सीएनएन सेंट्रल न्यूज़ एंड नेटवर्क–आईटीडीसी इंडिया ईप्रेस /आईटीडीसी न्यूज़ भोपाल: वेब सीरीज गुल्लक में संतोष मिश्रा का किरदार काफी यादगार रहा। एक्टर जमील खान के निभाए इस किरदार का इंपैक्ट इतना है कि लोग इन्हें रियल लाइफ में मिलते हैं तो पैर छूने लगते हैं। जमील उत्तर प्रदेश के भदोही के रहने वाले हैं। उनकी फैमिली में फिल्मों और कलाकारों को खास तवज्जो नहीं दी जाती।
जमील के मां-बाप ने कई परेशानियां झेलीं। रहने को घर नहीं था। एक कमरे के मकान में सीढ़ियों के नीचे रहा करते थे। जमील के पैदा होने के बाद परिवार की आर्थिक स्थिति थोड़ी सही हो गई।
जमील का बचपन से मन कला और रंगमंच में लगता था। बड़े होने पर उनका रुझान थिएटर की तरफ हुआ। भदोही से निकलकर मुंबई तक का सफर तय किया। फिर मुंबई में आर्थिक परेशानियों ने जकड़ लिया। पैसों की किल्लत होने लगी। इसी बीच उनकी मुलाकात नसीरुद्दीन शाह से हुई। जमील, नसीरुद्दीन शाह के अंडर थिएटर करने लगे। नसीर उन्हें बीच-बीच में पैसे दे देते थे, जिससे जमील को थोड़ी-बहुत आर्थिक राहत मिल जाती थी।
इस बार स्ट्रगल स्टोरी में बात जमील खान की…जमील खान 1999 से फिल्म इंडस्ट्री में एक्टिव हैं। 25 साल के लंबे करियर में उनके पास गिनाने को बहुत काम है, लेकिन इन्हें पाने के पीछे उनका लंबा संघर्ष है।
आइए पढ़ते हैं जमील की संघर्ष की कहानी उन्हीं की जुबानी…
मां-बाप ने काफी दुख-दर्द झेले
जमील खान ने कहा, ‘अभी साल भर पहले की बात है, मैं अपनी मां से फोन पर बात कर रहा था। उन्होंने एक ऐसी बात बताई कि मैं दंग रह गया। मां ने कहा कि तुम्हारे जन्म से पहले हमारे पास रहने को एक सही कमरा तक नहीं था। एक छोटा सा छज्जा था, जिसमें सीढ़ी के नीचे कमरा बनाकर हम लोग रहते थे। सीढ़ी को किसी कपड़े से आड़ देते थे, ताकि बाहर दिखाई न दे।’
तीसरी कक्षा तक जमील की पढ़ाई भदोही में हुई। इसके बाद घरवालों ने उन्हें पढ़ने के लिए नैनीताल के एक बोर्डिंग स्कूल भेज दिया। जमील को बचपन से फिल्में देखने का शौक था, लेकिन स्कूल में यह संभव नहीं हो पाता था। हालांकि स्कूल में जब भी सांस्कृतिक कार्यक्रम होते थे, जमील हमेशा उसमें अव्वल आते थे। जमील कहते हैं, ‘जो भी सीखा है, अपने स्कूल से ही सीखा है। वहीं से अभिनय में दिलचस्पी आने लगी। मैंने स्कूल में बेस्ट एक्टर का अवॉर्ड भी जीता था।
हर साल तीन महीने की छुट्टी होती थी। उन छुट्टियों में घर आता था। घर पर फिल्में देखने के लिए थोड़ी बहुत छूट मिल जाती थी। घर वाले भी सोचते थे कि बेचारा बोर्डिंग स्कूल से आया है, चलो थोड़ी छूट दे देते हैं।
घर वालों की परमिशन लेकर मैं पिक्चर हॉल में सिनेमा देखने निकल जाया करता था। फिर अपने दोस्तों में फिल्म को लेकर डिस्कस करता था। शायद इस डिस्कशन से मेरी स्टोरी टेलिंग निखरकर सामने आने लगी। वहां से पहली बार लगा कि कला के क्षेत्र में कुछ कर सकता हूं।’
घरवाले चाहते थे UPSC या MBA करें जमील
नैनीताल के बाद जमील आगे की पढ़ाई के लिए अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी चले गए। वहां से पढ़ाई के बाद जमील ने घर वालों को बता दिया कि वे अब थिएटर जॉइन करना चाहते हैं और इसके लिए मुंबई जाना चाहते हैं।
पिता और भाई चाहते थे कि जमील MBA करके घर का बिजनेस संभालें या फिर UPSC की तैयारी कर लें। हालांकि जमील को इन सब चीजों से इतर बस एक लक्ष्य दिखाई दे रहा था। उनकी इच्छा देख घर वालों ने भी उन्हें मुंबई जाने की इजाजत दे दी। पिता ने कहा कि कुछ भी जरूरत होगी तो बताना। जमील ने कहा, ‘पिताजी आपको मेरे लिए जितना करना था, कर दिया। अब मैं अपने पैरों पर खड़ा होना चाहता हूं।’
आर्थिक परेशानियां झेलनी पड़ीं, नसीरुद्दीन शाह मदद कर देते थे
जमील, घर वालों से पैसे लेने से साफ मना कर चुके थे। इसी वजह से मुंबई आने पर उन्हें काफी दिक्कतें हुईं।
उन्होंने कहा, ‘वाजिब सी बात है कि मुंबई जैसे महंगे शहर में खर्चे चलाना आसान नहीं था। हर चीज के लिए सोचना पड़ता था। थिएटर करता था, तो वहीं से थोड़ी बहुत आमदनी हो जाया करती थी। नसीर भाई (नसीरुद्दीन शाह) के साथ शोज करता था, तो वे कुछ पैसे दे दिया करते थे। हालांकि वे भी कितना ही देते। आपको भी पता है कि थिएटर से कितनी कमाई होती है। फिर भी नसीर भाई के नाम पर कभी-कभी अच्छे पैसे मिल जाते थे।’