सीएनएन सेंट्रल न्यूज़ एंड नेटवर्क–आईटीडीसी इंडिया ईप्रेस /आईटीडीसी न्यूज़ भोपाल: वरिष्ठ कवि–कथाकार, विश्व रंग के निदेशक एवं रबीन्द्रनाथ टैगोर विश्वविद्यालय के कुलाधिपति संतोष चौबे के ताजा निबंध संग्रह ‘कहानी का रास्ता’ का लोकार्पण समारोह वनमाली सभागार, स्कोप ग्लोबल स्किल्स विश्वविद्यालय, भोपाल में आयोजित किया गया। सर्वे प्रथम अतिथियों द्वारा ‘कहानी का रास्ता’ पुस्तक का लोकार्पण किया गया।
लोकार्पण अवसर पर निदेशक संतोष चौबे ने ‘कहानी का रास्ता’ पर विचार रखते हुए ‘वनमाली ‘ को स्मरण करते हुए कहा कि कहानी का रास्ता कोई सपाट रास्ता नहीं होता। वह स्मृतियों से स्मृति में, मन से मन में और समय से समय में प्रवेश कर जाने वाला रास्ता है। कभी टेढ़ा–मेढ़ा, कभी घुमावदार, कभी पहाड़ों और कन्दराओं से गुजरा और कभी मैदान में सरपट भागता।
उल्लेखनीय है कि इस पुस्तक में कहानी का रास्ता, आज की कहानी, कहानी कहां है?, कहानी में प्रेम, कहानी में दृश्य विधान, शब्दों के पार अर्थ की तलाश, कथा भोपाल, कहानी में नयेपन की तलाश, हिंदी कहानी के दो सौ बरस, विज्ञान कथाओं का अद्भुत संसार जैसे महत्वपूर्ण आलोचनात्मक निबंधों को संग्रहित किया गया है।
निदेशक संतोष चौबे ने नये रचनाकारों के हक में जरूरी बात करते हुए कहा कि नये रचनाकारों को आत्मीयता से सुनने की जरूरत होती है। कई मर्तबा आलोचक नये लेखक के लिखे की इस तरह से आलोचना कर देता है कि वह नया रचनाकार पद दलित हो जाता है। इससे हिंदी का रचना संसार सिकुड़ता जाता है। हमें नये रचनाकारों का हमेशा स्वागत करना चाहिए। उन्हें परिष्कृत करने का कार्य वरिष्ठ रचनाकारों और आलोचकों का दायित्व होना चाहिए।
आईसेक्ट पब्लिकेशन, स्कोप ग्लोबल स्किल्स विश्वविद्यालय एवं वनमाली सृजन पीठ द्वारा आयोजित लोकार्पण समारोह की अध्यक्षता करते हुए प्रो. विनोद तिवारी, प्रख्यात आलोचक, संपादक, पक्षधर, नई दिल्ली ने कहा कि साहित्य जगत में आलोचना एक संस्था की तरह होती है। संपादन एक संस्था की तरह होती है। आलोचना कभी पाठक को केन्द्र में रखकर नहीं लिखी जाती। वह पाठक का उन्मुखीकरण करती है। वह पाठक को रचना पढ़ने के लिए उत्प्रेरण का काम करती है। ‘कहानी का रास्ता’ इसी दिशा में लिखी गई एक महत्वपूर्ण पुस्तक है।
जेएनयू के वरिष्ठ आलोचक देवेन्द्र चौबे ने कहा कि आलोचक का एक महत्वपूर्ण कार्य होता है कि वह अपने समय में किये जा रहे रचनाकर्म पर आलोचनात्मक दृष्टिकोण से दस्तावेजीकरण का कार्य करें। उस दृष्टि से ‘कहानी का रास्ता’ आलोचना के दस्तावेजीकरण की एक नायाब पुस्तक है। यह सृजनात्मक गद्य का महत्वपूर्ण उदाहरण है।
चर्चित कथाकार एवं दिल्ली विश्वविद्यालय के एसोसिएट प्रोफेसर आशुतोष ने कहा कि संतोष चौबे की यह पुस्तक बातचीत की भाषा शैली में लिखी है। उन्होंने इसे सर्वज्ञता शिक्षक की तरह नहीं अपितु पाठक की तरह लिखा है। वे अवधारणा का बोझा नहीं उठाते बल्कि पाठक को भी संग साथ लिए चलते है।
वरिष्ठ कथाकार एवं अध्यक्ष, वनमाली सृजन पीठ, भोपाल के अध्यक्ष मुकेश वर्मा ने कहा कि ‘कहानी का रास्ता पुस्तक में कहानी केन्द्र में होते हुए भी साहित्य की अन्य सारी विधाओं, विषयों और उनसे जुड़े मुद्दों की बात करती है। यह पुस्तक रचनात्मक विचारों का गुलदस्ता है।
वरिष्ठ कवि एवं वनमाली सृजन पीठ, दिल्ली के अध्यक्ष लीलाधर मंडलोई ने कहा कि कहानी का सजल है यह पुस्तक। हमारे समय में जो कलाएँ हैं, उनके कलात्मक तत्वों का समावेश बहुत शिद्दत से इस पुस्तक में हुआ है। इसमें पाठक को लोकेट किया गया है। पाठक को महत्व दिया गया है। यह पुस्तक अकादमिक जड़ता से मुक्त है। यह अपने समय के जरूरी सवालों को रेखांकित करती हैं, उन्हें उठायी है। यह एक बोलतीं किताब है। इसमें कहानी की दास्तानगोई की बात है।
कार्यक्रम का सफल संचालन युवा कथाकार एवं वनमाली कथा के संपादक कुणाल सिंह किया।
अतिथियों का स्वागत करते हुए स्वागत वक्तव्य कार्यक्रम की समन्वयक ज्योति रघुवंशी, राष्ट्रीय संयोजक वनमाली सृजन पीठ द्वारा दिया गया।
उल्लेखनीय है कि इस अवसर पर बड़ी संख्या में भोपाल के रचनाकारों, साहित्यप्रेमियों, युवाओं ने रचनात्मक भागीदारी की।
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