भारतीय कूटनीतिक और रणनीतिक विमर्श में अब “डिजिटल संप्रभुता” केवल एक तकनीकी शब्द नहीं, बल्कि राष्ट्रीय सुरक्षा का केंद्रीय स्तंभ बन चुका है। अमेरिकी खुफिया एजेंसी द्वारा उजागर किए गए चीन समर्थित साइबर हमलों ने भारत की ऊर्जा, दूरसंचार और सामरिक ढांचे को गंभीर खतरे में डाला है। यह खतरा अब महज़ डेटा की चोरी नहीं, बल्कि डिजिटल युद्ध की घंटी है।

  1. खतरे की परतें: सूचना से संप्रभुता तक

चीन समर्थित हैकर समूह लगातार भारत के क्रिटिकल इंफ्रास्ट्रक्चर—जैसे पावर ग्रिड, परमाणु संयंत्र, रेलवे नियंत्रण प्रणाली, और टेलीकॉम नेटवर्क को निशाना बना रहे हैं।

अमेरिकी रिपोर्ट में साफ़ तौर पर कहा गया कि ये हमले केवल “डेटा एक्सफिल्ट्रेशन” नहीं बल्कि “डिजिटल घुसपैठ” का हिस्सा हैं।

Reddit पर इसे “डिजिटल कारगिल” कहा गया—संकेत है कि युद्ध अब सीमाओं पर नहीं, सर्वरों और नेटवर्क्स के भीतर लड़ा जा रहा है।

  1. सरकारी प्रतिक्रिया: पर्याप्त या प्रतीकात्मक?

CERT-In (भारतीय कंप्यूटर इमरजेंसी रिस्पॉन्स टीम) ने निगरानी बढ़ाई है।

IT मंत्रालय ने “क्रिटिकल इन्फ्रास्ट्रक्चर” से जुड़े संगठनों को एडवाइजरी जारी की है।

नेटवर्क हार्डनिंग और वल्नरेबिलिटी स्कैनिंग पर बल दिया जा रहा है।

लेकिन सवाल बना हुआ है—क्या ये कदम पर्याप्त हैं?

  1. रणनीतिक कमजोरी: केवल रक्षात्मक नीति पर्याप्त नहीं

भारत की मौजूदा साइबर नीति प्रतिक्रियात्मक है, रचनात्मक या निवारक (preventive) नहीं।

चीन, रूस और अमेरिका जैसे देश अब Offensive Cyber Capability विकसित कर चुके हैं। भारत अभी भी केवल हमलों के बाद “नुकसान की मरम्मत” तक सीमित है।

  1. डिजिटल संप्रभुता की दिशा में आवश्यक कदम

‌i. आक्रामक साइबर रणनीति

Cyber Reserve Force: तकनीकी विशेषज्ञों और “एथिकल हैकर्स” की एक रिजर्व फौज बनाई जाए, जो युद्धकालीन स्थिति में सक्रिय हो।

Red Team-Blue Team ड्रिल्स: सरकारी नेटवर्क्स पर मॉक अटैक कर कमजोरियों की पहचान।

  1. स्वदेशी साइबर सुरक्षा तकनीक

Make-in-India एंटीवायरस और फ़ायरवॉल्स—चीन जैसे देशों पर निर्भरता ख़त्म हो।

Zero Trust Architecture—हर डिवाइस और हर यूज़र को संदिग्ध मानकर नियंत्रित एक्सेस देना।

iii. रणनीतिक गठबंधन

भारत को Quad जैसे मंचों पर साइबर डिफेंस गठबंधन के लिए ज़ोर देना होगा।

Indo-Pacific साइबर सुरक्षा तंत्र—साझा साइबर इंटेलिजेंस साझा करने की पहल।

  1. समाज और निजी क्षेत्र की भूमिका

आम नागरिकों की साइबर साक्षरता बढ़ाना ज़रूरी है—फिशिंग, रैनसमवेयर और डेटा चोरी के खतरों से अवगत कराना होगा।

निजी कंपनियों, विशेषकर बैंकिंग, इंश्योरेंस, और टेलीकॉम सेक्टर को अनिवार्य साइबर ऑडिट और रिपोर्टिंग के दायरे में लाना चाहिए।

निष्कर्ष: साइबर युद्ध की शुरुआत हो चुकी है

अगर भारत ने अब भी केवल रक्षात्मक उपायों पर भरोसा रखा, तो अगला युद्ध हमारे कंप्यूटरों के भीतर ही लड़ा और हारा जाएगा। यह वक्त “डिजिटल संप्रभुता” को संवैधानिक और रणनीतिक प्राथमिकता देने का है।

आज राष्ट्र की सीमाएँ भूगोल से नहीं, बल्कि फायरवॉल्स और डेटा सुरक्षा से तय होती हैं।

ड्रैगन अब हमारे सीमा प्रहरी को नहीं, हमारे सर्वरों को चुनौती दे रहा है—और हमें चुनौती स्वीकार करनी होगी।

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