सीएनएन सेंट्रल न्यूज एंड नेटवर्क-आईटीडीसी इंडिया प्रेस / आईटीडीसी न्यूज भोपाल: जबलपुर लोकसभा के लिए 19 अप्रैल को हुए मतदान के बाद अब परिणाम का इंतजार हो रहा है। मतदान के दिन जबलपुर में सिर्फ 61 प्रतिशत मतदान हुआ जो कि भाजपा और कांग्रेस को सोचने पर मजबूर कर रहा है कि अखिर क्यों इतना कम मतदान हुआ। दोनों ही राजनीतिक दल मतदान को लेकर मतदाता को समझने का प्रयास भी कर रहे है। भारतीय जनता पार्टी को उम्मीद थी कि इस लोकसभा चुनाव में जीत का एक नया रिकार्ड बनेगा जो कि पांच लाख के पार जाएगा, पर उस लिहाज से अगर बात करे तो मतदान का प्रतिशत बहुत ही कम रहा। वहीं कांग्रेस ने भी तख्ता पलटने के लिए भरसक प्रयास किया था। भाजपा संगठन अब विधायकों का रिपोर्ट कार्ड तैयार कर रहा है। जिसके आधार पर ही अब उनके आगे का भविष्य तय होगा। 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा के राकेश सिंह ने चार लाख 54 हजार मत के अंतर से कांग्रेस के विवेक कृष्ण तन्खा को हराया था। इस बार पार्टी ने जीत का नया रिकार्ड बनाने के लिए कार्यकर्ताओं को प्रशिक्षित भी किया गया था। इसके बाद भी कार्यकर्ता मतदाताओं को घरों से बाहर निकालने में असफल रहे।
19 अप्रैल को हुए मतदान का रिजल्ट चार जून को आएगा। इस बार दोनों राजनीतिक दलों भाजपा और कांग्रेस के कई पार्षदों, विधायकों और खुद को दमदार बताने वाले कई नेताओं का भविष्य का फैसला होगा। भाजपा के जिले में सबसे ज्यादा विधायक है। आठ विधानसभा सीट में सात पर भाजपा का कब्जा है इसी तरह शहर के 79 वार्ड में 48 वार्ड में भाजपा के पार्षद है। ऐसे में भाजपा के जनप्रतिनिधियों की जिम्मेदारी बड़ी मानी जा रही है। वही कांग्रेस के पास एक ही विधायक है जिनके क्षेत्र से भी मतदान का प्रतिशत काफी घट गया है। जिले में सबसे कम मतदान कांग्रेस विधायक लखन घनघोरिया के क्षेत्र से हुआ है। दोनों ही राजनीतिक दलों के लोगों के द्वारा लोकसभा क्षेत्र में किए गए कार्य और दी गई जिम्मेदारी का आकलन करने के बाद उनका रिपोर्ट कार्ड तैयार किया जाएगा। यह रिपोर्ट कार्ड भाजपा और कांग्रेस के संगठन द्वारा 4 जून को आने वाले मतगणना के परिणाम के पोस्टमार्टम के बाद तैयार किया जाएगा।
भाजपा और कांग्रेस दोनों ही दलों के प्रत्याशियों को भीतर घात का सामना करना पड़ा है। अपने ही दल के कुछ नेताओं ने प्रत्याशियों का खुलकर विरोध भी किया है, कुछ इतने नाराज थे कि चुनाव अभियान से दूरी बना ली। कुछ ऐसे नेता भी थे जो अपनी पार्टी द्वारा बनाए गए उम्मीदवार का समर्थन नहीं कर रहे थे। लेकिन पार्टी के आलाकमान के सामने अपने नंबर कम ना हों इसलिए पार्टी के प्रति वफादारी दिखाते हुए मैदान में बेमन से नजर आ रहे थे। भाजपा-कांग्रेस के कुछ पार्षद ऐसे थे जिन्होंने बड़ी-बड़ी बातें करके पार्षद के चुनाव में जीत हासिल की और फिर विधानसभा चुनाव में बहुत बुरे परिणामों से गुजरे। बड़ी-बड़ी बातें करने वाले यह पार्षद विधानसभा चुनाव में अपना वार्ड भी नहीं जीत पाए। कुछ वार्डो में तो पार्षद अपना बूथ तक हार गए। लोकसभा चुनाव में राजनीतिक दलों ने अपने पार्षदों को अपना वार्ड जीतने की महत्वपूर्ण जिम्मेदारी सौंपी थी। इसी प्रकार विधानसभा चुनाव में जीतकर आए विधायकों पर भी अपने विधानसभा क्षेत्र के अंतर्गत आने वाले वार्डों को जीतने की जिम्मेदारी मिली हुई थी।