भोपाल । भद्रा के पुच्छकाल में 17 मार्च को होलिका दहन होगा। होलिका दहन का मुहूर्त करीब एक घंटे का रहेगा। होलाष्टक दस मार्च से शुरू होंगे। होली के आठ दिन पहले होलाष्टक शुरू होने से सभी शुभ काम बंद हो जाते हैं, हालांकि शुक्र का तारा अस्त होने से शुभ कार्यों पर विराम लगा हुआ।भद्रा रहित होलिका दहन के लिए मुहूर्त रात्रि तीन से 4:30 बजे शुभ व 4:30 से 6 बजे तक अमृत में रहेगा। रंगों का उत्सव फाल्गुन शुक्ल पक्ष स्नान दान व्रत पूर्णिमा गुरुवार 17 मार्च को होलिका दहन के साथ मनाया जाएगा।
राजधानी के ज्योतिषाचार्यों के अनुसार, 17 फरवरी को दोपहर 1:20 बजे से रात 1:18 बजे तक भद्रा योग रहेगा। भद्रा को अशुभ माना जाता है। पर्व निर्णय सभा उत्तराखंड ने मत दिया है कि रात्रि 9:04 बजे से 10:14 बजे तक जब भद्रा का पुच्छकाल व स्थिर लग्न रहेगा, उस समय होलिका दहन किया जा सकता है। भद्रा रहित होलिका दहन रात्रि अंत तीन से छह बजे तक शुभ रहेगा। रात्रि तीन से 4:30 तक शुभ, रात्रि 4:30 से छह बजे तक अमृत में होलिका दहन अति शुभ रहेगा। होलिका दहन के दूसरे दिन 18 मार्च शुक्रवार को होलिका उत्सव चल समारोह के साथ मनाया जाएगा। 20 मार्च रविवार को भगवान चित्रगुप्त पूजा के साथ भाईदूज का त्योहार रहेगा।
22 मार्च मंगलवार को रंगपंचमी महोत्सव मनाया जाएगा। 24 मार्च गुरूवार को वसोरा के साथ शीतला सप्तमी एवं 25 मार्च को शीतला अष्टमी की पूजा के साथ होलिका दहन पर्व का समापन होगा। गुझियां, पपडिय़ां एवं अन्य पकवान बनाकर पूजा की जाती है। हर घर में मलरिया की होली जलती है। जिन परिवारों में बीते एक वर्ष के दौरान कोई गमी हुई हो, उन घरों पर जाकर रंग-गुलाल लगाया जाता है, अनराय की होली मानी जाती है। पुराणों के अनुसार भद्रा, सूर्य की पुत्री व शनिदेव की बहन हैं।
भद्रा क्रोधी स्वभाव की मानी गई हैं। उनके स्वभाव को नियंत्रित करने भगवान ब्रह्मा ने उन्हें कालगणना या पंचांग के एक प्रमुख अंग विष्टिकरण में स्थान दिया है। पंचांग के पांच प्रमुख अंग तिथि, वार, योग, नक्षत्र व करण होते हैं। करण की संख्या 11 होती है। ये चर-अचर में बांटे गए हैं। 11 करणों में 7वें करण विष्टि का नाम ही भद्रा है। मान्यता है कि ये तीनों लोगों में भ्रमण करती हैं, जब मृत्युलोक आती हैं तो अनिष्ट करती हैं। भगवान विष्णु के भक्त प्रह्लाद का पिता हिरण्यकश्यप अपने बेटे पर बहुत क्रोध करता था।
उसने प्रह्लाद पर हजारों हमले करवाए। फिर भी प्रह्लाद सकुशल रहा। हिरण्यकश्यप ने प्रह्लाद को मारने के लिए अपनी बहन होलिका को भेजा। होलिका को वरदान था कि वह आग से नहीं जलेगी। हिरण्यकश्यप ने अपनी बहन होलिका को बोला कि वह प्रह्लाद को लेकर आग में बैठ जाए। होलिका प्रह्लाद को लेकर आग में कूद गई, लेकिन इसका उल्टा हुआ। होलिका प्रह्लाद को लेकर जैसे ही आग में गई वह जल गई और प्रह्लाद बच गए। प्रह्लाद अपने आराध्य विष्णु का नाम जपते हुए आग से बाहर आ गए। तब से होलिका दहन की परंपरा की शुरुआत हुई है।