भारत का आर्थिक भविष्य वैश्विक वित्तीय केंद्र बनने के स्वप्न के साथ जुड़ा हुआ है। इस दिशा में गुजरात के गांधीनगर में विकसित गिफ्ट सिटी (गुजरात इंटरनेशनल फाइनेंशियल टेक्नोलॉजी सिटी) एक महत्वाकांक्षी परियोजना के रूप में उभरकर सामने आई है। यह भारत का पहला अंतरराष्ट्रीय वित्तीय सेवा केंद्र (IFSC) बनने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। इस शहर में शानदार इमारतें, भूमिगत यूटिलिटी टनल, वॉक-टू-वर्क जैसी अवधारणाएं, और आधुनिकतम तकनीकी अवसंरचना इसे एक आदर्श वित्तीय संसार का रूप देती हैं। लेकिन क्या गिफ्ट सिटी भारत की अर्थव्यवस्था को वैश्विक प्रतिस्पर्धा में स्थापित कर पाएगी, या फिर यह केवल एक राज्य-केंद्रित प्रयोगशाला बनकर रह जाएगी? यह सवाल महत्वपूर्ण है, और इसका उत्तर खोजने के लिए हमें इस परियोजना के विभिन्न पहलुओं पर विचार करना होगा।

  1. निवेशकों के लिए आकर्षक रियायतें:

गिफ्ट सिटी में कंपनियों को बड़े पैमाने पर टैक्स छूट दी जा रही हैं। 10 साल तक आयकर से पूरी छूट, कस्टम ड्यूटी और जीएसटी से मुक्ति जैसे उपाय निवेशकों को आकर्षित करने के लिए किए जा रहे हैं। हालांकि, जब किसी व्यवस्था के लाभ केवल कुछ खास क्षेत्रों तक सीमित हो जाएं, तो यह असंतुलन की ओर भी इशारा कर सकता है। सवाल यह है कि क्या ऐसे लाभ देश के अन्य हिस्सों में लागू किए जा सकते हैं? और क्या गिफ्ट सिटी का लाभ केवल गुजरात तक ही सीमित रहेगा, या यह पूरी देश की आर्थिक व्यवस्था में बदलाव ला सकेगा?

  1. स्थानीय गतिविधियों की धीमी गति:

गिफ्ट सिटी के निर्माण में वर्षों से योजनाएं बन रही हैं, लेकिन ज़मीनी स्तर पर इसकी व्यावसायिक गतिशीलता अपेक्षा से काफी धीमी है। अनेक अंतरराष्ट्रीय कंपनियों को यह परियोजना आकर्षक तो लगती है, लेकिन वे इससे दूरी बनाए हुए हैं। भारतीय बैंक और कंपनियां ज्यादातर केवल नियामकीय लाभ लेने के लिए वहां शाखाएं खोल रही हैं, न कि असल संचालन के लिए। अगर गिफ्ट सिटी को एक आर्थिक केन्द्र बनाना है, तो इसके संचालन की गति और इसमें वास्तविक व्यावसायिक गतिविधियों का होना आवश्यक है।

  1. राष्ट्रीय महत्व की परियोजना:

गिफ्ट सिटी एक ‘राष्ट्रीय महत्व’ की परियोजना मानी जा रही है, लेकिन सवाल उठता है कि इसे गुजरात में क्यों स्थापित किया गया? यदि यह परियोजना देश की वित्तीय प्रणाली को बदलने का लक्ष्य रखती है, तो क्या इसे मुंबई जैसे देश की आर्थिक राजधानी में नहीं होना चाहिए था? महाराष्ट्र जैसे अन्य राज्य अब अपनी इनोवेशन सिटी जैसी परियोजनाओं को शुरू कर रहे हैं, लेकिन वे गिफ्ट सिटी जैसी नीति और संरचना को लागू करने में पीछे हैं। इसका मतलब यह है कि यदि इस परियोजना का उद्देश्य देशभर की आर्थिक स्थिति को सुधारना है, तो इसे राष्ट्रीय स्तर पर समझा और लागू किया जाना चाहिए था।

  1. गिफ्ट सिटी की वास्तविक चुनौती:

गिफ्ट सिटी की एक और बड़ी चुनौती उसकी दीर्घकालिक सफलता को लेकर है। संभावना तब तक अधूरी रहेगी जब तक यहां से देशभर की वित्तीय प्रणाली को सशक्त करने वाली विचारधाराएं, तकनीक, और साझेदारियां नहीं निकलतीं। यह सही है कि गिफ्ट सिटी का ढांचा आधुनिक है और उसमें संभावनाएं अपार हैं, लेकिन जब तक इस परियोजना से जुड़े वास्तविक आर्थिक और वित्तीय कार्य नहीं होते, तब तक यह केवल एक शोपीस बनकर रह जाएगा।

  1. गिफ्ट सिटी की आलोचनात्मक समीक्षा:

गुजरात की यह पहल निश्चित ही प्रशंसा योग्य है, लेकिन इसे आलोचनात्मक दृष्टिकोण से देखना भी उतना ही जरूरी है। गिफ्ट सिटी जैसी परियोजनाओं की आवश्यकता भारत को है, लेकिन साथ ही इसमें पारदर्शिता और समावेशिता की भी जरूरत है, ताकि ये प्रयोग देशभर के लिए उदाहरण बन सकें, न कि केवल एक राज्य विशेष की उपलब्धि। यदि गिफ्ट सिटी का उद्देश्य वास्तविक बदलाव लाना है, तो इसे एक समग्र दृष्टिकोण के साथ लागू करना होगा, जो पूरे देश को समग्र रूप से लाभ पहुंचाए।

निष्कर्ष:

गिफ्ट सिटी का सपना जरूर आकर्षक है, लेकिन इसकी सफलता देश की वित्तीय प्रणाली को प्रतिस्पर्धी बनाने में ही निहित है। यह एक प्रयोगशाला हो सकती है, लेकिन अगर इसके परिणाम पूरे देश को लाभकारी न हों, तो यह केवल एक राज्य के आर्थिक मॉडल के रूप में सिमटकर रह जाएगा। भारत को एक ऐसी नीति की जरूरत है, जो केवल गिफ्ट सिटी तक सीमित न हो, बल्कि पूरे देश को इसके लाभों से जोड़ सके।

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