मप्र के श्योपुर का एक ऐसा गांव जहां आने-जाने के लिए अनुमति लेना पड़ती है। राशन के लिए गांव वालों को 22 किमी दूर जाना पड़ता है। पढ़ाई के लिए पांचवीं तक ही स्कूल है। आठवीं की पढ़ाई करना हो तो 15 किमी दूर ही जाना पड़ेगा। हम बात कर रहे हैं बागचा गांव की, जो कूनाे नेशनल पार्क के अंदर आने से चर्चा में है। अब यहां के लोग रामबाड़ी में बसाए जाएंगे।

कूनो नेशनल पार्क के अंदर आ रहे 24 गांव के 1545 परिवार विस्थापित हो चुके हैं। अब एकमात्र गांव बागचा बचा है। करीब 600 की आबादी वाले गांव में जाने पर पाबंदी है। श्योपुर से करीब 70 किमी दूर विजयपुर विकासखंड के सिरोनी वन चौकी के पास से बागचा गांव जाने का रास्ता है। वहां दैनिक भास्कर टीम पहुंची। गांव शुरू होने से पहले एक लकड़ी का बैरियर लगा है।

थोड़ी की दूरी पर एक गेट लगा मिला, जहां वन अमले के दो कर्मचारी खड़े हैं। उन्होंने हमें रोका और कहा कि नेशनल पार्क में बिना अनमुति प्रवेश नहीं है। हमने कहा कि विस्थापित गांव वालों से बात करनी है। हम जंगल की ओर गए और वहां से अफसरों से परमिशन मिली। जब हम गांव पहुंचे तब शाम के चार बज चुके थे। जंगल की ओर से लोग अपनी मवेशी लेकर लौट रहे थे। ग्रामीण बोले-जंगली जानवरों से पहले ही डर था, अब चीतों का डर भी सता रहा है, क्योंकि ये बाड़ों से बाहर आते ही हमारे लिए खतरा बनेंगे।

सूची में पूरे लाेगों के नाम भी नहीं जुड़े और हमारे ऊपर लगा दिया पहरा
सुकलू, महेश, जगन्नाथ, बाबू सूखा और धामाेला आदिवासी कहते हैं कि अभी गांव न ताे विस्थापित किया, न ही विस्थापन काे लेकर तारीख तय है। अभी गांव के लाेगाें के नाम भी विस्थापन सूची में नहीं हैं, 82 लाेग ऐसे हैं, जिनके नाम सूची में जोड़े जाने हैं और जिनकाे शामिल करने पर आपत्ति लगी है। इनका कहना कि गांव काे जाेड़ने वाले दाेनाें रास्ताें काे बंद कर दिया है। उनके बाहर आने जाने का भी हिसाब रखा जा रहा है।

सभी के आने जाने पर रोक

बागचा अब कूनो का हिस्सा है और बिना स्वीकृति वहां नहीं जा सकते, क्योंकि यहां चीता प्रोजेक्ट संचालित है, फिर भी यहां ग्रामीणों को रोका नहीं जा रहा है, बाहर से आने वालों को रोका जा रहा है, दूसरे लोगों को यदि बागचा जाना है, तब वह अनुमति लेकर जाएं।