सीएनएन सेंट्रल न्यूज़ एंड नेटवर्क–आईटीडीसी इंडिया ईप्रेस /आईटीडीसी न्यूज़ भोपाल: इंदौर आईआईटी इंदौर के वैज्ञानिकों ने ट्यूबरक्लोसिस (टीबी) के उन प्रकारों के लिए एक नया कंपाउंड विकसित किया है, जिन पर मौजूदा दवाएं कारगर नहीं होतीं। इस शोध का नेतृत्व केमिस्ट्री विभाग के प्रोफेसर वेंकटेश चेल्वम और बायो साइंस एंड मेडिकल इंजीनियरिंग के प्रोफेसर अविनाश सोनवाणे ने किया है। उन्होंने ड्रग डिस्कवरी प्रोग्राम के तहत 150 से अधिक नए एंटी-बैक्टीरियल कंपाउंड विकसित किए हैं, जो टीबी के इलाज में प्रभावी साबित हो सकते हैं। इन कंपाउंड्स को “पाइरिडीन रिंग फ्यूज्ड हेट्रोसाइकिलिक फैमिली” से बनाया गया है, जिसमें पाइरोलोपाइरीडीन और इंडोलोपाइरीडीन शामिल हैं।

टीबी की सुरक्षा परत को तोड़ने में सक्षम

भारत में दुनिया के आधे से ज्यादा टीबी के मामले हैं, और आईआईटी इंदौर द्वारा विकसित यह कंपाउंड उन बैक्टीरिया की सुरक्षा परत को बनने से रोकता है, जो टीबी के कारण बनते हैं। इस सुरक्षा परत को “माइकोलिक एसिड” कहा जाता है, जो बैक्टीरिया के जीवित रहने के लिए आवश्यक होती है। शोधकर्ताओं का कहना है कि इस कंपाउंड से टीबी के इलाज की लागत में कमी आएगी और देश में स्वदेशी दवा निर्माण को बढ़ावा मिलेगा।

चूहों पर हो रही है टेस्टिंग

फिलहाल, इन कंपाउंड्स की टेस्टिंग बैक्टीरिया कल्चर पर की गई है और परिणाम उत्साहजनक रहे हैं। खास बात यह है कि इस दवा ने टीबी के उन प्रकारों पर भी असर दिखाया है, जिन पर आइसोनियाजिड जैसी दवाएं बेअसर हो चुकी थीं। वर्तमान में इन कंपाउंड्स की टेस्टिंग चूहों पर की जा रही है, ताकि मल्टी ड्रग-रेसिस्टेंट (एमडीआर) और एक्स्ट्रीमली ड्रग-रेसिस्टेंट (एक्सडीआर) टीबी के उपचार में सुधार हो सके। इस प्रक्रिया को भारत और यूएस में पेटेंट मिल चुका है।

एमडीआर और एक्सडीआर टीबी के लिए उम्मीद की किरण

दुनिया में हर साल टीबी के कारण 1.5 मिलियन लोगों की मौत हो जाती है। टीबी के ऐसे प्रकार भी सामने आ रहे हैं, जो मल्टी ड्रग-रेसिस्टेंट (एमडीआर) और एक्स्ट्रीमली ड्रग-रेसिस्टेंट (एक्सडीआर) हैं, जिन पर मौजूदा एंटी-टीबी दवाएं काम नहीं करतीं। ऐसे में आईआईटी इंदौर की यह खोज इन चुनौतियों का समाधान कर सकती है।

इंदौर में टीबी के मरीजों की स्थिति

इंदौर में पिछले साल शुरुआती ढाई महीने में 1500 से ज्यादा नए टीबी मरीज सामने आए थे। 2015 से 2022 तक, हर साल औसतन 8 हजार नए टीबी मरीजों की पहचान की गई। ज्यादातर मामलों में मरीजों को भर्ती नहीं किया जाता, और उन्हें घर पर रहकर ही इलाज किया जाता है। नियमित और सही उपचार से 90 फीसदी से ज्यादा मरीज पूरी तरह ठीक हो जाते हैं।

आईआईटी इंदौर की यह खोज न केवल टीबी के खिलाफ लड़ाई में महत्वपूर्ण साबित होगी, बल्कि स्वदेशी दवा निर्माण के क्षेत्र में भी एक नई उम्मीद जगाएगी।