सीएनएन सेंट्रल न्यूज़ एंड नेटवर्क–आईटीडीसी इंडिया ईप्रेस /आईटीडीसी न्यूज़ भोपाल: आज अनंत चतुर्दशी के अवसर पर इंदौर में 100 साल पुरानी एक खास परंपरा का भव्य आयोजन किया गया। शहर की सड़कों पर झांकियों के चल समारोह से इंदौर रातभर जागेगा। गणेशोत्सव के इस दस दिवसीय उत्सव का समापन झांकियों के अद्भुत प्रदर्शन के साथ होगा।
झांकियों की इस परंपरा की शुरुआत करीब 101 साल पहले मिल मजदूर मोरू भैया पुराणिक और मैनेजर श्री पंत वैद्य ने की थी। हुकुमचंद मिल से पहली झांकी निकलने के बाद यह आयोजन शहर की पहचान बन गया है। इस बार की झांकियों में देवी अहिल्या द्वारा अपने बेटे को हाथियों से कुचलवाने से जुड़े प्रसंग ने काफी ध्यान आकर्षित किया, जिस पर बीच रास्ते में प्रशासन ने आपत्ति ली और झांकी को वापस लौटना पड़ा।
झांकियों का ऐतिहासिक सफर:
इंदौर में 1924 से झांकियों की शुरुआत हुई थी, जब हुकुमचंद मिल ने पहली झांकी निकाली। धीरे-धीरे अन्य मिलों के मजदूर भी इसमें शामिल होते गए। 1930 के दशक में जब स्वतंत्रता संग्राम जोर पकड़ रहा था, तब झांकियों में आजादी के आंदोलन की झलक भी दिखाई देने लगी।
स्वदेशी मिल ने 1947 में आजादी के बाद पहली बार प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू पर आधारित झांकी निकाली। झांकियों का स्वरूप समय के साथ बदलता गया, 1970 के दशक में प्रशासन के खिलाफ बनी सरकार विरोधी झांकी पर भी काफी चर्चा हुई थी।
वर्तमान में झांकियों का स्वरूप:
आज के समय में झांकियों का रूट 6 किलोमीटर लंबा हो चुका है, जिसमें 11 बड़ी झांकियों समेत 25 से ज्यादा झांकियां निकाली जाती हैं। शाम 6 से 7 बजे के बीच झांकियों का जुलूस निकलता है, जो रात 10 बजे तक अपने भव्य स्वरूप में बदल जाता है।
जो लोग भीड़-भाड़ से बचने के लिए अनंत चतुर्दशी की रात को नहीं आ पाते, उनके लिए अगले तीन दिनों तक शाम 7 से रात 1 बजे तक झांकियों को निर्धारित स्थानों पर खड़ा रखा जाता है, ताकि परिवार सहित लोग इनका आनंद ले सकें।
इंदौर की यह खास परंपरा न केवल शहर की पहचान है, बल्कि इससे हर साल लाखों लोग जुड़ते हैं और झांकियों के इस अद्भुत जुलूस का हिस्सा बनते हैं