के लिए टीम इंडिया में चुने गए ईश्वर पांडेय ने उसे पहली बार अपने स्पाइक्स दिए थे, जिनसे कुलदीप अभ्यास करता था। उसे झारखंड से रणजी खेलने वाले आनंद सिंह का भी पूरा सहयोग मिला।’

खेल के प्रति उसकी लगन और मेहनत को देखते हुए मैंने तय किया था कि कभी उससे एक चवन्नी नहीं लूंगा।

फटे मोजे की बॉल और मोगरी के बैट से खेलते थे
कुलदीप के छोटे भाई जगदीप ने बताया- ‘बचपन में हम दोनों भाई दोस्तों के साथ मोजे की बॉल और कपड़े धोने की मोगरी का बैट बनाकर खेलते थे। कई दफा स्कूल बंक की। एक बार तो भाई को स्कूल बंक करने के लिए पापा ने मारा भी था।’

मां से 500 रुपए मांगे तो पिता को क्रिकेट के बारे में पता चला
जगदीप बताते हैं कि एक समय भाई के पास डिस्ट्रिक्ट लेवल टूर्नामेंट खेलने जाने के लिए किराए तक के पैसे नहीं होते थे। यह बात 2011-12 की है। तब कुलदीप जिला स्तरीय टीम में चुने गए थे। उन्हें खेलने के लिए सिंगरौली जाना था। ऐसे में कुलदीप ने अपनी मां से 500 रुपए मांगे और मां ने पिता से कह दिया। तब जाकर पिता को पता चला कि कुलदीप क्रिकेट खेलता है। हालांकि, तब तक कुलदीप कई टूर्नामेंट खेल चुके थे। पता चलने के बाद पहले तो पिता ने डांटा फिर 500 रुपए दिए।

उसके बाद से पिताजी भाई के लिए अलग से बचत करते थे। वे दिन भर में जितना भी कमाते थे, उसका एक हिस्सा बचाकर रख लेते थे। ताकि जब भाई को जरूरत पड़े तो दे सकें। कई बार तो पापा को दोस्तों से उधार भी लेना पड़ा।