पांच सालों के लंबे इंतजार के बाद कैलाश मानसरोवर यात्रा के फिर से शुरू होने की घोषणा ने देशभर के श्रद्धालुओं के दिलों में नई उम्मीदें जगा दी हैं। यह यात्रा केवल एक धार्मिक आस्था का प्रतीक नहीं है, बल्कि भारत और चीन के बीच बेहतर संबंधों का द्योतक भी है।

कैलाश मानसरोवर का नाम सुनते ही भगवान शिव के पवित्र निवास और मानसरोवर झील की आध्यात्मिक शांति की छवि मन में उभरती है। यह यात्रा हिंदू, बौद्ध, जैन और बोन धर्मों के अनुयायियों के लिए विशेष महत्व रखती है। लेकिन 2020 में कोविड-19 महामारी और भारत-चीन सीमा विवाद के कारण इस यात्रा को रोकना पड़ा।

हाल ही में भारत के विदेश मंत्री एस. जयशंकर और चीन के विदेश मंत्री वांग यी के बीच हुई वार्ता में यात्रा को पुनः शुरू करने पर सहमति बनी। यह फैसला केवल धार्मिक दृष्टि से ही नहीं, बल्कि कूटनीतिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है। यह कदम न केवल श्रद्धालुओं की आस्था को पुनर्जीवित करेगा, बल्कि दोनों देशों के बीच विश्वास बहाली की प्रक्रिया को भी मजबूती देगा।

इस यात्रा के लिए उत्तराखंड के लिपु लेख दर्रे और सिक्किम के नाथु ला दर्रे के माध्यम से मार्ग निर्धारित किए गए हैं। जून से सितंबर के बीच होने वाली इस यात्रा के लिए शारीरिक रूप से स्वस्थ होना आवश्यक है। सरकार जल्द ही रजिस्ट्रेशन और अन्य सुविधाओं के बारे में दिशा-निर्देश जारी करेगी।

कैलाश मानसरोवर यात्रा का पुनरारंभ केवल एक यात्रा नहीं है, यह भारतीय संस्कृति और आस्था का उत्सव है। यह यात्रा आत्मा की शांति, मन के शुद्धिकरण और प्रकृति के करीब आने का माध्यम है। साथ ही, यह भारत और चीन के बीच संबंधों को एक नई दिशा देने का अवसर भी है।

आशा है कि इस ऐतिहासिक पहल से दोनों देशों के बीच सहयोग और सद्भावना को बढ़ावा मिलेगा। कैलाश मानसरोवर यात्रा न केवल आस्था का प्रतीक है, बल्कि मानवता को जोड़ने का सेतु भी है।

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