मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय ने इंदौर के बस रैपिड ट्रांजिट सिस्टम (BRTS) कॉरिडोर को हटाने का आदेश दिया है। करीब 300 करोड़ रुपये की लागत से बने 11.8 किलोमीटर लंबे इस कॉरिडोर को अब हटाया जाएगा। इस फैसले ने शहरी नियोजन और सार्वजनिक परिवहन व्यवस्था पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं।
BRTS की विफलता के कारण
BRTS को बेहतर सार्वजनिक परिवहन के मॉडल के रूप में विकसित किया गया था, लेकिन यह प्रणाली इंदौर में कारगर नहीं हो पाई। इसके पीछे कई कारण थे:
यातायात जाम और असुविधा: BRTS कॉरिडोर ने मुख्य मार्गों पर ट्रैफिक को बाधित किया, जिससे निजी वाहन चालकों और अन्य सार्वजनिक परिवहन सेवाओं को असुविधा हुई।
कम उपयोगिता: जिस तरह दिल्ली और अहमदाबाद में BRTS प्रभावी रहा, वैसा इंदौर में नहीं हो सका। नागरिकों ने निजी वाहनों और मेट्रो प्रोजेक्ट को ज्यादा प्राथमिकता दी।
नीतिगत असफलता: शुरुआत में गलत योजना और क्रियान्वयन के कारण यह सिस्टम कभी पूरी तरह सफल नहीं हो पाया।क्या यह फंड की बर्बादी है?
BRTS प्रोजेक्ट पर 300 करोड़ रुपये खर्च किए गए थे, लेकिन इसके हटने के फैसले से यह सवाल उठता है कि क्या यह सार्वजनिक धन की बर्बादी है?
यदि शहरी विकास परियोजनाओं को बिना समुचित अध्ययन और भविष्य की जरूरतों को ध्यान में रखे लागू किया जाएगा, तो ऐसे फैसले बार-बार दोहराए जाएंगे।
इस फैसले से यह भी स्पष्ट होता है कि शहरी योजना में नागरिकों की भागीदारी और उनके व्यवहार की समझ होना जरूरी है।आगे क्या?
मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव पहले ही इस प्रोजेक्ट को हटाने की बात कह चुके थे, और अब कोर्ट के आदेश के बाद इसे जल्द ही हटाने की प्रक्रिया शुरू होगी। सवाल यह है कि इस कॉरिडोर की जगह क्या नया ट्रांसपोर्ट मॉडल अपनाया जाएगा?
मेट्रो और सार्वजनिक परिवहन को मजबूत करने की जरूरत: BRTS की असफलता के बाद अब इंदौर को एक बेहतर सार्वजनिक परिवहन प्रणाली की जरूरत है, जो न केवल ट्रैफिक जाम से राहत दे, बल्कि यात्रियों को सुविधाजनक और किफायती सफर भी उपलब्ध कराए।
स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट के तहत नए समाधान: सरकार को चाहिए कि शहरी परिवहन को स्मार्ट और टिकाऊ बनाने के लिए नई योजनाओं पर काम करे, जिससे शहर के विकास को सही दिशा मिल सके।निष्कर्ष
BRTS का हटना इंदौर के लिए एक सबक है कि शहरी परिवहन परियोजनाएं बिना समुचित प्लानिंग और पब्लिक फीडबैक के लागू नहीं की जानी चाहिए। यह न केवल सरकारी धन का नुकसान करता है, बल्कि नागरिकों को भी असुविधा पहुंचाता है। अब सवाल यह है कि क्या भविष्य की परिवहन योजनाएं इस असफलता से सबक लेंगी? या फिर ऐसे प्रयोग दोहराए जाते रहेंगे?
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