सीएनएन सेंट्रल न्यूज़ एंड नेटवर्क–आईटीडीसी इंडिया ईप्रेस / आईटीडीसी न्यूज़ भोपाल: ईरान में 5 हजार राजनीतिक कैदियों को सजा-ए-मौत दिया जाना इस्लामिक रिपब्लिक के इतिहास में सबसे बड़ा जुर्म है।

साल 1988 में ईरान के तत्कालीन डिप्टी सुप्रीम लीडर आयतुल्लाह हुसैन अली मुंतजरी ने यह बात कही थी। ईरान की ‘डेथ कमेटी’ ने यह फैसला 1988 में ही दिया था और कमेटी के सदस्य थे तत्कालीन डिप्टी प्रॉसिक्यूटर जनरल इब्राहिम रईसी।

28 साल पुराने इस फैसले से जुड़ा एक ऑडियो साल 2016 में लीक हुआ था। ऑडियो रिकॉर्डिंग में मुंतजरी ईरान की ‘डेथ कमेटी’ से जुड़े सदस्यों पर चिल्ला रहे थे। वे इस फैसले से खुश नहीं थे।

कहा जाता है कि मुंतजरी के परिजन ने ही इस टेप को लीक किया था। ऑडियो लीक होने के 5 साल के अंदर रईसी पहले ईरान के चीफ जस्टिस और फिर देश के राष्ट्रपति बन गए।

ईरान के 8वें राष्ट्रपति इब्राहिम रईसी का रविवार शाम हेलिकॉप्टर क्रैश में निधन हो गया। 1979 की इस्लामिक क्रांति के समर्थक और वकील के तौर पर अपने करियर की शुरुआत करने वाले रईसी इस्लामिक राज को बढ़ावा देते हुए राष्ट्रपति के पद तक कैसे पहुंचे…

खामेनेई के सुप्रीम लीडर बनने के बाद रईसी का रसूख बढ़ा

ईरान में राजनीतिक कैदियों को सजा मिलने के एक साल बाद ईरान के तत्कालीन सुप्रीम लीडर आयतुल्लाह खुमैनी का निधन हो गया, लेकिन चौंकाने वाली बात ये थी कि डिप्टी सुप्रीम लीडर मुंतजरी की जगह ईरान के सर्वोच्च लीडर की कमान आयतुल्लाह अली खामेनेई को सौंपी गई।

कहा जाता है कि खामेनेई के ईरान का सर्वोच्च धार्मिक लीडर बनने का अगर सबसे ज्यादा फायदा किसी को मिला तो वो इब्राहिम रईसी थे। उनकी सरपरस्ती में इब्राहिम रईसी तेजी से सफलता की सीढ़ियां चढ़ते चले गए।

साल 2021 में राष्ट्रपति चुने जाने के बाद जब उनसे 1988 की सामूहिक फांसी की सजा को लेकर सवाल पूछा गया तो उन्होंने कहा, “अगर किसी जज या वकील ने देश की सुरक्षा की है, तो उसकी तारीफ होनी चाहिए। मैंने ईरान में हर पद पर रहते हुए मानवाधिकार की रक्षा की है।”

इब्राहिम रईसी ईरान के पहले ऐसे राष्ट्रपति थे, जिनके पद संभालने से पहले ही अमेरिका उन पर प्रतिबंध लगा चुका था। अमेरिका ने यह फैसला 5 हजार से ज्यादा राजनीतिक कैदियों को सामूहिक मौत की सजा देने के मुद्दे पर ही लिया था। इस घटना के बाद रईसी को ‘तेहरान का कसाई’ भी कहा गया।

दरअसल, इन राजनीतिक कैदियों का संबंध मुजाहिदीन-ए-खल्क (MeK) से था। सशस्त्र सैनिकों का ये संगठन वामपंथी विचारों वाला था। ये ईरान की राजनीति को इस्लाम के आधार पर चलाने के खिलाफ थे।