भोपाल । भोपाल के गैस पीडि़तों का दर्द 37 वर्ष बाद भी जिंदा है। इस दर्द को पूरी तरह खत्म तो नहीं किया जा सकता, पर कम जरूर किया जा सकता है, लेकिन इसके लिए भी ठोस प्रयास नहीं किए जा रहे हैं। गैस पीडि़त संगठनों और केंद्र सरकार ने लाखों प्रभावितों के दर्द को कम करने के लिए गैस कांड की जिम्मेदार डाव केमिकल कंपनी से 7 हजार 844 करोड़ रुपये अतिरिक्त मुआवजा मांगा है।

तत्कालीन केंद्र सरकार ने वर्ष 2010 में सुप्रीम कोर्ट में सुधार याचिका लगाई थी ताकि मिलने वाली राशि से प्रभावितों का दर्द कम किया जा सके। बीते 11 वर्षों में याचिका पर सुनवाई पूरी नहीं हुई है। जिसके कारण मुआवजा नहीं मिल पा रहा है।

गैस पीडि़तों की तरफ से सुप्रीम कोर्ट में पक्ष रखने वाले वरिष्ठ अधिवक्ता एनडी जयप्रकाश का कहना है कि जनवरी 2020 में याचिका पर सुनवाई के लिए पांच न्यायाधीधों वाली बेंच गठित की थी। इसमें शामिल न्यायाधीश रवींद्र भट्ट ने बैंच से इस्तीफा दे दिया था। तब से नई बैंच गठित नहीं हुई है।

न्यायाधीश रवींद्र भट्ट 1989 में सरकार की तरफ से गैस प्रभावितों से जुड़ी याचिकाओं पर अपना पक्ष रखते रहे हैं। अधिवक्ता एनडी जयप्रकाश का कहना है कि वे गैस पीडि़तों की तरफ से दोबारा जल्द सुनवाई की मांग करेंगे।

प्रतिनिधियों ने मांगा था पांच गुना मुआवजा

स्वर्गीय अब्दुल जब्बार की पत्नी सायरा बानो बताती हैं कि 2-3 दिसंबर 1984 की रात भोपाल में हुए भयावह गैस कांड में मृतक व गंभीर घायलों को मुआवजा देने 14-15 फरवरी 1989 में यूनियन कार्बाइड व तत्कालीन केंद्र सरकार के बीच समौता हुआ था। समझौते में 1 लाख 2 हजार गंभीर घायल व तीन हजार मृतकों के परिजनों के लिए 715 करोड़ मुआवजा राशि तय की थी। तब भोपाल गैस पीडि़त महिला उद्योग संगठन के संयोजक रहते अब्दुल जब्बार (निधन हो चुका है) व भोपाल गैस पीडि़त संघर्ष सहयोग समिति ने कोर्ट में 22 फरवरी 1989 को समझौते को चुनौती दी थी।

इसमें बताया था कि समझौते में केंद्र सरकार ने घायल व मृतकों की संख्या कम बताई है जो गलत है। समझौते में भविष्य में होने वाली गंभीर घायलों की मौत व खतरनाक बीमारियों का ध्यान नहीं रखा गया। तब सुप्रीम कोर्ट ने 3 अक्टूबर 1991 के एक निर्णय में कहा था कि आने वाले समय में घायल व मृतकों की संख्या बढ़ती है और मुआवजा राशि कम पड़ती है तो उसे समझौता करने वाली केंद्र सरकार को वहन करनी होगी।

इन साक्ष्यों के आधार पर मांगा है मुआवजा

वरिष्ठ अधिवक्ता एनडी जयप्रकाश बताते हैं कि समझौते में यूनियन कार्बाइड से मिले 715 करोड़ रुपए 1990 से 2006 के बीच 5 लाख 74 हजार घायल व 15 हजार 274 मृतकों के स्वजनों को 50 हजार से 10 लाख रुपये मुआवजा बांटा था। तब समझौत में तत्कालीन केंद्र सरकार ने घायल व मृतकों की संख्या कम बताई थी इसलिए उक्त राशि मृतक के स्वजन व गंभीर घायलों को कम पड़ गई थी। स्थानीय स्तर पर गैस कांड के मामलों का निराकरण करने वाली गैस अदालतों में सामने आए थे। इस आधार पर 2004 में मृतक व प्रभावितों की संख्या अधिक सामने आई थी जो कोर्ट को बताई गई। इसी आधार पर संगठन व अन्य ने पांच गुना अधिक मुआवजे की मांग वाली याचिका लगाई थी। याचिका पर कोर्ट ने केंद्र से जवाब मांगा था।