सीएनएन सेंट्रल न्यूज़ एंड नेटवर्क–आईटीडीसी इंडिया ईप्रेस /आईटीडीसी न्यूज़ भोपाल : केन्द्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय भोपाल परिसर में भारतीय परम्पराओं में अनुसन्धान प्रक्रिया विषय पर द्विदिवसीय राष्ट्रीय सङ्गोष्ठी का आयोजन किया गया। केंद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय नई दिल्ली के कुलपति श्रीनिवास वरखेड़ी के संरक्षण में आयोजित इस संगोष्ठी का उद्घाटन समारोह भवभूति प्रेक्षागार, भोपाल परिसर, भोपाल में हुआ। इस अवसर पर मुख्य अतिथि के रूप में निदेशक रहसबिहारी द्विवेदी, पूर्व अध्यक्ष, संस्कृत विभाग, रानी दुर्गावती विश्वविद्यालय, जबलपुर,विशिष्ट अतिथि के रूप में निदेशक अरविन्द झा,आचार्य, शिक्षा विभाग, इन्दिरा गांधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय, नई दिल्ली तथा अध्यक्ष के रूप में निदेशक रमाकांत पाण्डेय,निदेशक, केन्द्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय, भोपाल परिसर उपस्थित थे। नीलाभ तिवारी,सह-निदेशक, केन्द्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय, भोपालपरिसर भी इस अवसर पर मार्गनिर्देशक के रूप में उपस्थित रहे।
अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में निदेशक रमाकांत पाण्डेय ने बताया कि भारतीय ज्ञान परंपरा अत्यंत ही समृद्ध एवं विस्तृत रही है ।भारतीय ज्ञान परंपरा मानवीय जीवन के सभी पहलुओं पर चर्चा करते हुए इन सभी बिंदुओं के विषय में मार्गदर्शक सिद्धांतों का प्रतिपादन करती है। भारतीय ज्ञान परंपरा के मूल्य, सिद्धांत एवं संस्कार प्रत्येक युग में समसामयिक रहे हैं । भारतीय ज्ञान परंपरा में ऋषिचर्या – आर्षचर्या रही है जिसमें संपूर्ण दिनचर्या ही अनुसंधान आधारित है । भारतीय ज्ञान परंपरा में तपस्या आधारित ज्ञान प्राप्ति की प्रक्रिया स्वयं में ही आविष्कार है।भारत में ज्ञान से साक्षात्कार ही हमारी परंपरा रही है ।भारतीय परंपरा अनादि परंपरा है। हमारे यहां पर तार्किक, न्यायिक, एवं शास्त्रार्थ विचार पद्धति रही हैं। भारतीय ज्ञान परंपरा पूर्ण रूप से अनुसंधान परक होते हुए अनुसंधान के अनेक सोपानों को भी वर्णित करती है। भारत में बौद्ध और जैन परंपरा में प्रमाण मीमांसा रही है। संगोष्ठी के मार्ग निदेशक नीलाभ तिवारी ने अपने स्वागत एवं प्रास्ताविक वक्तव्य में कहा कि वर्तमान समय में अनुसंधान के लिए सभी लोग पाश्चात्य पद्धती का अनुकरण करते हैं परंतु यह भूल जाते हैं कि भारतीय संस्कृति में वेद उपलब्ध हैं ,वेद ही ज्ञान है और यह ज्ञान तप कर के प्राप्त किया गया है ।भारतीय संस्कृति में तप अनुसंधान है, आयुर्वेद व अन्य विज्ञान में तंत्र युक्ति ही अनुसंधान है। इस प्रकार से भारतीय ज्ञान परंपरा में तो ज्ञान का उद्गम अनुसंधान प्रक्रिया के आधार पर ही होता रहा है ।केंद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय भारतीय ज्ञान परंपरा, भारतीय शास्त्रीय मूल्यों , भारतीय संस्कृति तथा परंपरा को आधुनिक समय में किस प्रकार उपयोग में लाया जाए इस संदर्भ में अनेक शोध, विश्लेषण एवं प्रयास करता रहता है।
निदेशक रहस बिहारी द्विवेदी ने समस्त शोध पत्र प्रस्तुत कर्ताओं को प्रेरित किया कि वह भारतीय ज्ञान परंपरा के संदर्भ में समसामयिक विषयों को रखते हुए शोध करें। इस प्रकार के शोध से वर्तमान समय की जटिलताओं को हल करने में भारतीय ज्ञान परंपरा का वैशिष्ट्य काम आ सकता है। प्रो अरविंद झा ने कहा कि भारतीय संस्कृति में ज्ञान का ऐसा कोई आयाम नहीं है जो वर्तमान समय में उपयोगी ना हो।
उद्घाटन सत्र में धन्यवाद ज्ञापन निदेशक सोमनाथ साहु ने दिया तथा संचालन जितेंद्र तिवारी का रहा।
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