आज हेमंत सोरेन झारखंड के मुख्यमंत्री के रूप में शपथ लेंगे। यह सिर्फ एक राजनीतिक घटना नहीं, बल्कि झारखंड के भविष्य के लिए एक महत्वपूर्ण मोड़ है। झारखंड, जो खनिज संसाधनों से भरपूर है, लंबे समय से विकास और चुनौतियों का मिश्रण रहा है। सोरेन की यह दूसरी पारी उनके नेतृत्व और नीतियों की असली परीक्षा होगी।

झारखंड की जनता ने अपनी उम्मीदें और विश्वास एक बार फिर सोरेन पर जताया है। राज्य में बेरोज़गारी, आदिवासी अधिकार और पर्यावरणीय क्षरण जैसी समस्याएं गहरी जड़ें जमा चुकी हैं। ऐसे में यह सत्ता का अवसर नहीं, बल्कि जनता की अपेक्षाओं का भार है। पिछले कार्यकाल में उनके द्वारा शुरू की गई योजनाएं, जैसे “फूलो झानो आशीर्वाद अभियान,” ने वंचित वर्गों तक पहुंच बनाई। लेकिन भ्रष्टाचार के आरोपों और प्रशासनिक ढिलाई ने उनकी सरकार की छवि पर दाग भी छोड़े।

अब उनकी सबसे बड़ी चुनौती होगी विकास और स्थिरता के बीच संतुलन बनाना। झारखंड की प्राकृतिक संपदा और आदिवासी समुदाय उसकी पहचान हैं। औद्योगिक विकास के नाम पर इनकी अनदेखी न केवल सामाजिक असंतोष बढ़ाएगी, बल्कि पर्यावरण को भी गंभीर नुकसान पहुंचाएगी।

इसके साथ ही, विपक्ष की भूमिका भी महत्वपूर्ण होगी। राज्य की समस्याएं इतनी बड़ी हैं कि राजनीति के लिए कोई जगह नहीं होनी चाहिए। विपक्ष को सरकार पर रचनात्मक दबाव बनाना होगा ताकि नीतियां जनता के हित में काम करें।

हेमंत सोरेन के सामने अब शिक्षा, स्वास्थ्य और कौशल विकास जैसे क्षेत्रों में सुधार की बड़ी जिम्मेदारी है। उनकी सफलता इस बात पर निर्भर करेगी कि वह पारदर्शिता और जनकल्याण की योजनाओं को कितनी कुशलता से लागू कर पाते हैं।

झारखंड की जनता ने अपना निर्णय सुना दिया है। अब यह हेमंत सोरेन पर निर्भर करता है कि वह इस मौके को एक नई शुरुआत में बदलते हैं या पुरानी कहानी दोहराते हैं। झारखंड के पास अब और अवसर गंवाने की गुंजाइश नहीं है।

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