आईटीडीसी इंडिया ईप्रेस/आईटीडीसी न्यूज़ भोपाल: क्रिकेट वर्ल्ड कप…. यानी दुनिया में क्रिकेट का सबसे बड़ा मुकाबला। इस मुकाबले को जीतने के लिए कैसी टीम होनी चाहिए। अनुभव और युवा जोश का कॉम्बिनेशन क्या हो। बैटिंग, बॉलिंग, फील्डिंग का बैलेंस कैसे बनाना चाहिए।

दैनिक भास्कर की खास सीरीज इंडिया का वर्ल्ड कप कनेक्शन में आज इन्हीं पर बात होगी। 12 में से 10 वर्ल्ड कप स्टेडियम में बैठकर देख चुके हमारे एक्सपर्ट अयाज मेमन अपनी यादों के पिटारे से निकाल रहे हैं ऐसे किस्से, जो हर सवाल का जवाब हैं।

सवाल: वर्ल्ड कप विजेता टीम के कॉम्बिनेशन को आप किस तरह देखते हैं?

अयाज मेमन: कहा जाता है यंग लंग्स एंड यंग लेग्स, ये दोनों चीजें क्रिकेट के लिए बेहद जरूरी हैं; लेकिन मुझे लगता है कि आखिरकार जो चीज मायने रखती हैं वो है कॉम्बिनेशन। अगर आप ग्यारह खिलाड़ी 35 साल वाले रख लीजिए तो वो बहुत समझदार और अनुभव वाली टीम बन जाएगी, लेकिन शायद ये टीम बहुत ज्यादा कुछ ना कर पाए। अगर आप 17-18 साल के सारे प्लेयर्स ले लीजिए तो ये बहुत एनर्जेटिक टीम बन जाएगी, लेकिन इस टीम के सामने चुनौती रहेगी सिचुएशंस की। ऐसे हालात होंगे, जो इस टीम ने कभी फेस नहीं किए होंगे। ऐसे में आप कितनी भी ताकत लगा लें या एनर्जी दिखा लें, आप नहीं जीत पाएंगे।

सवाल: इंडिया के अलग-अलग दौर में अलग-अलग कॉम्बिनेशन रहे और दूसरी टीमों ने भी एक्सपेरिमेंट किए, इस पर क्या कहेंगे?

अयाज मेमन: वर्ल्ड कप का इतिहास देखिए, पहला टूर्नामेंट जीता था वेस्टइंडीज ने। कैप्टन थे क्लाइव लॉयड और उन्होंने फाइनल में सेंचुरी बनाई। एक बैट्समैन थे रोहन कन्हाई, उस वक्त उनकी उम्र 39-40 रही होगी, उन्होंने हाफ सेंचुरी बनाकर टीम को संभाला।

2007 में ऑस्ट्रेलिया वर्ल्ड कप जीता और वेस्टइंडीज में जीता। एडम गिलक्रिस्ट काफी उम्र हो गई थी, लेकिन ओपनर के तौर पर सेंचुरी बनाई। श्रीलंका के खिलाफ फाइनल जीता। 2011 का वर्ल्ड कप, जब इंडिया की टीम में भी बहुत यंग प्लेयर्स थे। विराट कोहली, गौतम गंभीर और भी कई नाम थे, लेकिन दूसरी तरफ सचिन भी थे।

यंग टीम का सबसे बेहतर उदाहरण है 1987 में ऑस्ट्रेलिया का, जिसने भारत के ईडन गार्डंस में इंग्लैंड को हराकर वर्ल्ड कप जीता था। एलन बॉर्डर कैप्टन थे और उनके आसपास पूरी यंग टीम थी। डेविड बून, ज्यॉफ मार्श, डीन जोंस जैसे खिलाड़ी।

इसी तरह 1992 में पाकिस्तान की जीत। इमरान खान और जावेद मियांदाद का अनुभव था, लेकिन साथ थे वसीम अकरम, रमीज राजा जैसे खिलाड़ी। तो कॉम्बिनेशन केवल उम्र का नहीं, बल्कि स्किल सेट्स का भी, ये बेहद जरूरी होता है।

सवाल: 1983, 2003 और 2011 तीनों वर्ल्ड कप में इंडिया फाइनल खेली। हमने देखा कि 83 में कपिल 7वें डाउन पर आते थे। 2003 में सचिन और सहवाग बॉलिंग भी करते थे। इसी तरह 2011 में भी स्किल सेट्स ज्यादा थे। क्या कहेंगे?

अयाज मेमन: जैसे-जैसे क्रिकेट बढ़ रहा है, वैसे ही ये सारी चीजें भी बढ़ रही हैें। 1983 में टीम चुनने में सिलेक्टर्स का रोल बहुत ज्यादा था। कपिल देव के पास, जो टीम थी वहां ऐसे प्लेयर्स थे जो इंग्लिश कंडीशन में अच्छी बॉलिंग कर लेते थे और अच्छी बैटिंग भी करते थे। मदन लाल, रोजर बिन्नी, मोहिंदर अमरनाथ, बलविंदर सिंह संधू, ये स्विंग बॉलर्स थे और इनके पास बैटिंग भी थी।