सीएनएन सेंट्रल न्यूज़ एंड नेटवर्क–आईटीडीसी इंडिया ईप्रेस /आईटीडीसी न्यूज़ भोपाल: मध्य प्रदेश भोज मुक्त विश्वविद्यालय में दो दिवसीय गुरु पूर्णिमा आयोजन के अंतर्गत “गुरु पर्व” कार्यक्रम संपन्न हुआ। मध्य प्रदेश शासन के आदेशानुसार सभी विश्वविद्यालयों में यह कार्यक्रम का 2 दिवस (21 एवं 22 जुलाई 2024) मनाया जाना निश्चित है। इस अवसर पर कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में प्रो. चंद्र चारु त्रिपाठी, निदेशक, एन. आई. टी. टी. टी. आर. भोपाल में उपस्थित रहे। साथ ही मुख्य वक्ता एवं सारस्वत अतिथि के रूप में डॉ. मुकेश कुमार मिश्रा, निदेशक, दत्तोपंत ठेंगड़ी शोध संस्थान, भोपाल ने शिरकत की। गुरु पूर्णिमा आयोजन की इस श्रृंखला में कार्यक्रम के अध्यक्षता मध्य प्रदेश भोज मुक्त विश्वविद्यालय के कुलगुरु प्रो. संजय तिवारी द्वारा की गई एवं इस अवसर पर कार्यक्रम आयोजक के रूप में विश्वविद्यालय के कुलसचिव डॉ. सुशील मंडेरिया उपस्थित रहे। कार्यक्रम के नोडल अधिकारी डॉ. रतन सूर्यवंशी, निदेशक, विद्यार्थी सहायता, भोज विश्वविद्यालय भी उपस्थित थे। गुरु पर्व कार्यक्रम का आयोजन विश्वविद्यालय के सभागार में किया गया।

Conclusion of two-day program organized on the occasion of Guru Purnima
कार्यक्रम के मुख्य अतिथि डॉ. चंद्र चारु त्रिपाठी ने अपने उद्बोधन में कहा कि, हमारे प्राचीन शास्त्रों में गुरु की महिमा का वर्णन मिलता है। प्रथम गुरु हमारे माता-पिता हैं। परिवार में माता-पिता होने के नाते हम सब गुरु का भी दायित्व निर्वहन करते हैं। गुरु शिष्यों की गलतियों को सुधारते हैं। वह हमें नैतिकता और कर्तव्य परायणता की शिक्षा अपने स्वयं के कार्यों और व्यवहार से देते हैं। डॉ. त्रिपाठी ने कहा कि, शिक्षकों को अपनी एक खास पहचान बनाना चाहिए। वह कुछ ऐसा करें जिससे लोग उन्हें उनके कार्यों से जाने। अगर विद्यार्थियों में कुछ करने की तीव्र इच्छा होती है तो संसाधन की कमी बाधा नहीं बनती।डॉ त्रिपाठी ने कहा कि, शिक्षकों को शिक्षक प्रादर्श बनाना चाहिए। इससे कक्षा शिक्षण को और अधिक रोचक बनाया जा सकता है। उन्होंने उपस्थित शिक्षकों से कहा कि, आप हमारे संसथान में आकर चाहे तो अपने-अपने विषयों से संबंधित शिक्षक प्रादर्श विकसित कर सकते हैं। इसमें संस्थान आपको पूरा सहयोग करेगा। उन्होंने शिक्षा में सूचना संचार तकनीक के योगदान को रेखांकित किया। इस अवसर पर डॉ. त्रिपाठी ने भारत के शिक्षण व्यवस्था और मूल्यांकन की कमियों पर प्रकाश डाला। अगर हमें शिक्षा में गुणवत्ता लानी है तो, हमें मूल्यांकन पद्धति पर अधिक ध्यान देना होगा

मध्य प्रदेश भोज मुक्त विश्वविद्यालय के निदेशक डॉ. एल.पी. झरिया ने “योग एवं ज्ञान” विषय पर अपना वक्तव्य देते हुए कहा कि, भारत एक आध्यात्मिक देश है हमारे सारे काम चाहे वह सामाजिक हो, आर्थिक हो, राजनीतिक हो, यह सब धर्म पर ही आधारित होते हैं। उन्होंने प्राचीन भारत के समाज में प्रचलित चार पुरुषार्थ
और चार आश्रम व्यवस्था की विवेचना की। उन्होंने कहा कि, धर्म वही है जो धारण किया जा सके। योग और आध्यात्मिक से मन पवित्र होता है। उन्होंने ज्ञान की विभिन्न विधियों की चर्चा की और आसन तथा प्राणायाम के लाभ बताएं।
इस अवसर पर मध्य प्रदेश भोज मुक्त विश्वविद्यालय की सहा- निदेशक डॉ. नीलम वासनिक ने गुरु के आदर्श रूप पर अपना वक्तव्य प्रस्तुत किया। उन्होंने स्वामी रामतीर्थ के जीवन वृतांत की चर्चा की और उनके अद्वैत वेदांत दर्शन के बारे में बताया। उन्होंने तथागत बुद्ध के पंचशील के सिद्धांत की भी चर्चा की।

