सीएनएन सेंट्रल न्यूज़ एंड नेटवर्क–आईटीडीसी इंडिया ईप्रेस /आईटीडीसी न्यूज़ भोपाल: सभी हरित वीर भाई-बहनों को प्रकृति प्रणाम! Green Donor की हरित प्रेरणा एपिसोड 42 में आपका हार्दिक स्वागत है। मैं हूँ हरित वीर [आपका नाम], और वीरजी साहिब के मार्गदर्शन में आज हम बात करेंगे यूरिया के प्राकृतिक विकल्प पर, जिससे हम खेती में यूरिया के दुष्प्रभावों से बच सकते हैं।
यूरिया का अधिक प्रयोग और इसके दुष्प्रभाव
खेती में नाइट्रोजन की कमी को पूरा करने के लिए यूरिया का उपयोग मुख्य रूप से किया जाता है। यह पौधों के विकास में सहायक है और प्रोटीन संश्लेषण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। लेकिन, यूरिया का अधिक प्रयोग मिट्टी की उर्वरता को नुकसान पहुंचा सकता है। इसका दीर्घकालिक प्रयोग मिट्टी के स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव डाल सकता है।
प्राकृतिक नाइट्रोजन की पूर्ति कैसे हो?
वायु में लगभग 78% नाइट्रोजन होती है, परन्तु पौधे इसे सीधे ग्रहण नहीं कर सकते। इसे पहले नाइट्रेट में परिवर्तित किया जाना आवश्यक है। इस कार्य को ‘नाइट्रोजन स्थिरीकरण’ कहा जाता है, जिसमें राइजोबियम नामक जीवाणु सहायक होते हैं। ये जीवाणु दलहनी फसलों जैसे चना, मूंगफली और सोयाबीन की जड़ों में पाए जाते हैं और मिट्टी में नाइट्रोजन की मात्रा बढ़ाते हैं।
फलीदार पेड़: एक स्थाई समाधान
दलहनी फसलें 4 महीनों के लिए ही उगाई जाती हैं। इस समस्या का एक दीर्घकालिक समाधान है फलीदार पेड़ लगाना, जैसे गुलमोहर, शीशम, अमलतास और सीरिस। ये पेड़ नाइट्रोजन स्थिरीकरण का कार्य करते हैं, जो खेतों में नाइट्रोजन की प्राकृतिक पूर्ति करते हैं और मिट्टी को स्वस्थ बनाए रखते हैं।
एक हरित पहल
यह एक बदलाव की नई पहल है, हरित वीर वाहिनी संगठन के साथ। हम आशा करते हैं कि आप भी इस हरित प्रयास में हमारा साथ देंगे और प्राकृतिक खेती के माध्यम से पर्यावरण संरक्षण में योगदान देंगे।
हर दिन हरियाली, हर दिन हरित प्रेरणा, वीरजी साहिब की प्रेमपूर्ण पहल – Green Donor।
आइए, हम सब मिलकर एक स्वस्थ और हरित भविष्य की ओर कदम बढ़ाएं!
https://youtu.be/B920h3kriAQ