आईटीडीसी इंडिया ईप्रेस/आईटीडीसी न्यूज़ भोपाल : 3 लड़के…किसी के पिता घर चलाने के लिए स्कूटर रिपेयरिंग करते हैं, तो कोई बेटे को हॉकी प्लेयर बनाने के लिए ड्राइवर बन गया। किसी के घर में पैसे नहीं थे इसलिए बांस की लकड़ी से हॉकी सिखाई, तो किसी ने धान बेचकर बेटे को प्रोफेशनल हॉकी प्लेयर बनाया।…ये कहानियां उन युवा खिलाड़ियों की हैं, जो 5 दिसंबर को मलेशिया में जूनियर हॉकी वर्ल्डकप खेलेंगे।
भारतीय टीम के 18 खिलाड़ियों में उत्तर प्रदेश के कुल 7 खिलाड़ी हैं। टीम के कप्तान गाजीपुर के उत्तम सिंह हैं। वहीं, मिड-फील्डर आमिर और डिफेंडर शारदानंद ने लखनऊ के केडी सिंह बाबू स्टेडियम में हॉकी सीखी है। अब सबका एक ही सपना है- ‘देश के लिए विश्वकप जीतना’।
वर्ल्डकप से पहले भास्कर इन युवा खिलाड़ियों के घर पहुंचा। उनके परिवार से बातें की। घरों की आर्थिक स्थिति को जाना। आइए आपको सबकुछ एक तरफ से बताते हैं…
स्कूटर मकैनिक हूं…लेकिन मेरा बच्चा वर्ल्डकप खेलेगा
ये तस्वीर आमिर के पिता की है। जो पिछले 30 साल से हजरतगंज इलाके में बक्सा रखकर गाड़ी बनाने का काम कर रहे हैं।
लखनऊ के रहने वाले आमिर अली अभी 19 साल के हैं। छोटे इमामबाड़े से अंदर जाने पर उनका घर पड़ता है। नेशनल कॉलेज से 100 मीटर की दूरी पर पराग डेयरी का बूथ है। जिसके सामने आमिर के पिता तसौवर अली एक बॉक्स रखकर गाड़ी रिपेयर करते हैं।
तसौवर बताते हैं, “30 साल से इसी जगह पर दुकान लगा रहे हैं। 5 बच्चे हैं 3 लड़की और 2 लड़के। सभी को इसी दुकान की आजीविका से पढ़ाया। जो काम हम करते हैं। हम नहीं चाहते थे वो बेटे आमिर और शाहरुख भी करें। इस काम में मेहनत बहुत और पूंजी कम है। इज्जत भी नहीं है।”
फीस के 8000 भी देना मुश्किल था लेकिन कमी नहीं होने दी
तसौवर कहते हैं, “ये नहीं पता था दोनों बेटे क्या करेंगे। लेकिन ये तो क्लियर था कि मैं उन्हें मोटर मैकेनिक तो नहीं बनाउंगा। आमिर भारतीय बालिका विद्यालय में 5वीं तक पढ़ा। उस वक्त केडी सिंह बाबू स्टेडियम में कैंप लगता था। दोनों बच्चों का रुझान हॉकी की तरफ गया। तो प्रैक्टिस के लिए स्टेडियम भेजने लगे। वहीं पर राशिद सर से मुलाकात हुई। उन्होंने आमिर को सैफई SAI भेजने की सलाह दी।”
“क्लास-6th के बाद आमिर सैफई चले गए। वहां पर साल भर की फीस 8 हजार रुपए थी। इसके अलावा हॉस्टल फीस और दूसरे जेब खर्च के पैसे भी देने पड़ते थे। आमिर के अलावा घर पर 4 और बच्चे थे। उनकी फीस भरने के साथ-साथ आमिर के लिए खर्चा निकलना मेरे जैसे मैकेनिक के लिए मुश्किल था। लेकिन मैंने कभी अपने बेटे को पैसे की कमी महसूस नहीं होने दी।”
“सैफई में हॉकी की प्रैक्टिस करते हुए आमिर अच्छा खिलाड़ी बन गया था। वह अच्छा खेल सके इसके राशिद सर ने भी बहुत मदद की। वह उसके खेल को सुधारने के लिए रात-दिन उसके साथ लगे रहते। आखिरकार उनकी मेहनत जाया नहीं गई। आज आमिर हॉकी विश्वकप खेल रहा है।”
