आईटीडीसी इंडिया ईप्रेस/आईटीडीसी न्यूज़ भोपाल : विधु विनोद चोपड़ा एक ऐसे फिल्ममेकर हैं, जिनकी पहली फिल्म की एंडिंग पैसों की कमी के चलते पूरी नहीं हो पाई थी। यानी बिना क्लाइमैक्स के ही फिल्म रिलीज हुई थी। इसके बावजूद इस फिल्म ने नेशनल अवॉर्ड जीता था। इसके अलावा इनकी दूसरी फिल्म सीधे ऑस्कर के लिए नॉमिनेट हुई थी।
अवॉर्ड शो में शिरकत करने के लिए भी इनके पास न पासपोर्ट था और न ही पैसे। ऑस्कर अवॉर्ड्स में इनकी मुलाकात हॉलीवुड की कल्ट क्लासिक फिल्म द गॉडफादर बनाने वाले लीजेंड्री डायरेक्टर फ्रांसिस फोर्ड कोपोला से भी हुई। उन्होंने विधु के काम की तारीफ भी की और उन्हें अपने यहां जॉब भी ऑफर किया।
विधु विनोद चोपड़ा वो शख्सियत हैं जिन्होंने अमिताभ बच्चन को चार करोड़ की रोल्स रॉयस कार गिफ्ट कर दी, जबकि खुद मारुति वैन से चलते थे। विधु विनोद चोपड़ा जब इंडस्ट्री में आए तो उनके पास इलाज के लिए पांच रुपए तक नहीं थे।
पहली ही फिल्म के लिए नेशनल अवॉर्ड जीतने पर चार हजार रुपए मिले, वही चार हजार रुपए उनके जीवन की पहली कमाई थी। हालांकि, इन पैसों के मिलने के पीछे की कहानी भी बड़ी दिलचस्प है। इन पैसों को लेकर तत्कालीन सूचना एवं प्रसारण मंत्री लालकृष्ण आडवाणी के साथ उनकी बहस हो गई थी।
विधु विनोद चोपड़ा ने इस साल इंडस्ट्री में यादगार 45 साल पूरे कर लिए हैं। अपने इस शानदार सफर और व्यक्तिगत जीवन पर विधु ने दैनिक भास्कर से खास बातचीत की।
विधु विनोद चोपड़ा के साथ इस इंटरव्यू में तीन चीजें सामने आईं। भूख, आत्मविश्वास और ऑनेस्टी यानी ईमानदारी। विधु ने कहा कि शुरुआती दौर में उनके पास खाने को पैसे नहीं थे। वो भूख ही थी, जिसकी वजह से वो आडवाणी जी से अड़ गए। वो भूख ही थी, जिसने उन्हें आगे बढ़ने की प्रेरणा दी।
इसी के बाद उनके अंदर काम करने की भूख पैदा हुई। दूसरी चीज है, आत्मविश्वास। विधु उन एक्टर्स को मौका देते हैं जिन्हें कोई पूछ नहीं रहा होता है। विधु को भरोसा होता है कि वो किसी भी एक्टर को लेकर अपनी फिल्म हिट करा देंगे।
तीसरी चीज जो निकल कर आई वो है ऑनेस्टी यानी ईमानदारी। विधु ने कहा कि वो जैसे हैं वैसे ही अपने आप को दिखाते हैं। शायद इसी वजह से कुछ लोग उन्हें अड़ियल स्वभाव का भी मानते हैं। विधु ने कहा कि उनके काम में कभी मिलावट नहीं आई, वो जो भी करते हैं उसमें ईमानदारी के साथ अपना बेस्ट देने का प्रयास करते हैं।
विधु विनोद चोपड़ा के साथ सिलसिलेवार बातचीत पर एक नजर ..
सवाल- आपको 1976 की शॉर्ट फिल्म मर्डर एट मंकी हिल के लिए नेशनल अवॉर्ड मिला था। हालांकि राष्ट्रपति के हाथों नेशनल अवॉर्ड मिलने के बाद भी आप दुखी हो गए थे। लालकृष्ण आडवाणी आप पर गुस्सा हो गए थे। उस दिन क्या हुआ था?
जवाब- दरअसल, मुझे नेशनल अवॉर्ड के साथ चार हजार रुपए भी मिलने थे। मैं अवॉर्ड लेने दिल्ली के विज्ञान भवन पहुंचा था। नीलम संजीव रेड्डी उस वक्त देश के राष्ट्रपति थे। मुझे उनके हाथों अवॉर्ड मिलना था।
स्टेज पर पहुंचकर मैंने महामहिम के हाथों पुरस्कार प्राप्त किया, साथ में एक लिफाफा भी मिला। हालांकि, उस लिफाफे में पैसे नही थे, बस एक पोस्टल लेटर था, जिसमें लिखा था कि ये पैसे सात साल बाद मिलेंगे। मुझे काफी ताज्जुब हुआ। लालकृष्ण आडवाणी उस वक्त देश के सूचना और प्रसारण मंत्री थे। मैंने उनसे अपनी समस्या बताई। मेरी बात सुनकर उनका पारा हाई हो गया। उन्होंने मुझे अगले दिन शास्त्री भवन बुलाया।
मैं अगले दिन सुबह 11 बजे वहां पहुंचा। आडवाणी जी पूरे गुस्से में थे। उन्होंने कहा कि राष्ट्रपति के सामने आपको कैसे व्यवहार रखना है, पता नहीं है। मुझे भी गुस्सा आ गया। मैंने आडवाणी जी से कहा- सर क्या आपने नाश्ता किया है? उन्होंने हां में सिर हिलाया। मैंने कहा- आपने जरूर नाश्ता किया होगा, लेकिन मैंने नहीं किया। इन पैसों की मुझे इस कदर जरूरत है कि मैं खाली पेट ही यहां तक आ गया।
तब आडवाणी जी शांत हुए, उन्होंने पूछा- क्या खाओगे। मैंने कहा कि पराठे और अंडे खाऊंगा। उन्होंने मेरे लिए खाना ऑर्डर किया। मैंने आडवाणी जी के साथ उनके टेबल पर बैठ कर पराठे और ऑमलेट खाया। इसके बाद मुझे वो चार हजार रुपए भी मिल गए। यह मेरे जीवन की पहली कमाई थी।