भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) ने 2022-24 के दौरान मुद्रास्फीति पर नियंत्रण पाने के लिए ठोस कदम उठाए हैं। लेकिन अब उसके सामने आर्थिक सुस्ती और महंगाई के नए खतरे दोहरे दबाव के रूप में उभर रहे हैं। आने वाले समय में संतुलन साधना उसकी सबसे बड़ी परीक्षा होगी।

  1. 2022 में चुनौती: बढ़ती मुद्रास्फीति और विकास बनाए रखना

2022 में खुदरा महंगाई दर 7.4% के उच्च स्तर पर पहुँच गई थी।

RBI ने मई 2022 से फरवरी 2023 तक रेपो दर 4% से बढ़ाकर 6.5% कर दी।

उद्देश्य: मांग को नियंत्रित कर कीमतों पर अंकुश लगाना, साथ ही आर्थिक विकास को बचाए रखना।

  1. उपलब्धि: मुद्रास्फीति लक्ष्य सीमा में

वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला में सुधार और कमोडिटी कीमतों में गिरावट से मदद मिली।

2024 की शुरुआत तक मुद्रास्फीति 4.1% पर पहुँच गई — 4% ± 2% के लक्ष्य के भीतर।

यह RBI की नीतिगत सख्ती की बड़ी सफलता थी।

  1. नई समस्या: आर्थिक मंदी के संकेत

ऊँची ब्याज दरों से उपभोक्ता ऋण और निवेश घटा।

2023 के अंतिम दो तिमाहियों में आवास और वाहन ऋण की मांग में 8-10% की गिरावट।

MSME क्षेत्र में पूंजी की कमी से उत्पादन प्रभावित।

निर्माण क्षेत्र में भी मंदी, जो रोजगार और विकास का बड़ा स्रोत है।

वैश्विक पूंजी बहिर्गमन से (मार्च 2024 में 2.4 अरब डॉलर का निकास) विदेशी निवेश प्रभावित।

  1. पुनः उभरती महंगाई की चिंता

2024 के कमजोर मानसून (अल-नीनो प्रभाव) से कृषि उत्पादन में गिरावट।

प्याज, टमाटर और दालों जैसी आवश्यक वस्तुओं के दाम 12-20% तक बढ़े।

सरकार ने निर्यात प्रतिबंध और बफर स्टॉक नीति अपनाई, फिर भी खतरा बरकरार।

अगले कुछ महीनों में मुद्रास्फीति 5% से ऊपर पहुँचने की आशंका।

  1. आगे की नीति: क्या RBI दरें घटाए?

विशेषज्ञों (ICRA, SBI रिसर्च) का सुझाव: धीरे-धीरे, सावधानीपूर्वक दर कटौती।

हर तिमाही 25 बेसिस पॉइंट की कटौती से माँग को सहारा मिलेगा बिना मुद्रास्फीति बढ़ाए।

आक्रामक कटौती से महंगाई भड़क सकती है, इसलिए सतर्कता आवश्यक।

  1. आवश्यक कदम: सरकार और RBI दोनों का समन्वय

आपूर्ति पक्ष सुधार: कृषि भंडारण, लॉजिस्टिक्स, वितरण तंत्र को मजबूत करना।

MSME सहायता: लक्षित सस्ती ऋण योजनाओं द्वारा निवेश चक्र को गति देना।

व्यापक दृष्टिकोण: केवल मौद्रिक नीति नहीं, संरचनात्मक सुधार भी समानांतर चलें।

निष्कर्ष

RBI ने अब तक संकट प्रबंधन में संतुलन दिखाया है। परंतु, अब जो चुनौती सामने है वह और भी जटिल है — एक ओर विकास को प्रोत्साहन देना, दूसरी ओर महंगाई पर अंकुश बनाए रखना। यदि RBI की मौद्रिक रणनीति और सरकार की आपूर्ति सुधार नीतियाँ साथ मिलकर आगे बढ़ती हैं, तो भारत न केवल आर्थिक स्थिरता बनाए रख सकता है, बल्कि वैश्विक अनिश्चितताओं के बीच विकास का नया मॉडल भी प्रस्तुत कर सकता है।

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