यहां रुकते हैं। अब आपको आमिर के घर से टीम के दूसरे खिलाड़ी शारदानंद के यहां ले चलते हैं…
पैसे नहीं थे…फटे-पुराने जूते पहनकर प्रैक्टिस की
शारदानंद का परिवार लखनऊ के फैजुल्लागंज में रहता है। घर पर 3 भाई 1 बहन है। पिता गंगा प्रसाद डीएम आवास में होम गार्ड थे। वहां से रिटायर होने के बाद परिवार चलाने के लिए ड्राइवरी करने लगे। डीएम बंगले में ही रहने के लिए घर मिला था। लेकिन रिटायरमेंट के बाद खाली करना पड़ा।
पिता की नौकरी छूटने के बाद शारदानंद का हॉकी खेल पाना मुश्किल था। लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी। प्रैक्टिस जारी रखी। शारदानंद के पिता गंगा प्रसाद कहते हैं, “जिस गरीबी से वह उठा है या तो शारदा जानता है या फिर भगवान जानते हैं। खाना पीना तो हर मां-बाप खिलाते हैं। लेकिन खेल के लिए जो सुविधा उसे मिलनी चाहिए थी। हम उसे दे नहीं पाए।”
“इतनी कम सैलरी में घर चलाना मुश्किल था। लेकिन किसी तरह बच्चों को पढ़ाया। शारदानंद खेलते-खेलते केडी सिंह स्टेडियम चला जाता था। उसके पास नए जूते नहीं थे, तो वह फटे-पुराने जूतों से ही प्रैक्टिस करता। खेलने के साथ-साथ उसकी हाइट भी अच्छी थी। उसका प्रदर्शन देख कोच राशिद अली और उनकी पत्नी नीलम सिद्दीकी बहुत खुश हुए।”
“राशिद सर अपने बच्चों के साथ हमेशा रहते हैं। शारदानंद की भी काफी मदद की। किसी भी तरह की दिक्कत होती थी तो राशिद सर पूरा करते थे। नई हॉकी स्टिक के साथ खेलकूद की दूसरी जरूरतों को भी पूरा करते थे। आज वह जिस मुकाम पर पहुंचा है। इसका पूरा श्रेय राशिद सर और उनकी पत्नी नीलम को जाता है।”
‘हॉकी प्लेयर बनने से पहले ये बच्चा पतंग लूटता था’
हमने SAI लखनऊ में कोच राशिद अली से बात की। उन्होंने बताया, “ शारदानंद केडी सिंह बाबू स्टेडियम के पास ही डीएम आवास में रहता था। वहां से अक्सर दोस्तों के साथ पतंग लूटने यहां आता था। तब शारदानंद की उम्र करीब 7 साल रही होगी। उसको पतंग लूटते हुए स्टेट डिपार्टमेंट की डिप्टी स्पोर्ट्स ऑफिसर नीलम सिद्दीकी ने देखा।”
शारदानंद की फिटनेस और भागदौड़ देख नीलम मैडम ने उसे अपने पास बुलाया और उससे पूछा कि क्या तुम्हें हॉकी खेलना अच्छा लगता है। शारदानंद ने पहले तो झिझक के साथ मना किया। फिर कहने लगा कि मैडम मेरे पास हॉकी नहीं है। नीलम ने काफी समझाया फिर बोलीं हॉकी हम देंगे बस तुम्हें प्रैक्टिस करने आ होगा।”
अगले दिन शारदानंद ग्राउंड पर था। कुछ दिन की प्रेक्टिस के बाद शारदानंद को चंद्रभानु ग्राउंड पर भेज दिया गया। जहां पर राशिद अली कोच थे। असल में नीलम सिद्दीकी राशिद अली की पत्नी हैं। तो उन्होंने चंद्रभानु ग्राउंड पर भेजकर बताया कि अच्छा लड़का है। नीलम लड़कियों की कोच थी इसलिए मेरे पास भेजा।