भारत में नवंबर में सोने का आयात रिकॉर्ड ₹14.86 बिलियन तक पहुंच गया है, जिसने केवल अपनी विशालता से ही नहीं, बल्कि इसके निहित अर्थों से भी सबका ध्यान खींचा है। यह चार गुना बढ़ोतरी, जो मुख्य रूप से शादियों और त्योहारों की मांग से प्रेरित है, हमारे सांस्कृतिक जुड़ाव का प्रतीक है। लेकिन इस चमक के पीछे कई महत्वपूर्ण चिंताएं छिपी हुई हैं।

सोना भारत में केवल एक वस्तु नहीं है—यह एक भावनात्मक संपत्ति, प्रतिष्ठा का प्रतीक और लाखों लोगों के लिए वित्तीय सुरक्षा का आधार है। हालांकि, इस वित्तीय वर्ष के अप्रैल से नवंबर तक के आयात में 49% की वृद्धि, पिछले वर्ष की तुलना में, अर्थव्यवस्था पर इसके प्रभाव को लेकर सवाल उठाती है।

जहां यह उछाल आभूषण और खुदरा जैसे क्षेत्रों को अस्थायी रूप से प्रोत्साहित कर सकता है, वहीं यह भारत के व्यापार घाटे को भी बढ़ाता है, जिससे रुपये पर दबाव बढ़ता है। सोने पर अत्यधिक निर्भरता अर्थव्यवस्था को वैश्विक कीमतों और भू-राजनीतिक अस्थिरताओं जैसे बाहरी झटकों के प्रति कमजोर बनाती है। साथ ही, सोना एक गैर-उत्पादक संपत्ति है, और इसमें निवेश धन को ऐसे क्षेत्रों से दूर करता है, जैसे इक्विटी मार्केट या बुनियादी ढांचा विकास, जो आर्थिक वृद्धि को बढ़ावा दे सकते हैं।

नीतिगत दृष्टिकोण से, यह प्रवृत्ति सोने के आयात को नियंत्रित करने की बहस को फिर से प्रासंगिक बनाती है। आयात शुल्क लगाने जैसे पिछले प्रयास सीमित रूप से सफल रहे हैं और अक्सर तस्करी को बढ़ावा देते हैं। एक अधिक स्थायी समाधान वित्तीय साक्षरता को प्रोत्साहित करना हो सकता है, जिससे उपभोक्ता म्यूचुअल फंड, इक्विटी, या सरकारी बांड जैसी उत्पादक संपत्तियों की ओर रुख करें। इसके अलावा, डिजिटल गोल्ड या गोल्ड ईटीएफ को बढ़ावा देना परंपरा और आधुनिकता के बीच एक पुल का काम कर सकता है, जिससे लोग भौतिक रूप से सोना आयात किए बिना इसमें निवेश कर सकें।

सकारात्मक पक्ष यह है कि सोने के आयात में यह उछाल मजबूत घरेलू मांग का संकेत देता है—महामारी के बाद आर्थिक सुधार का एक संकेत। त्योहार और शादियां, जो पिछले कुछ समय से शांत थीं, अब जोश के साथ मनाई जा रही हैं, जो उपभोक्ता भावनाओं और क्रय शक्ति में सुधार का संकेत देती हैं।

चुनौती इस बात में है कि सांस्कृतिक परंपराओं का सम्मान करते हुए आर्थिक स्थिरता को कैसे सुनिश्चित किया जाए। नीति निर्माताओं को एक संतुलित दृष्टिकोण अपनाना होगा, जो न तो उपभोक्ताओं को निराश करे और न ही व्यापक अर्थव्यवस्था को खतरे में डाले। भारत का सोने के प्रति प्रेम शायद कभी कम न हो, लेकिन इस आकर्षण को सही दिशा में मोड़कर इसे एक सुनहरे अवसर में बदला जा सकता है।

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