मोटे अनाजों (Millets) के महत्व को समझते हुए और लोगों को पौष्टिक भोजन उपलब्ध कराने के साथ-साथ स्वदेशी और वैश्विक मांग को बढ़ावा देने में भारत इस विशेष वर्ष में वैश्विक नेतृत्व की ओर बढ़ रहा है। आइए जानें मोटे अनाजों का महत्व और कैसे ये अनाज सुरक्षित, स्थायी और स्वस्थ भविष्य के लिए एक जन आंदोलन को प्रेरित कर रहे हैं।
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मोटे अनाज का महत्व
हरित क्रांति से पहले मोटे अनाज कुल अनाज उत्पादन का लगभग 40% थे, जो बाद में घटकर 20% रह गए। खेती में वाणिज्यिक फसलों की प्राथमिकता और नीतियों ने मोटे अनाज की भूमि घटा दी। हालांकि, बदलते खानपान और पौष्टिकता की आवश्यकता ने मोटे अनाज को फिर से प्रमुखता दिलाई है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी मोटे अनाजों को बढ़ावा देने का आह्वान किया है। इन अनाजों की खेती और खपत में तेजी आ रही है। ज्वार, बाजरा, रागी जैसे मोटे अनाज मानव सभ्यता के सबसे पुराने खाद्य पदार्थों में से एक हैं। सिंधु घाटी सभ्यता में भी इनका उपयोग होता था।
भारत विश्व में लगभग 1.80 करोड़ मीट्रिक टन मोटे अनाज का उत्पादन करता है, जो वैश्विक उत्पादन का 20% है। ये अनाज “पोषण-समृद्ध और जलवायु-लचीले” फसल के रूप में जाने जाते हैं।
भारत का नेतृत्व
भारत में एशिया के 80% से अधिक मोटे अनाज का उत्पादन होता है। प्रमुख उत्पादक राज्य हैं राजस्थान, उत्तर प्रदेश, हरियाणा, गुजरात, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, कर्नाटक, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश और तेलंगाना।
राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन (NFSM) के तहत पोषण अनाज (POSHAK) को बढ़ावा देने के लिए 212 जिलों में कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं।
सरकार की पहल
NFSM-न्यूट्री अनाज: किसानों को नई तकनीक और बीजों पर प्रोत्साहन।
पीएलआई योजना: मोटे अनाज आधारित उत्पादों के लिए 800 करोड़ की प्रोत्साहन योजना।
PMFME योजना: मोटे अनाजों की प्रोसेसिंग इकाइयों के लिए 2 करोड़ तक के ऋण पर ब्याज छूट।
ICAR-IIMR: अनुसंधान और विकास को बढ़ावा।
निष्कर्ष
मोटे अनाज न केवल पोषण प्रदान करते हैं, बल्कि पर्यावरण के लिए भी अनुकूल हैं। ये छोटे किसानों को आत्मनिर्भरता की ओर प्रेरित करते हैं और स्वास्थ्य के साथ-साथ कृषि की स्थिरता को भी बढ़ावा देते हैं।
प्रो. सुनील गोयल
लेखक उच्च शिक्षा विभाग, मध्य प्रदेश सरकार में प्रोफेसर और स्वदेशी रिसर्च इंस्टीट्यूट के मानद अध्यक्ष हैं।

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