लेखक: प्रो. सुनील गोयल, प्रतिष्ठित लेखक समाज वैज्ञानिक एवं स्तंभकार है तथा वर्तमान में प्राध्यापक एवं अधिष्ठाता, समाज विज्ञान एवं प्रबंधन अध्ययनशाला, डॉ. बी. आर. अम्बेडकर सामाजिक विज्ञान विश्वविद्यालय, महू, जिला इन्दौर, मध्यप्रदेश, भारत

डॉ. भीमराव आम्बेडकर का सामाजिक संरचना का दृष्टिकोण एक न्यायपूर्ण और समानतामूलक समाज की स्थापना पर आधारित था। उनका लक्ष्य ऐसा समाज बनाना था जहाँ प्रत्येक व्यक्ति को स्वतंत्रता, समानता और आत्मविकास के अवसर मिलें, चाहे वह किसी भी जाति, वर्ग या लिंग से हो। आम्बेडकर जाति और वर्ण व्यवस्था के कट्टर विरोधी थे, क्योंकि उनके अनुसार ये व्यवस्थाएँ समाज में असमानता, शोषण और भेदभाव को बढ़ावा देती थीं।

आम्बेडकर का मानना था कि चतुर्वर्ण व्यवस्था हिन्दू समाज के विकास में बाधक है और यह लोगों को जन्म के आधार पर उनके व्यवसाय और सामाजिक दर्जे में बांधती है। यह न केवल श्रम स्वतंत्रता के खिलाफ थी, बल्कि व्यक्तित्व के विकास में भी बाधक थी। आम्बेडकर ने इस व्यवस्था को समाप्त कर एक समेकित और समानता आधारित समाज की स्थापना की बात की, जहाँ सभी को उनके कार्य और योग्यता के आधार पर समान अवसर मिलें।

उन्होंने दलितों, श्रमिकों और महिलाओं की सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक स्वतंत्रता के लिए संघर्ष किया। उनके अनुसार, समाज में वर्ग भेद और जातिगत विभाजन न केवल सामाजिक समरसता को बाधित करते हैं, बल्कि समाज को कमजोर भी बनाते हैं। आम्बेडकर का स्पष्ट मत था कि हिंदू समाज तभी प्रगति कर सकता है जब जाति व्यवस्था पूरी तरह समाप्त हो जाए।

आम्बेडकर के विचारों का सार यह था कि समाज में सभी को समान अधिकार और सम्मान मिलना चाहिए। उनके अनुसार, सामाजिक भेदभाव को खत्म करने के लिए एक मजबूत सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक लोकतंत्र की आवश्यकता है। उन्होंने संविधान के माध्यम से अस्पृश्यता के उन्मूलन और सामाजिक समानता की दिशा में महत्वपूर्ण कदम उठाए।

 प्रो. सुनील गोयल (प्रतिष्ठित लेखक समाज वैज्ञानिक एवं स्तंभकार है तथा वर्तमान में प्राध्यापक एवं अधिष्ठाता, समाज विज्ञान एवं प्रबंधन अध्ययनशाला के बतौर डॉ. बी. आर. अम्बेडकर सामाजिक विज्ञान विश्वविद्यालय, डॉ. अम्बेडकर नगर (महू), जिला इन्दौर, मध्यप्रदेश, भारत में पदस्थ है)