ITDC India/Report : Anurag Pandey* :
ज्ञानवापी मस्जिद का विवाद आज का नहीं है काफ़ी पुराना है लेकिन इन दिनों में उसमें नया उफ़ान दिख रहा है.
1991 में बाबरी मस्जिद के विध्वंस से पहले बने एक क़ानून को समझे बिना ज्ञानवापी विवाद को ठीक से नहीं समझा जा सकता.
सबसे पहले ये जानते हैं कि साल 1991 का उपासना स्थल क़ानून क्या है ?
बात साल 1991 की है. उस वक़्त देश भर में अयोध्या श्रीराम जन्मभूमि पर मंदिर बनाने के लिए चल रहा आंदोलन अपने चरम पर था.
साल 1990 में बीजेपी के नेता लालकृष्ण आडवाणी देश भर में रथयात्रा लेकर निकले थे. बिहार में उनकी गिरफ़्तारी हुई थी. उसी साल कारसेवकों पर गोलियां चलीं. पूरे देश में और ख़ासतौर पर उत्तर प्रदेश में साम्प्रदायिक तनाव उबाल पर था.
उस वक़्त केंद्र में नरसिम्हा राव की सरकार ने संसद से उपासना स्थल कानून पारित कराया था.
उपासना स्थल क़ानून कहता है कि भारत में 15 अगस्त 1947 को जो धार्मिक स्थान जिस स्वरूप में था, वह उसी स्वरूप में रहेगा, उसकी स्थिति में कोई बदलाव नहीं किया जा सकेगा.
ये क़ानून ज्ञानवापी मस्जिद और मथुरा की शाही ईदगाह समेत देश के सभी धार्मिक स्थलों पर लागू होता है.
साल 2021 में फिर ज्ञानवापी मामला कोर्ट में क्यों पहुँचा?
18 अगस्त 2021 को पाँच महिलाओं ने बनारस की एक अदालत में एक नई याचिका दाखिल की थी.इन महिलाओं का नेतृत्व राखी सिंह कर रही हैं जो दिल्ली की रहने वाली हैं. बाकी चार महिला याचिकाकर्ता बनारस की निवासी हैं.इन सभी की मांग है कि उन्हें ज्ञानवापी मस्जिद के परिसर में मां श्रृंगार गौरी, भगवान गणेश, भगवान हनुमान, आदि विशेष और नंदी जी और मंदिर परिसर में दिख रही दूसरे देवी-देवताओं के दर्शन, पूजन और भोग लगाने की अनुमति दी जाए.
याचिकाकर्ताओं का दावा है कि माँ शृंगार देवी, भगवान हनुमान, गणेश और अन्य देवी-देवता दशाश्वमेध पुलिस थाने के क्षेत्राधिकार में प्लॉट नंबर 9130 में मौजूद हैं जो काशी विश्वनाथ मंदिर से सटा हुआ है.उनकी यह भी मांग है कि अंजुमन इंतेज़ामिया मसाजिद को देवी-देवताओं की मूर्तियों को तोड़ने, गिराने या नुकसान पहुँचाने से रोका जाए, और उत्तर प्रदेश सरकार को आदेश दिया जाए कि वो “प्राचीन मंदिर” के प्रांगण में देवी-देवताओं की मूर्तियों के दर्शन, पूजन के लिए सभी सुरक्षा के इंतज़ाम करे.अपनी याचिका में इन महिलाओं ने अलग से अर्ज़ी देकर यह भी मांग रखी थी कि कोर्ट एक अधिवक्ता आयुक्त (एडवोकेट कमिश्नर) की नियुक्ति करे जो इन सभी देवी-देवताओं की मूर्तियों सुरक्षा सुनिश्चित करे.इसी मांग को पहले ज़िला अदालत और बाद में हाई कोर्ट, दोनों ने सही ठहराते हुए मस्जिद परिसर के निरीक्षण की कार्रवाई को मंज़ूरी दी.
साल 2022 में क्या-क्या क्या हुआ?
इन महिलाओं की याचिका पर 8 अप्रैल 2022 को निचली अदालत ने स्थानीय वकील अजय कुमार को एडवोकेट कमिश्नर नियुक्त करके ज्ञानवापी परिसर का निरीक्षण वीडियो कैमरे के साथ करने का निर्देश दिया.
वाराणसी की अंजुमन इन्तेज़ामिया मसाजिद ने एडवोकेट कमिश्नर की नियुक्ति और प्रस्तावित निरीक्षण को हाई कोर्ट में चुनौती दी. हाई कोर्ट ने 21 अप्रैल 2022 को मस्जिद प्रबंधन की याचिका खारिज कर दी.
महिलाओं की याचिका पर इस महीने ज्ञानवापी मस्जिद (प्लॉट नंबर 9130) का निरीक्षण हुआ जो 16 मई को पूरा हुआ.17 मई को निरीक्षण की रिपोर्ट स्थानीय अदालत में दाखिल नहीं हो पाई है और एडवोकेट कमिश्नर ने दो दिन का समय माँगा है.ज्ञानवापी मस्जिद परिसर के निरीक्षण के ख़िलाफ़ मस्जिद प्रबंधन की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट में मंगलवार से सुनवाई शुरू हुई पर सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाते हुए कहा कि इसका फ़ैसला लखनऊ लोअर कोर्ट ही सुनाएगा.
यहां पर मुस्लिम समुदाय और कुछ इतिहासकार ने भी ये दावा किया कि ज्ञानवापी मस्जिद को 14वीं सदी में जौनपुर के शर्की सुल्तानों ने बनवाया था और इसके लिए उन्होंने यहां पहले से मौजूद विश्वनाथ मंदिर को तुड़वाया था. लेकिन इस मान्यता को तथ्य मानने से कई इतिहासकार इनकार करते हैं, ये दावे साक्ष्यों की कसौटी पर खरे नहीं उतरते है । वही वाराणसी की ज्ञानवापी मस्जिद में तीन दिन तक चले सर्वे के बाद हिंदू पक्ष ने दावा किया है कि मस्जिद में शिवलिंग पाया गया है। दूसरी ओर मुस्लिम पक्ष इसे वज़ूख़ाने में लगा फ़व्वारा बता रहा है। इसके बाद स्थानीय अदालत ने उस जगह को सील करने का आदेश दिया। वाराणसी में काशी विश्वनाथ मंदिर और उससे लगी ज्ञानवापी मस्जिद, दोनों के निर्माण और पुनर्निमाण को लेकर कई तरह की धारणाएँ हैं, लेकिन स्पष्ट और पुख़्ता ऐतिहासिक जानकारी काफ़ी कम है, दावों और क़िस्सों की भरमार ज़रूर है। आम मान्यता है कि काशी विश्वनाथ मंदिर को औरंगज़ेब ने तुड़वा दिया था और वहां मस्जिद बना दी गई लेकिन ऐतिहासिक दस्तावेज़ों को देखने-समझने पर मामला इससे कहीं ज़्यादा जटिल दिखता है।
अब यहां देखना होगा की ये फैसला किसके साथ आएगा फिलहाल यह मामला वराणसी की जिला अदालत मे चल रहा है और अंत मे फैसला कुछ भी आये पर यहां हम सब हिंदू मुस्लिम भाइयों को कोर्ट के दिए फैसले का सम्मान करना चाहिए क्योंकि हमारे देश में धर्म से बढ़कर अंबेडकर जी के द्वारा बनाए संविधान और कानून व्यवस्था को सम्मान दिया जाना अत्यंत जरूरी है ।
अनुराग पांडे की ये विशेष रिपोर्ट यूट्यूब आईटीडीसी पर जरूर देखें