मध्य प्रदेश भोज मुक्त विश्वविद्यालय के निदेशक डॉ. सुशील कुमार दुबे ने “शिक्षा में नवाचार” विषय पर चर्चा करते हुए, राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 में हो रहे नवाचारों की चर्चा की।
मुख्य वक्ता के रूप उपस्थित डॉ. मुकेश कुमार मिश्रा ने अपने वक्तव्य में कहा कि, विश्व भर में भारत के ज्ञान परंपरा की चर्चा हो रही है। परंपरा वह है जो हर देश, काल, परिस्थिति में अपने आप को परिष्कृत करते हुए खुद को श्रेष्ठ बनाए रखती है। जबकि ट्रेडीशन वह है जो जैसे के तैसे चलता रहता है। उन्होंने महाभारत के कर्ण और परशुराम की कथा का उदाहरण देते हुए बताया कि, कभी भी छल से प्राप्त की गई विद्या काम नहीं आती है। डॉ. मिश्रा ने कहा कि, भारत में विभिन्न प्रकार के पंथ हैं। किंतु सभी पंथों में गुरु का स्थान सर्वोच्च रहा है। भारत भूमि की सभी विचारधाराओं में गुरु का श्रेष्ठ स्थान है। भारत ज्ञान की भूमि है, ज्ञान का गुरु से गहरा नाता है। ज्ञान शाश्वत और सत्य है। गुरु ज्ञान पर पड़े आवरण को हटाकर उसी ज्ञान को नए-नए रूप में प्रकट करते हैं। यही हमारी परंपरा रही है। उन्होंने गुरु पूर्णिमा के महत्व और प्रासंगिकता पर भी चर्चा की। डॉ. मिश्रा ने कहा कि, गुरु का आचरण ही सही मायने में शिष्य को प्रेरणा देता है। शिक्षकों को अपने
आचरण पर अधिक बल देने की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि, गुरु वही है जो,जानकारी से ज्ञान की ओर ले जाए, ज्ञान से विवेक जागृत कर दे और विवेक से अध्यात्म की ओर ले जाए। डॉ. मिश्रा ने कहा कि हमारे भारत की ज्ञान परंपरा मुक्त गामी है। अच्छा गुरु शिष्य के जीवन को सार्थक बनाने के लिए प्रेरित करता है।

कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए विश्वविद्यालय के कुलगुरु प्रो संजय तिवारी ने कहा कि, लौकिक शिक्षा से ज्ञान मिलता है। किंतु आध्यात्मिक शिक्षा से नैतिकता, शील और करुणा आती है। यही हमारी भारतीय ज्ञान परंपरा का मूल तत्व है। बच्चों को बचपन से ही धर्म की शिक्षा दी जानी चाहिए। डॉ. तिवारी ने कहा कि, भारतीय शिक्षण परंपरा की ओर विश्व के अन्य देश आशा भरी नजरों से देख रहे हैं। अच्छा शिक्षक ज्ञानी होना चाहिए और उसमें ज्ञान को संक्रमण कर शिष्य में उतरने की कल भी आनी चाहिए। शिक्षक को आकाश धर्मी होना चाहिए अर्थात जिस तरह आकाश अपने नीचे सभी प्रकार के जीव, जंतु,
वनस्पतियों, वृक्षों, नदियां, पहाड़ को विकसित होने का पूर्ण मौका देता है। ऐसा ही व्यक्तित्व गुरु का भी होना चाहिए। जिसके तले शिष्य को विकसित होने का मौका मिल सके। अंत में उन्होंने कहा कि, प्राचीन काल में विश्वविद्यालय समाज आधारित होते थे।समाज ही विश्वविद्यालय की आवश्यकताओं को पूरा किया करते थे।
कार्यक्रम के अंत में धन्यवाद् व्यक्त करने के पूर्व विश्वविद्यालय के कुलसचिव एवं कार्यक्रम के आयोजक डॉ. शुशील मेंडेरिया ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि, सैद्धांतिक शिक्षा के साथ-साथ व्यवहारिक शिक्षा भी अधिक महत्व पूर्ण होती है। उन्होंने अपने जीवन के दृष्टांत को बताते हुए, व्यवहारिक ज्ञान के महत्व पर बोल दिया।
गुरु पर्व के समापन कार्यक्रम के अवसर पर भोज विश्वविद्यालय में आयोजित कार्यक्रम का मंच संचालन मध्य प्रदेश भोज मुक्त विश्वविद्यालय की वरिष्ठ सलाहकार डॉ. साधना सिंह बेसिन द्वारा किया गया। कार्यक्रम के अंत में आभार प्रदर्शन विश्वविद्यालय के कुलसचिव डॉ. सुशील मंडेरिया द्वारा दिया गया। इस अवसर पर विश्वविद्यालय परिवार के समस्त अधिकारी, विद्यार्थी, शिक्षक एवं कर्मचारीगण उपस्थित रहे।